आँगन में तुलसी का चौरा, दीवार पर टंगी घड़ी की टिक-टिक और रसोई से आती सब्ज़ी की हल्की-सी ख़ुशबू… यही था वह घर, जहाँ सबकी चहेती खुशी रहती थी। नाम के अनुरूप सबको खुशियाँ बाँटने वाली। कोई काम कह दो, तो तुरंत हाज़िर। कोई ज़िम्मेदारी सौंप दो, तो पूरी शिद्दत से निभाने वाली। खुशी हमेशा से रिश्तों को निभाने में सबसे आगे रहती। चेहरे पर चिर परिचित मुस्कान और होंठों पर एक ही शब्द — “हाँ।”
सास कुछ कहें — “हाँ माँ।”
जेठानी बोले — “हाँ भाभी।”
पर यही सरलता धीरे-धीरे उसके लिए बोझ बन रही थी। उसकी जेठानी ‘रमा’ ,खुशी के इस स्वभाव का फायदा उठाकर हर बार चिकनी-चुपड़ी बातें करके अपना काम उससे निकलवा लेती और खुशी यह सोचकर कि भाभी ही तो है, चाह कर भी ना नहीं कर पाती।
उस दिन खुशी डॉक्टर से चेकअप करवा कर लौटी थी। सातवाँ महीना चल रहा था, थकान से चेहरा उतरा हुआ था। लेकिन, जैसे ही वह कमरे की ओर आराम करने के लिए बढ़ी, रमा की आवाज़ कानों में गूँजी—
“अरे वाह! खुशी, तू आ गई! देख न, रानो का प्रोजेक्ट कल जमा करना है। तेरे जैसा अच्छा मॉडल तो कोई बना ही नहीं सकता। तुम फटाफट से बनवा दे ना।”
सास ने बीच में कहा—
“अरे बहू! अभी-अभी तो ये अस्पताल से लौटी है, ज़रा दो घड़ी आराम कर लेने दे।”
इसपर रमा हँसते हुए बोली—
“अरे! माॅंजी,आराम से बैठकर ही बनवाना है। मैं ही बनवा देती। लेकिन, मेरे हाथ में खुशी जितनी सफाई नहीं है ना।”
फिर खुशी की ओर देखते हुए मुस्कुराते हुए बोली “क्यों खुशी बनवा देगी ना,रानो का प्रोजेक्ट?”
यह सुनकर खुशी ने अपनी थकी आँखों के बावजूद वही पुरानी मुस्कान पहनी और हर बार की तरह, सिर हिलाकर ‘हाँ’ कह दिया।
“ठीक है भाभी, बनवा दूँगी।”
“ठीक है तू आराम से यहाॅं बैठकर प्रोजेक्ट बनवा। मैं तेरा खाना यही ला देती हूॅं।”
आए दिन इसी तरह की मीठी-मीठी बातें करके रमा खुशी से अपना काम निकलवाती रहती।
कभी कहती “तेरे जैसी पनीर की सब्ज़ी तो कोई बना ही नहीं सकता।”
कभी-“खुशी, बच्चों का चार्ट तू बना दे, तू तो कलाकार है।”
ऐसे ही दिन बीतते रहे और कुछ महीनों बाद खुशी एक प्यारे से बेटे की माॅं बन गई।
अब खुशी की जिम्मेवारियाॅं बहुत बढ़ चुकी थी। अपने बच्चे का काम, घर-गृहस्थी के काम। लेकिन, रमा का रवैया वही रहा। वह वैसे ही मीठा-मीठा बोलकर खुशी से अपना काम करवाती रहती।
खुशी की सास उसे कई बार समझाती “बहू, तू ना कर दिया कर। ये रमा खुद तो कोई काम करती नहीं। सारा काम तुझ पर डाल देती है।”
“कोई बात नहीं माॅं। भाभी और बच्चे भी तो मेरे अपने ही हैं। इनका काम करके मुझे खुशी मिलती है और परिवार में तो एक दूसरे की मदद करनी ही चाहिए। ऐसे ‘ना’ करना अच्छा नहीं लगता। रिश्तों में मिठास बनाए रखने के लिए, परिवार के लिए मैं थोड़ा एक्स्ट्रा काम कर भी दूॅं तो क्या फर्क पड़ेगा।” उसकी इस सरलता और अपनेपन पर उसकी सास मुस्कुरा कर रह जाती।
पर, एक दिन ने सब कुछ बदल दिया।
सासू माॅं तीर्थ यात्रा पर गई हुई थी और खुशी ज़रूरी सामान लेने बाज़ार गई थी।बेटे को उसने पहली बार थोड़ी देर के लिए रमा के पास छोड़ा था। वह निश्चिंत थी कि उसका मुन्ना अपनी ताई के पास है। मन में विश्वास था कि जेठानी रमा मुन्ने का वैसे ही ध्यान रखेगी जैसे, वह रमा के बच्चों का रखती है।
लेकिन, जैसे ही वह बाजार से लौटी तो बाहर से ही बेटे के ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ सुनाई दी। उसके इतने जोर-जोर से रोने की आवाज सुनकर उसका दिल धक रह गया। दौड़कर अंदर पहुँची तो देखा—मुन्ना पालने में भूख से तड़प रहा था, आँसू गालों पर लुढ़क रहे थे… दूध की बोतल उसके बगल में पड़ी थी। शायद, हाथों से छूट कर गिर गई होगी और रमा उसके रोने से बेखबर मोबाइल पर गप्पें मारने में व्यस्त थी।
मुन्ने को इस हाल में देखकर खुशी की आँखें भीग गईं। उसने दौड़कर मुन्ने को पालने से उठाकर अपने सीने से लगा लिया।उसे अचानक आया देख रमा पहले तो
सकपका गई। फिर मुस्कुराते हुए बोली “अरे! खुशी, देख अपना मुन्ना कितना बदमाश हो गया है। अभी तो मेरे साथ खेल रहा था और अब तुझे देख कर कितनी जोर-जोर से रोने लग गया।”
खुशी ने रमा से कुछ नहीं कहा और मुन्ने को लेकर अपने कमरे में आ गई। आज उसके भीतर की हर ‘हाँ’ टूटकर खामोशी में बदल गई थी। मुन्ने को गोद में लिए वह सोचने लगी —”मैंने इनके बच्चों को हमेशा अपनाया, उनका दर्द अपना माना, और आज मेरे बेटे की ये हालत…? अब बहुत हुआ। अब और नहीं। माॅंजी सही कहती हैं। मुझे ना बोलना सीखना होगा।”
अगले दिन रमा ने फिर वही अंदाज़ दिखाया
“अरे खुशी! ज़रा रानो का हिंदी का हॉलीडे होमवर्क तो करवा दे। मैं तेरे जितना अच्छा नहीं करा सकती। पिछली बार तूने कराया था तो उसे फुल मार्क्स मिले थे।
रमा के शब्द वही थे, मुस्कान वही थी, अंदाज़ वही था…पर, आज कुछ तो फर्क था। आज खुशी का अंदाजेबयां बदला हुआ था।
उसने बेटे को गोद में थामा और मुस्कराते हुए बोली—“करवा तो देती भाभी, लेकिन अभी मुझे मुन्ने को दूध पिलाना है। मालिश करनी है और सच कहूँ तो, सुबह से किचन में काम कर करके बहुत थक गई हूॅं। अब मैं थोड़ी देर आराम करूॅंगी। इसलिए रानो को होमवर्क आप ही करा दीजिए।” कहती हुई खुशी मुन्ने को लेकर अपने कमरे में चली गई।
खुशी की बातें सुनकर रमा वहीं खड़ी की खड़ी रह गई। पहली बार उसे एहसास हुआ कि खुशी अब वही पुरानी खुशी नहीं रही। खुशी बदल चुकी है। अब वह उसका और फायदा नहीं उठा सकती।
सास दरवाज़े पर खड़ी सब देख रही थीं। वो धीमे-धीमे चलती हुई खुशी के कमरे तक पहुँची। खुशी अपने बेटे को दूध पिलाते हुए गहरी सोच में डूबी थी।
सास ने करीब जाकर, प्यार से खुशी के सिर पर हाथ फेरा “खुशी, इतना मत सोच बहु। तुमने जो भी किया, बिल्कुल सही किया। अगर कोई हमारी अच्छाई का गलत फायदा उठाने लगे तो उसे ‘ना’ कहना भी जरूरी होता है। मैं आज बहुत खुश हूॅं। आखिरकार ‘बहू ने ना बोलना सीख लिया।’
धन्यवाद
साप्ताहिक विषयप्रतियोगिता- #बहू ने ना बोलना सीख लिया!!
शीर्षक-“अब और नहीं…”
लेखिका-श्वेता अग्रवाल, धनबाद, झारखंड।