अच्छाई अभी भी जीवित है – शिव कुमारी शुक्ला 

रचना जी मेडिपल्स हास्पिटल जोधपुर के वेटिंग हॉल में बैठीं थीं।उनका नम्बर बहुत पीछे  था सो करीब दो से तीन घंटे लगने वाले थे।वे बैठीं -बैठीं इधर -उधर नजर दौडा रहीं थीं।नये मरीज आ रहे थे और पुराने दिखा कर लौट रहे थे। अच्छी खासी भीड़ जमा थी। वेटिंग हॉल बीच में था और एल शेप में विभिन्न रोगों से संबंधित

डाक्टर्रस के चैम्बर थे । दूसरी एक आर्म की तरफ कुछ जांचों जैसे ई सी जी ,इको का कमरा था।अपना नाम पुकारने पर मरीज अपने से सम्बंधित डाक्टर के कमरे में जाता।

रचना जी के पास समय था  सो उनका लेखक मन इधर उधर भटकने लगा शायद कहानी के लिए कोई मसाला मिल जाए। फिर वो आने जाने वाले मरीजों और उनके परिजनों में खो गईं। उन्हें देख उनको ऐसा लगा आजकल जो सोशल मीडिया पर रील्स और कहानियों की बाढ सी आ गई है जिसमें सास-बहू, बेटे -बहू, बेटी -दामाद द्वारा घर के बड़े बुजुर्गो का अपमान करते दिखाई  दे रहे हैं। उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ते दिखा रहे हैं, उन्हें रात-दिन घर में अपमानित कर उनसे घर के काम करवाते दिखा रहें हैं।खाने को पूरा खाना नहीं देते, एक -एक पाई के लिए मोहताज दिखा रहे हैं इन सबको धता बताते यहां ऐसे दृश्य थे कि उन्हें देखकर मन भावुक हो उठा और अंतर्मन से एक ही आवाज आई कि आज भी परिवार में सामंजस्य है और सब मिल जुल कर खुश रहते हैं। ऐसे परिवार आज भी हैं जहां पारिवारिक मूल्यों को अभी भी परिवार की धुरी समझा जाता है और उन्हें निभाया भी जाता है।

बुराई और अच्छाई का चोली-दामन का साथ है जहां कुछ परिवारों में बुराईयों ने अपने पैर पसार लिए हैं वहीं कुछ परिवारों में आज भी अच्छाई मौजूद है।वही संयुक्त परिवार वाली सोच कि सुख-दुख में सब साथ हैं।

यहां जो दृश्य मैंने देखे उनमें से कुछ को कहानी के माध्यम से आपके सम्मुख रख रही हूं।

दृश्य एक 

एक युवती जिसके चेहरे पर एक हाथ लम्बा घूंघट है जो अपनी पारम्परिक पोशाक में ही व्हील चेयर पर एक बुजुर्ग व्यक्ति जो उसके  ससुर हैं को लिए आती है साथ में सासुमां भी हैं।वह सासु मां को कुर्सी पर बैठा व्हिल चेयर एक ओर लगा देती है और स्वयं खडी है। ससुर की उपस्थिति में कुर्सी पर नहीं बैठ रही। कुछ ही समय बाद उसका पति हाथ में फाइलें लिए आता है और स्वयं पापा के पास खड़ा हो पत्नी को दूसरी ओर जाकर बैठने को कहता है।एक हंसता खेलता परिवार जिसमें आपस में रिश्तों की समझ है।

दृश्य दो

तभी दूसरी व्हील चेयर आती है जिस पर बैठे बुजुर्ग पिता को बेटा लेकर आता है साथ में एक चौदह-पंद्रह वर्षीय बालक है जो शायद उनका पोता है। बेटा फाइलें लेकर कहीं प्रविष्टी कराने जाता है तो पोता मुस्तैदी से अपने दादा जी को सम्हालता है। रिश्तों की अहमियत यहां भी दिखती है।

दृश्य तीन

बेटे के एक हाथ में कुछ फाइलें एवं जांच रिपोर्टस हैं वह दूसरे हाथ से अपने पापा का हाथ पकड़े धीरे -धीरे चल रहा है। दोनों के चेहरों  पर मायूसी है । कुछ देर बैठने के बाद वे डाक्टर को दिखाते हैं और दोनों हंसते हुए बतियाते जा रहे होते हैं शायद जांच रिपोर्ट सही आई है उसी की प्रतिक्रिया दोनों की हंसी में समाहित है।

दृश्य चार

एक बेटी अपनी मम्मी को व्हील चेयर पर लेकर आती दिखती है साथ में उसका भाई है दोनों मम्मी को पूरे ध्यान से सम्हालते हुए। परिवार में प्रेम की गर्माहट ।

दृश्य पांच 

पति वैसाखी के सारे चल रहा है। पत्नी उसे एक हाथ से उसे सम्हालते हुए दूसरे में फाइल्स एवं जांच रिपोर्ट। डाक्टर के चैम्बर से बाहर निकल कर कुछ गुफ्तगू करते हुए 

चिंता के भाव चेहरे पर हैं शायद कोई बड़ा इलाज या आप्रेशन के लिए राय दी है सो दोनों चिन्तीत मुद्रा में बाहर जाते हुए।

दृश्य छः 

एक छोटा बच्चा छ-सात वर्ष का सुंदर सा आकर्षक व्हील चेयर पर पैर में प्लास्टर। पिता व्हील चेयर चलाते हुए आते हैं साथ में मम्मी उसकी सम्हाल करते हुए। वात्सल्य प्रेम से आत्म विभोर।

दृश्य सात

एक बहूअपनी दादी सास को व्हील चेयर पर लाते हुए साथ में पूरा परिवार उसके दादा ससुर, सास-ससुर एवं पति अत्यंत चिंताजनक शायद कोई गम्भीर समस्या है।

दृश्य आठ

एक सास-बहू मेरे पास ही बैठीं हैं,बेटा कुछ ही दूरी पर फाइलें लिए खड़ा है।बहू सास को समझा रही थी कि अच्छी तरह खुलकर बताना डाक्टर साहब जो पूछें और आपको जो परेशानी है।

सास बोली पहले वाली परेशानी भी बताऊं क्या।

बहू वह तो ठीक है ना अब। अभी जो हो रही है वह बताना।

सास तू चल मेरे साथ तू बता देना मैं इतना नहीं बोल पाऊंगी।

नम्बर आने पर सास-बहू अंदर जाती हैं।इतनी बहू द्वारा सास की देखभाल और क्या चाहिए। इतना दोस्ताना व्यवहार।

दृश्य नौ

मेरे पीछे बैठे ग्रामीण परिवेश से आए प्रोढ दम्पत्ति। पत्नी को पति समझा रहा है ऐसे बताना सब कह देना जो भी तुझे तकलीफ है। शर्माना मत खुलकर बोलना नहीं तो फिर तू ठीक नहीं होगी।

पत्नी पर तुम भी साथ रहना मैं भूलूं तो तुम बता देना।ऐसा आपसी सौहार्द्र।

दृश्य दस

एक बेटी अपनी मम्मी के साथ आई।बेटी पढ़ी-लिखी थी जबकि मम्मी ज्यादा कुछ समझदार नहीं लग रहीं थीं दवा और बीमारी के सदृश। बेटी और मम्मी आपस में चर्चा कर रहीं थीं मम्मी आप पूरी बात नहीं बताती हो। पहले भी आपने ऐसा ही किया था। अभी मुझे पूरा बोलकर बताओ क्या क्या कहोगी।

पर बेटा तू मेरे साथ रहना तो मुझमें हिम्मत रहेगी।

ठीक है मम्मी पर आप घबराती क्यों हैं, डाक्टर के सामने बोला करो।

दृश्य ग्यारह 

तभी पापा व्हील चेयर पर जिसे चलाते दामाद आ रहा था और बेटी मम्मी को साथ लिए। बहुत देर हो गई थी सो बेटी दामाद चिंतीत हो रहे थे कि कहीं इन लोगो की शुगर कम ना हो जाए। कुछ खाने के लिए मनुहार करते।

ऐसे कितने ही अनगिनत दृश्य वहां

 बैठे -बैठे देखने को मिले जिन्हें देखकर लगता कि रिश्तों के बीच कडीयांअभी भी जुड़ी हुईं हैं। हां मतभेद हो सकते हैं किन्तु मनभेद नहीं हैं।सबके हृदय में एक दूसरे की चिंता है स्वास्थ्य को लेकर। अपने परिवार के सदस्य को शीघ्र एवं पूर्ण स्वास्थ्य लाभ दिलाने को उत्सुक हैं।

यही एक दूसरे की चिंता परिवार को आपस में जोड़कर रखती है। यदि ऐसा ना होता तो अभी तक वृद्धाश्रमों की बाढ आ जाती। हां कुछ कृतघ्न बच्चे होते हैं जो अपने माता-पिता को उम्र के इस पड़ाव पर अकेले जीने मरने के लिए छोड़ देते हैं अन्यथा उपरोक्त दृश्यों को देख कर तो ऐसा लगता है कि अच्छाई अभी भी जीवित है जिसे संस्कारी बच्चे आगे भी जीवित रखेंगे। पारिवारिक मूल्य अभी भी हमारे संस्कारों में कूट-कूट कर भरे हैं केवल उन्हे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है पीढ़ी दर पीढ़ी।

शिव कुमारी शुक्ला 

जोधपुर राजस्थान 

27-10-25

लेखिका बोनस प्रोग्राम 

कहानी संख्या आठ 

स्वरचित एवं अप्रकाशित

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