अफ़सोस – सोनिया सरीन : Moral Stories in Hindi

दिल्ली जैसे महानगर के एक मध्यम वर्ग पर शिक्षित परिवार में जन्मी माधुरी अपने परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी । माता पिता दोनों शिक्षित थे सो उसने परिवार में कभी भी कोई भेद भाव महसूस नही किया था। उन्ही की अच्छी परवरिश के कारण माधुरी को अपने जीवन में एक राह मिल गई थी। ग्रेजुएशन खत्म होते ही वह प्राईवेट स्कूल में नौकरी करने लगी थी। अपने पैरों पर खड़े होते ही जीवन की चुनौतियों से लड़ने का उसमें  साहस भर गया था। वह अपने जीवन में कुछ बन कर अपने माता पिता का नाम रोशन करना चाहती थी पर बेटियां कब किसने घर सदा बिठा कर रखी है दोस्तों अतः परिवार की रजामंदी से जल्द ही उसे विवाह बंधन मे बाॅध दिया गया।

 अपने सपनो को पुनः नया रूप दे वह ससुराल मे सबसे मिलजुल कर रहने की कोशिश में लगी रही परन्तु सर्वगुण संपन्न होकर भी वह ससुराल वालों की नजर में एक अच्छी बहू नहीं बन पाई। शुरुआत से ही उसका वैवाहिक जीवन चुनौतियां भरा रहा। एक समझदार जीवनसाथी के साथ होने का उसका यकीन तब चरमरा गया जब आपस में हुई बात, मजाक,हर नोक झोक हर प्यार हर दुनियादारी की बात उसका पति अपने माता पिता को बताता रहा ।

माधुरी ने बहुत समझाया की आपसी प्यार विश्वास ही एक सुखी विवाहित जीवन की नींव होती है पर शायद समय पर उसके पति को यह बात समझ नहीं आई और छोटी छोटी सी बात पर सास ससुर ने डाॅटना व दखल देना शुरू कर दिया। यही नहीं पति का उसको जरा भी तवज्जो ना देना माधुरी को अब कचोटने लगा था।

पारिवारिक जिम्मेदारी  के साथ स्कूल और घर का ताल मेंल बिठाते बिठाते  कब तक अपने आप से ही जुदा हो गई पता ही नहीं चला। वह ससुराल जिसमें माधुरी बहुत सपने से जोकर आई थी अब उसके लिए एक कैद खान की तरह बन गया माधुरी ने बहुत कोशिश की पर उसकी कोशिश असफल रही। वह तय नहीं कर पा रही थी कि वह क्या करे, तभी उसे खुशखबरी मिली कि वह मां बनने वाली है ।

इस खुश खबरी से ससुराल वाले और माधुरी के‌ पतिदेव खुश तो हुए लेकिन माधुरी के स्वास्थ्य का ध्यान रखना उन्हें जरा भी गवारा न था । वह सुबह स्कूल जाती, स्कूल से आकर घर का काम करती और अगर कहीं सो जाती तो फिर वही तानों का सिलसिला ,वही दौर चलता रहता। कई बार थक हार कर अगर उसकी आंख लग जाती तो फिर वही क्लेश शुरू हो जाते।

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माधुरी के माता पिता खुश खबरी सुन जब बधाई देने माधुरी के ससुराल पहुंचे तो वहां उनका बहुत तिरस्कार हुआ ।अपने माता-पिता का तिरस्कार देख माधुरी को बहुत अफ़सोस हुआ और वह चुप ना रहा पाई, नतीजन उसके ससुराल वालों ने उसे वापस मायके भेज दिया। सास ससुर के दिए फरमान पर उसका पति कुछ ना बोला। यह सब देख दुखी मन से माधुरी मायके वापस आ गई।

मायूसियों के दमन ने माधुरी को थमा हुआ था पर माधुरी  निराश नहीं हुई। उसने हिम्मत नहीं हारी। वह जानती थी की राह कठिन है ,चलना मुश्किल है । अब उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा । वह बार-बार गिरेगी पर फिर उसे बार-बार  उठाना होगा।

इस हालत में दुनिया उसे पर हंसेगी भी, ताने भी कसेगी फिर भी वह एक  कर्मठ योद्धा की तरह आगे बढती गई।वह अपने मन मे आशा का दीप जला अपने एक नए सवेरे की खोज करती गई। उसने ठान लिया था कि नामुमकिन कुछ भी नहीं।

वह अपना और अपने होने वाले बच्चे का अकेले ध्यान रख सकती है फिर क्या था वह सब कुछ ईश्वर को सौप, अपनी नौकरी पर जाती रही,  अपने बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए अपना कर्तव्य निभाती रही। जल्द ही एक स्वस्थ बेटे को जन्म दे वह जीवन के प्रति सकारात्मक ऊर्जा से भर गई। धीरे अब उसे यकीन हो गया था कि धीरे ही सही ससुराल वाले को भी वो अपना बना ही लेगी क्योंकि अगर ठान लो तो नामुमकिन कुछ भी नही, कुछ भी नही। 

स्वरचित व मौलिक

सोनिया सरीन दिल्ली

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