पितृ विहीना मयूरी शैशवास्था से ही अपनी मां के साथ ही चाचा लोगों के आश्रित हो गई थी। मां आर्थिक रूप से कमज़ोर थीं साथ ही सामाजिक अंध विश्वासों और मान्यताओं से ग्रसित थीं।
पिता की मृत्यु के समय एकत्रित किसी करीबी रिश्तेदाए
र ने कहा “इस परिवार मे ऐसा ही होता है।जब कोई परिवार से अलग होता है,तो किसी न किसी की मृत्यु अवश्य होती है।”
यह बात मां के दिलो-दिमाग में घर कर गई । ।।बचपन में तो मयूरी का समय खेलने कूदने में व्यतीत हो गया। इस अवस्था में किसी बच्चे को क्या आभास होता है कि वह किस वातावरण में पल रही है।
समयांतराल मयूरी ने किशोरावस्था में पदार्पण किया। धीरे-धीरे उसे इस बात का आभास होने लगा कि परिवार में कमज़ोर स्थिति वालों की कोई इज्ज़त नहीं होती। लोगों को उसकी अच्छाई नज़र नहीं आती, सिवाय दोष निकालने के।
एक वर्ष गर्मी की छुट्टियों में मयूरी अपने छोटे चाचा जी के यहांँ गई। उसने सोचा था कि एक ही जगह रहते रहते मन ऊब जाता है। थोड़ा घूम फिर आएं फ़िर तो यहां आना ही है, पढ़ाई जो पूरी करनी है।
मयूरी जो सोचकर बड़ी प्रसन्नता से भरकर चाचा जी के यहांँ गई थी, वह प्रसन्नता अतिशीघ्र समाप्त हो गई । जैसे काले काले मेघों का साया पड़ गया।
उसे सुबह छः बजे ही उठ जाना पड़ता था। दिनभर घर के कामों में ही उलझी रहती थी। तर्क यह दिया जाता था कि अभी से काम करना सीखेंगी, तभी तो ससुराल में सुखी रहेंगी। चाची जी हमेशा दूसरों का उदाहरण देते हुए कुछ इसी तरह उपदेश देती रहती थीं। खुलकर हंसना, किसी बड़े से बातचीत करना उन्हें नागवार गुजरता था।कहती थीं “तुमने कोई सलीका नहीं सीखा,इतने ज़ोर से हंसा जाता है।”
एक दिन घर में एक मेहमान दम्पति आए। उनके आने से पहले ही उनके सत्कार में स्वादिष्ट भोजन बनाने की तैयारी होने लगी। “देखो ज़रा ध्यान से खाना बनाना। किसी तरह की कोई गड़बड़ी न हो। सब्जी और खीर बना लेना। पूरी मैं खाने पर गरम- गरम तल दूंगी।”चाची जी ने कठोरता से आदेश दिया।
खाना सभी ने बड़े चाव से आस्वादन करते हुए खाया और तारीफ़ भी किया। खाना समाप्त हो जाने के पश्चात सभी लोग थोड़ा विश्राम करने के उद्देश्य से लेट गए। मयूरी को लेटते ही गहरी नींद आ गई। शाम की चाय के बाद जब वे लोग चले गए, चाची जी का क्रोध प्रज्ज्वलित हो उठा ।मुख से अंगारे उगलना शुरू कर दिया “इसी उमर में इनकी पीठ टूटी रहती है। ज़रा सा काम किया,ख़राटे लेकर सो गयी । मेहमान घर में हैं, यह भी नहीं सोचा।”
मयूरी की आंखों में आंसू आ गए। चाची जी तो पैर पटकती चली गई ं। मयूरी भी जाकर अपने कपड़े समेटने लगी। उसने मन-ही-मन निर्णय लिया कि अब और नहीं। उसका स्कूल खुलने का समय करीब था। दूसरे दिन ही वह मां के पास चली गई।
स्वलिखित मौलिक रचना –
गीता अस्थाना,
बंगलुरू।
# अंगारे उगलना ,