शादी एक खूबसूरत एहसास है। एक हसीन ख़्वाब है। शादी का अरमान और एक प्यार करने वाले पति का सपना, अमीर हो या गरीब, सभी लड़कियों में एक सा होता है। ऐसा ही सपना विनीता ने भी देखा था। शादी भी हुई, परन्तु प्यार करने वाला पति पाने का सपना ऐसे टुटा कि उसने एक ऐसा फैसला लिया जिसकी कल्पना किसी भी लड़की द्वारा नहीं की जा सकती।
विनीता, जैसा नाम वैसा गुण, एकदम विनीत, नम्र, प्यारी, सुलझी, समझदार और सबको प्यार करने वाली। खासकर बच्चों से बहुत ही लगाव रखने वाली एक लड़की। यही सारे गुण उसके जीवन मे अंधकार ला देंगे उसने सोचा भी नहीं होगा। ऐसी गुणवान बहु के लिए कोई भी ख़ुशी ख़ुशी हाँ कर देता, परन्तु उसके पास एक अभाव था जो सारे गुणों पर भारी था।
उसने एक गरीब के घर जन्म लिया था। उसके पिता दहेज का इंतजाम नहीं कर सकते थे। जैसे तैसे करके उन्होंने उसे ग्रेजुएट बना दिया था इसलिए वह एक प्ले स्कूल में पढ़ा पाती थी।
एक दिन उस स्कूल की संचालिका ममता जी स्कूल के वार्षिक उत्सव में मेहमान बनकर आई। वे वहाँ विनीता से मिली और उसे बच्चों के साथ घुलमिल कर प्यार से बाते करते देखा। तुरंत ही उन्होंने उसे अपनी बहु बनाने का फैसला ले लिया। प्रिंसिपल से उन्होंने उसके बारे में जरूरी जानकारी प्राप्त की तथा दूसरे दिन उसके घर पहुंच गई।
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ममता जी का फेमली बिजनेस था जिसे उनके पति के मृत्यु के बाद उनका बेटा देखता था। शहर में उन्हें ज़्यादातर लोग पहचानते थे। विनीता के घर जाने के बाद ममता जी ने सीधे विनीता के पिता से उसका हाथ अपने बेटे के लिए मांग लिया। यह सुनकर विनीता के पिता ने कहा-” बहन जी आप लोग बहुत अमीर है और मेरी बेटी आपके स्कूल की एक शिक्षिका है,
भला यह विवाह कैसे हो सकता है? हम आपके घर में विवाह का सपना भी नहीं देख सकते है विवाह तो बहुत दूर की बात है। मैं तो अपनी बेटी का विवाह अपने जैसे किसी साधारण घर के योग्य लड़के से करना चाहता हूँ परन्तु दहेज नहीं जुटा पाने के कारण नहीं कर पा रहा हूँ। ईश्वर की इच्छा होगी तो सही लड़का मिल ही जाएगा।”
यह सब सुनने के बाद ममता जी ने कहा “ मुझे आपके बारे में सब कुछ पता है। सब जानने समझने के बाद ही यहाँ आई हूँ। जैसे दहेज नहीं दें पाने की आपकी मजबूरी है वैसे ही मेरी भी एक मजबूरी है।” इस पर विनीता के पिता ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा – ” आपलोग पैसे वाले है, आपको विवाह करने में क्या कठिनाई है।
” तब ममता जी ने कहा “दरसल मेरा बेटा विधुर है। शादी के एक वर्ष बाद ही बच्चों के जन्म के समय मेरी बहु की मृत्यु हो गई थी। आज दो वर्ष बाद भी मैं अपने बेटे की दुबारा शादी नहीं कर पाई हूँ। मैं अब तक अपने बेटे की शादी नहीं करना चाहती थी क्योंकि मुझे लगता था कि सौतेली माँ मेरे पोता पोती को अपने बच्चो के जैसा प्यार नहीं करेगी या सही ढंग से परवरिश नहीं करेगी,
परन्तु आपकी बेटी से मिलने के बाद मुझे लगा कि यही है जो मेरे बिन माँ के पोता पोती को माँ का प्यार दे सकती है। भाई साहब आपके पास पैसे भले ही कम होगा परन्तु आपने अपनी बेटी को अच्छे संस्कार देने मे कंजूसी नहीं की है। मैं बहुत उम्मीद लेकर आई हूँ मना मत कीजिएगा। खुद सोचिये यदि आपकी बेटी की शादी मेरे घर में हो जाएगी तो दूसरी बेटी के लिए भी बड़े घरो से रिश्ते आने लगेंगे।”
ऐसी ही चिकनी चुपड़ी बातें कर, उन्होंने विनीता के पिता को रिश्ते के लिए मना लिया। विनीता ने भी सोचा कि उसकी यह एक कुर्बानी से उसकी बहन की अच्छे घर मे शादी हो जाएगी और माँ पिताजी की भी चिंता समाप्त हो जाएगी। इस तरह विनीता का विवाह हो गया और वह मन में पति का प्यार पाने का अरमान लिए ससुराल आ गई।
बच्चे अपनी माँ से मिलकर बहुत खुश हुए। उन्हें उनकी दादी ने बताया था कि पापा उनकी माँ को लेने गए है। विनीता ने भी बच्चों को बड़े ही प्यार से गले लगाया और प्यार किया। बहुभोज बहुत शानदार हुआ। सारे मेहमानों के चले जाने के बाद विनीता को उसके कमरे मे पहुंचा दिया गया। लाज शर्म से सिमटी विनीता अपने पति का इंतजार करने लगी।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलने की आवाज़ आई, वह और भी शर्म से सिमट गई। थोड़ा इंतजार के बाद उसके पति ने कहा – “घूंघट उठा लो मुझे तुमसे कुछ कहना है। ” पहले तो वह कुछ समझी नहीं, परन्तु जब उसके पति ने फिर से वही बात दोहराई तो उसने घूँघट उठा लिया। फिर उसके पति ने कहा – मैं यहाँ आपसे माफ़ी मांगने आया हूँ।
इस पर उसने आश्चर्य से पूछा “माफ़ी? वो किस लिए?” उसके पति ने जवाब दिया “मैं अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता हूँ, हमारी लव मैरेज हुई थी। मैं उसे कभी नहीं भूल सकता और आपको अपनी पत्नी नहीं स्वीकार कर सकता हूँ इसीलिए माफी मांगने आया हूँ। आपको यहाँ किसी तरह की कमी महसूस नहीं होगी। माँ ने जब कहा कि आपको बच्चों से बहुत लगाव है
इसलिए आप मेरे बच्चो का अच्छे ढंग से ख्याल रखेंगी तब मैं विवाह के लिए मना नहीं कर सका और आपसे विवाह कर लिया। इस बात के लिए मुझे बहुत खेद है। यह सुनते ही विनीता को लगा जैसे उसके सर से छत हट गई और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। वह आवाक रह गई।
उसने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है। अब मायके लौटना भी सम्भव नहीं था। घर मे कुँवारी बहन थी। माँ पापा को भी दुखी नहीं करना चाहती थी। फिर उसने तुरंत ही एक फैसला लिया और कमरे से बाहर निकलते हुए अपने पति को पुकारा और
कहा “आपने अपनी बात कह ली अब मेरी भी सुनते जाइए।” उसके पति ने मुड़ते हुए कहा “जी बताइए”। बिनीता ने कहा “मैं भी आपसे माफी माँगना चाहती हूँ।” उसके पति ने पूछा “किसलिए? क्या मेरे बच्चों को माँ का प्यार नहीं देंगी?”
विनीता ने कहा “ऐसा नहीं है। माँ हूँ तो माँ का प्यार क्यों नहीं दूंगी?”
पति ने इस पर व्याकुलता से पूछा कि आप आखिर किस बात के लिए माफ़ी मांगना चाहती है? विनीता ने कहा “आपकी माँ ने कहा था कि शादी के बाद नौकरी नहीं करोगी, सिर्फ बच्चों का ख्याल रखोगी। मैंने भी ठीक है कहा था पर अब मैं उनकी इस बात को नहीं मानूंगी और कल से स्कूल जाउंगी। पति ने कहा – ” क्यों ” नौकरी करने की क्या आवश्यकता है? यहाँ आपको किसी चीज की कमी नहीं होगी।
विनीता ने कहा “अपने आत्मसम्मान के लिए” जब आपने मुझे अपनी पत्नी ही नहीं माना है तो मैं आपके पैसे अपने उपर कैसे खर्च कर सकती हूँ? अतः मैं नौकरी करूंगी और अपना ख़र्च स्वयं चलाऊँगी। मैं आपके बच्चों को अपने ही बच्चों की तरह पालूंगी पर इसके लिए आपको मुझ पर खर्चे करने की जरूरत नहीं है क्योंकि मुझे माँ बनना है आया नहीं।
विनीता के इस बात को सुनते ही उसके पति ने कहाँ -”तुम ठीक कह रही हो। मुझे थोड़ा वक़्त दो। मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हे पत्नी का दर्जा दें सकू।
तभी बच्चे दौड़ते हुए आए और कहने लगे, माँ हम आपके साथ सोयेंगे। विनीता ने दोनों ही बच्चों को गले लगा लिया और कहा – हाँ बच्चो तुम अपनी माँ के साथ ही सोवोगे।
लेखिका : लतिका पल्लवी
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