Moral Stories in Hindi : दोपहर का समय था, बहुत ही सख्त गरमी पड रही थी वातावरण किसी भट्टी की भांति तप रहा था धूप और गरमी के कारण वह घर पर आराम कर रहे थे कि तभी उन के दरवाजे पर दस्तक हुई, वह उठकर दरवाजे की ओर आए।
सामने पसीने में भीगी बदहाल एक बूढ़ी महिला खड़ी थी, जो बहुत परेशान लग रही थी वह माथे का पसीना पोंछते हुए बोली, “बेटा, तूम कुमार दीनदयाल हो,ना ?” उन्होंने आश्चर्य से अनजान बूढ़ी महिला की ओर देखा और कहा, “माँ,आप पहले अंदर आओ, बैठ कर संतुष्टि से बात करते है। आप बहुत थकी हुई लग रही है। आप की साँसें फुल रही हैं।
उन्होंने बूढ़ी अम्मा को अंदर खाट पर बैठने का इशारा किया और पानी लेने चले गए। जब बूढ़ी अम्मा ने पानी पी लिया, तो दीनदयाल जी बोले, “हाँ! अब बताओ, अम्मा, क्या बात है?” बेटा, मै तुम्हारे अनाज के गोदाम पर काम करने वाले स्वर्ग वासी मजदूर संतोष की माँ हू अम्मा की आँखो मे पानी आ गया।
दीनदयाल जी चुपचाप और ध्यान से बुजुर्ग मां की बातें सुन रहे थे। वह कहती रही, “मेरी बेटी का ब्याह तय हो गया है, ब्याह का समय निकट आन पहुँचा है। मैं चाहती हूं कि आप मुझे वह रकम दे दें जो मेरे दिवंगत बेटे ने ” बहन की शादी के लिए अमानत के रूप में आपके पास जमा कीया था।
“माँ, क्या आप जानती हैं कि आपके दिवंगत बेटे ने अमानत के रूप में कितने पैसे छोड़े हैं?” हाँ बेटा,20 हजार रुपए बनते हैं। अरे वाह! अम्मा आप को रकम याद है, मैं अभी आपको लाकर देता हूँ।
वह सारे पैसे ले आए और बूढी महिला को सौंप दिये बूढ़ी माँ ने पैसे ले लिए और दूआऐ देती हुई चली गई। वह भी अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गए और इस घटना को भूल गए परंतु कुछ दिनों बाद अचानक वह बूढी अम्मा उन के घर आई बूढ़ी अम्मा के पास एक छोटा सा थैला भी था।
बुजुर्ग माँ की आंखों में आंसू भी थे और लज्जा भी बूढ़ी माँ ने उन के सिर पर हाथ रखकर कहा, “बेटा, मुझे माफ कर दो, मैंने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया। मैं कोई धोखेबाज या ठग नहीं हूं।”
“मैं जानता हूं माँ, तुम्हें अपने बारे में सफाई देने की कोई जरूरत नहीं है। मैं उसी दिन समझ गया था कि आप गलती से मेरे पास आ गई है, क्योंकि ना तो मैं कुमार दीनदयाल हूं, ना मेरा कोई गोदाम है और ना ही आप का बेटा मेरे यहाँ काम करता था। लेकिन बेटी की शादी को लेकर आप बहूत चिंतित लग रही थी इसलिए मैने आप की इसी बहाने मदद कर दी उन सज्जन ने हाथ जोडते हूए कहा।
“हां बेटा, जब असली कुमार दीनदयाल मेरे पास पैसे लेकर आया तो मुझे भी पता चल गया। तब तक मैं तुम्हारे पैसे अपनी बेटी की शादी में खर्च कर चुकी थी। अब मैं तुम्हारी अमानत लौटाने आइ हू।बूढ़ी माँ अपने साथ लाया हूआ थैला उन सज्जन की ओर बढाते हूए बोली “गिन लो बेटा, 20 हज़ार पूरे हैं।”
अरे “माँ जी, इसकी कोई अवशक्ता नहीं , यह रकम आप ही रख लो” वह लाख मिन्नते करते रहे लेकिन बुढी माँ नही मानी कहेने लगी “नहीं बेटा,यह पैसे मै नहीं ले सकती” और दुआऐ देती हूई चली गई।
**समाप्त ** ०४/०९/२३
**स्वलिखित:- आसिफ शेख**