अदालत का अनोखा फैसला – एम. पी. सिंह 

आनंद ने एक हाथ से डोर बेल बजाई, दूसरे हाथ मै मिठाई का डिब्बा और नज़रे नेम प्लेट पर टिकी थी, जहाँ लिखा था ” रिटायरड जज ठाकुर अरविन्द सिंह”.

जज साब ने दरवाजा खोला, और आनंद को सामने खड़ा देखकर बोले, मैंने तुम्हे पहचाना नहीं? आनंद ने आगे बढ़कर पाँव छुए और बोला, मै आनंद हूँ, आज से लगभग 14 साल पहले आपकी अदालत मैं एक तलाक का केस आया था जिसमे एक छोटे बच्चे ने माँ पिता के साथ नहीं रहने कि गुजारिश कि थी और आपने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कस्टड़ी दादा दादी को दी थी, मै वहीं छोटा लड़का हूँ, अब मै इंजीनियर बन गया हूँ और आज मेरी नौकरी लग गई है. 

ये सुनते ही जज साब को वो दिन याद आ गए, रिटायर होने से कुछ पहले ये केस अखबारों की सुर्खिया बना था, और बहुत लोगों ने इसे सराहा था और बहुतो ने क्रिटीसाइज़ किया था. 

जज साब की आँखों के सामने सारा केस घूमने लगा….

मोहन और राधा कि शादी को दस साल हो गए थे, उनका एक 8 साल का बेटा भी था, आनंद, जिसे दोनों बहुत प्यार करते थे. दोनों नौकरी पेशा वाले होने से दोनों मै थोड़ा अहम था, जो बीच बीच मै घर का माहौल तनावपूर्ण बना देता था, अचानक, एक दिन इस तनावपूर्ण माहौल ने तूफान का विकराल रूप ले लिया और नौबत तलाक तक पहुंच गईं. बहुत समझाइश / कॉउंसलिंग हुई पर कोई फायदा नहीं हुआ. आखिर कूलिंग पीरियड के बाद जज साब ने फाइनल हियरिंग मै दोनों को बच्चे के साथ बुलाया. अदालत में जज सब ने दोनों से 3 सवाल पूछे, 

पहला सवाल – क्या ये शादी दोनों की मर्जी से हुई थी.? 

दूसरा सवाल – क्या ये बच्चा दोनों की मर्जी से हुआ था? 

तीसरा सवाल – क्या ये तलाक दोनों की मर्जी से हो रहा है?

तीनो सवालो का जवाब था, हाँ. 

फिर जज साब ने बेटे की और इशारा करके पूछा, तो बताओ इस मासूम की इसमें क्या गलती है ? ये किसके भरोसे रहेगा?  दोनों एकसाथ बोले, मेरे साथ. 

जज साब बोले, अगर बेटा माँ के साथ रहता है तो बाप – बेटे को एक दूसरे की गैर मोज़ूदगी खलेगी. और अगर बेटा पिता के साथ रहता है तो माँ बेटा दोनों को एक दूसरे की कमी महसूस होंगी, दोनों सूरत मैं बच्चा ही भुगतेगा. 

फिर जज साब बोले, तो इस बच्चे की मर्जी कहाँ है, ये किसके साथ रहना चाहता है? जज साब ने बच्चे से उसकी राय पूछी, तो वो बोला, सर, मैं दादा जी के साथ रहूंगा, 

बच्चे की बात सुनकर जज साब ने फैसला सुनाते हुए कहा, कि बच्चा अपने दादा दादी के साथ रहेगा, बच्चे के भरण पोषण के लिए आप दोनों हर महीने दस दस हज़ार रु. माह की 5 तारीख तक जमा कराओगे. ये फैसला अभी 15 दिन तक सुरक्षित है, तब तक आप दोनों अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकते हो, अन्यथा, तुम दोनों भी बेटे की तरह अकेले रहने का दर्द झेलने के लिए तैयार रहो.

जज साब का फैसला सुनकर मोहन और राधा दोनों रोने लगे, दोनों ही आनंद से बहुत प्यार करते थे और उससे अलग नहीं होना चाहते थे. आनंद की खुशी के लिए मोहन और राधा ने अपने अपने अहंकार को छोड़ कर फिर से साथ मै जिन्दगी की नई शुरुवात करने का फैसला किया और तीनो फिर से एकसाथ रहने लगे. 

आपके उसदिन के फैसले के कारण ही मुझे माँ पिताजी दोनों का प्यार मिला.आनंद की आवाज सुनकर, जज साब अतीत से वापस लोट आये. इसी का परिणाम है की मेरी सही परवरिश हो सकी और में पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो सका. सर, आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

साथियो, कहने को तो अलगाव पति पत्नी का होता है, पर भविष्य ओलाद का दाव पर लगा रहता है. इसलिए अपने निजी स्वार्थ और ईगो को अलग रखकर, ओलाद के भविष्य के बारे में सोच समझ कर ही ऐसे कठोर फैसले लेने चाहिए. 

क्या जज का फैसला सही था? आप अपनी राय जरूर दें.

लेखक

एम. पी. सिंह 

(Mohindra Singh)

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