अम्मा मुस्कुरा रही है पर इसकी मुस्कुराहट के पीछे कई दर्द छिपे हुए हैं क्या? समझ सब रहे हैं पर मौन है।
पहल कौन करे जो करे वही लेक्चर सुनने को तैयार रहे फिर तो अम्मा एक न सुनेगी आगा पीछा ऊपर नीचे सब बैठा कर घंटों सुनायेगी इतना कि सारी सिट्टी पिट्टी गुम हो जायेगी एक का भी जवाब तुम्हारे पास नही होगा।
अरे ! अम्मा ऐसे नही अम्मा बनी,धूप में बाल नही सफ़ेद किये, उम्र खेई है इसमें तब जाके आज नब्बे की हुई है।
जाने कितने उतार चढ़ाव देखने हैं जिंदगी के ऐसे नहीं लोगों का मेला लगा रहता था घर में अरे मधुरता सौम्यता, संस्कार,तो पीहर से लेके आई थी पर सहनशीलता उसे स्थिति और परिस्थिति ने सिखाया।
उसने वो दौर भी देखा है जब घर के मर्दों तक बात पहुंचती ही नही थी दिन भर भले औरतों में कटाजुज्झ हो जाए पर सांझ भले उनके आते ही सब अपने अपने काम पर ऐसे लग जाते जैसे कुछ हुआ ही नही हो ।
उसने महसूसा है सास बहू की लड़ाई,देव रानी- जिठानी की इरसा दाज़ी,ननद भौजाई की ठसक,देवर की चुलबुली शरारते।
इन सबके बावजूद भी रिश्तों में मिठास थी क्योंकि सहनशीलता उसके पास थी। मर्दों के कान तक बात कभी जाने ही नही देती थी।
तभी तो यही चारों बच्चे जब छोटे थे तो कहते अम्मा कितने रिश्तेदार आते है घर में जब देखो तब तुम रसोई में ही नज़र आती हो थकती नही क्या?
तो अम्मा मुस्कुराकर कहती हां बेटा शायद तुम्हे नही पता ये मैं इसलिए कमा रही हूं कि मेरे मरने के बाद तुझे शमशान तक ले जाने के लिए चार लोग किराये पर न लेने पड़े।
क्योंकि मुझे लग रहा आने वाले समय में ऐसा वक़्त आयेगा जब मरने के बाद कंधा देने वाले भी चार किराये पर लेने होंगे।तो मैं मन में ‘पागली है’
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कहकर मुस्कुराता और आगे बढ़ जाता ।पर आज बड़े होकर इस बात का अहसास हो रहा कि अम्मा ठीक ही कहती थी।
आज व्यक्ति अपने कामों में इतना व्यस्त है कि किसी के सुख दुख से किसी को कोई मतलब भी नही न किसी के घर किसी का आना जाना है
ज़रा सी बात पर ठना ठनी है यहाँ तक कि बगल में किसी की मृत्यु हो जाये तो पता नही चलता बच्चों से लेकर रिश्तेदार तक बाहर जो है तो रोये कौन ,
जैसे कई मसले ऐसे है जो अम्मा के दुख का कारण है। क्योंकि यही कारण है जो
रिश्ते टूट और ,बिखर रहे हैं।
कंचन श्रीवास्तव