आधुनिक बहू – कंचन श्रीवास्तव

हर घर की राम कहानी सुन सुन के रेखा का जी बैठा जा रहा ,सजाने भगवान कैसा जमाना आ गया कोई किसी से परेशान कोई किसी से,पर इस डर से बच्चे कुंआरे बैठे रहेंगे, और फिर कब तक एक दिन तो करना ही पड़ेगा ,अब वो अच्छी आए चाहे बुरी,

जो भी है कलेजा मजबूत करके करना तो पड़ेगा ही बस यही सोचकर छोटे की शादी कर दी , वो भी इस प्रण के साथ “कहते हैं ना कि चुप हजार भला टालती है” कि वो कभी इंटर फियर नहीं करेगी।

हां ठीक भी है तभी तो शादी के बाद सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है ।

भाई जितना हो सकता है वो रसोई से लेकर बाहर तक का काम सलटा देती है बाकी बचा वो करती है ।

इकलौती बहू होने के कारण मान सम्मान तो है  पर जहां उचित लगता है कभी कभार टोक भी देती है जिसका उसने जच किया कि वो बुरा नहीं मानती हंस कर टाल देती है।


इससे इसको बड़ी तसल्ली मिलती कि चलो और घरों की तरह यहां किचकिच नहीं है और तब तो वो पूरी सन्तुष्ट हो गई जब सुबह जल्दी उठकर पूजा की तैयारी करनी है क्योंकि वो चाहती है कि पति और बेटे के जाने से पहले पूजा हो जाए जिससे पैर छूकर वो भी अन्न गृहण कर सके इस  बात से वो रात भर सोई नहीं  पर जाने कैसे उसे चार बजे नींद आ गई तो वो उठी ही नहीं

इस बीच बहू उठकर झाड़ू लगाकर नहा धो पूजा पाठ करके पूजा की सारी तैयारी करके तब सासू मां को जगाया।

वो तो जग कर हड़बड़ा गई कि अरे कैसे होगा आज तो बहुत देर हो गई पर जब उसने कहा कि मां आप नहाकर तैयार होंगे हम सारी तैयारी कर चुके हैं तो उन्हें आश्चर्य के साथ साथ खत्म संतुष्टि भी हुई कि चलो भले आधुनिक है पर रीति रिवाज परम्परा धर्म पूजा पाठ सब मानती है ।

बस उठी और नहा धोकर तैयार हो सांस बहू वटवृक्ष की पूजा करने पहुंच गई।

स्वरचित

कंचन आरज़ू

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