बेटा मयंक तेरे पापा की सांस शायद तुझे देखने के लिए ही अटकी है। महिमा जी अपने विदेश में बसे बेटे से एक बार आने की विनती करते हुए फोन पर ही सिसकने लगी ।
पर उनके बेटे मयंक पर उनकी भावुक बातों का कोई असर नहीं हुआ। और बोला मां अब ये रोना-धोना बंद करो। मैंने बता तो दिया कि मैं यहांँ काम में इतना फँसा हुआ हूंँ कि बिल्कुल नहीं आ सकता और हां पापा को मेरी नहीं किसी अच्छे डॉक्टर की जरूरत है। डॉक्टर को दिखाओ। पर बेटा ..लेकिन उधर से फोन कट चुका था। महिमा जी दोनों हाथों से अपना सर पकड़कर वहीं बैठकर रोने लगी।
महिमा जी की आंखों के आगे तीस साल पहले का समय घूम गया।
जब दो बेटियाँ होने के बाद एक बेटे की चाह में कोई दर ऐसा नहीं छोड़ा था जहां उन्होंने मन्नत ना मांगी हो। जो कोई जो कुछ भी सलाह देता वे उस काम को करने में जरा भी पीछे ना हटती । आखिरकार भगवान ने उनकी सुन ली। उनके यहांँ तीसरी बार में एक बेटे ने जन्म लिया।
जिसका नाम उन्होंने बड़े प्यार से मयंक रखा। महिमा जी और उनके पति रितेश जी बहुत खुश थे। बहने भी अपने भाई को देखकर निहाल हुई रहती।
समय गुजर रहा था। ज्यादा लाड-प्यार की वजह से मयंक बदतमीज होता जा रहा था। वह बड़ों की इज्जत तो बिल्कुल भी नहीं करता था। लेकिन उसकी एक खूबी थी कि वह पढ़ने में होशियार था। महिमा जी की दोनों बेटियां भी पढ़ लिखकर नौकरी करने लगी थी । अच्छा घर-वर देखकर महिमा जी उनकी शादी करके निश्चिंत हो चुकी थी।
उन्हें याद आ रहा था। जब मयंक ने पढ़ने के लिए विदेश जाने की जिद्द की तो रितेश जी ने मना कर दिया। वे बोले कि विदेश भेज कर बेटे को अपने हाथ से गया समझो। सारे रिश्तेदारों ने भी मना किया कि एक लड़के को बाहर भेज दोगे तो सुख-दुख में भी साथ खड़ा नहीं हो पाएगा। यहांँ अपने देश में भी अच्छी नौकरियाँ हैं।
पर महिमा जी ने अपने पति को यह कह कर चुप कर दिया कि सब हमारे बेटे से जलते हैं। सबको यह लगता है कि वह उनके बच्चों से आगे ना निकल जाए। आखिर रितेश जी ने अपनी सारी जमा पूंजी मयंक की पढ़ाई में लगा दी। केवल उनका घर और पेंशन उनके पास बची।
तभी महिमा जी को दूसरे कमरे से जोर से बेटी के रोने की आवाज आई। उनका दिल जोर से धड़क उठा।वे बदहवास उधर की ओर भागी।देखा तो रितेश जी ये दुनिया छोड़कर जा चुके थे ।
उनकी आंँखें खुली थी शायद अपने बेटे के इंतजार में । महिमा जी पत्थर सी बस वहीं बैठ गई। रिश्तेदारों ने बेटे को भी खबर कर दी। लेकिन उसने कहा मैं अभी नहीं आ सकता। विपिन( चाचा का लड़का) पापा का अंतिम संस्कार कर देगा।
महिमा जी ने अपनी बेटियों और दामाद की तरफ देखा जिन्होंने चार महीने से रितेश जी की सेवा में दिन रात एक कर दिया था। क्या इंसान इसी दिन के लिए बेटे की चाह रखता है ।
दोनों दामादों ने बेटे से ज्यादा फर्ज निभाया । वहां बैठे सभी लोग आपस में बेटे के बारे में खुसर-फुसर कर रहे थे । जब वहाँ बातें होने लगी कि अंतिम संस्कार कौन करेगा? महिमा जी बोली मेरी बड़ी बेटी अपने पापा का अंतिम संस्कार करेगी। वे बुदबुदाते हुए बोली शायद कुछ सोच समाज की बेटी बेटों के बारे में बदल जाए।
अपने पापा की मृत्यु के दो महीने बाद मयंक आया। लेकिन महिमा जी का पुत्र मोह अब खत्म हो चुका था । उन्होंने मयंक से ज्यादा बात नहीं की। चार- पाँच दिन रुकने के बाद मयंक एक दिन महिमा जी के पास बैठकर अपनी आवाज में मिठास घोलते हुए बोला माँ इस मकान के कागज कहांँ हैं ।
आप यहां अकेली कैसे रहेंगी इस मकान को बेच देते हैं । आप मेरे साथ चलना। नहीं यह मकान नहीं बिकेगा। और ना ही मैं कहीं जाऊंँगी । प्यार से काम होता ना देखकर मयंक बेशर्मी पर उतर आया और बोला, मैं तुम्हारा इकलौता बेटा हूंँ और जो कुछ भी तुम्हारा है उस पर मेरा अधिकार है।
अधिकार, अधिकार कैसा ?वाह बेटा अधिकार याद है, फर्ज याद नहीं आया। महिमा जी ने कठोर स्वर में कहा कि जब तक मैं जिंदा हूंँ ठीक है। मेरे बाद मेरा सब कुछ मेरी बेटियों का है। अब तुम यहांँ से जाओ और कभी वापस मत आना।
नीलम शर्मा