प्रीती दीदी बचपन से ही बेहद सुंदर थीं। गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श, लंबा कद — जैसे खुद ईश्वर ने समय लेकर तराशा हो। घर हो या बाहर, जहां जातीं, तारीफों की बौछार होती। कोई उन्हें देखे बिना आगे नहीं बढ़ता और कोई उनके रूप की तारीफ किए बिना चुप नहीं रहता।
समय के साथ तारीफों का असर उनके स्वभाव पर भी पड़ने लगा। वह विनम्र लड़की अब धीरे-धीरे अहंकारी बनती गई। उन्हें लगता, दुनिया में रूप ही सबसे बड़ी ताकत है और जो सुंदर नहीं, वो उनसे कमतर है।
जब उनकी शादी एक साधारण, कम बोलने वाले और बेहद शांत स्वभाव के लड़के से हुई, तो प्रीती दीदी को यह रिश्ता अपने “स्तर” से नीचे लगा। लोग मजाक भी उड़ाते — “कौवा को हंस मिल गया!” यह सुनकर उनके घमंड को जैसे और बल मिला।
वह अपने पति को केवल एक जरूरत भर समझतीं, उनके साथ कर्मचारी जैसा व्यवहार करतीं, बात-बात पर ताने देतीं।पति ने कभी कुछ नहीं कहा। चुपचाप सहते रहे। लेकिन धीरे-धीरे वह अंदर से टूटने लगे और एक दिन डिप्रेशन में चले गए।
घर एक घर न रहा, एक बोझ बन गया।समय बीतता गया।एक दिन अचानक प्रीती दीदी को सफेद दाग (vitiligo) होने लगे। चेहरे की चमक धुंधली पड़ने लगी। वह जो आईने से प्यार करती थीं, अब खुद को देखने से डरने लगीं। लोग जो कभी तारीफों के पुल बांधते थे, अब नजरें फेर लेते।
अब उनके पास न सुंदरता बची थी, न अहंकार।पर तब भी एक इंसान ऐसा था जो नहीं बदला — उनका पति।
वहीं व्यक्ति जिसने जीवनभर उनकी उपेक्षा सहन की थी, अब दिन-रात उनकी सेवा में लगा रहता। उन्हें खाना बनाकर देता, दवाइयाँ लाकर देता, हर दिन उन्हें हौसला देता।
एक दिन प्रीती दीदी फूट-फूट कर रो पड़ीं — “मैंने तुम्हें कभी कुछ नहीं समझा… और तुम आज भी मेरा सबसे बड़ा सहारा हो। मुझे माफ कर दो।”उनकी आँखों में पछतावे की आग थी और चेहरे पर अहंकार की राख।
और उनके पति ने सिर्फ मुस्कराकर कहा, “तुम्हारा प्यार कभी नहीं माँगा, बस तुम्हारा साथ चाहता था।
लेखिका
रेनू अग्रवाल