किताब कॉपी के बीच घिरा विदग्ध, मैथ के सवाल में उलझा हुआ था, कि अचानक दरवाजे पर खटखट की आवाज़ सुनकर उसकी एकाग्रता भंग हो गई। वह लापरवाही से उठकर दरवाजे की ओर बढ़कर दरवाजा खोला। सामने डाकिया लिफाफा लिए खड़ा था। ‘विदग्ध मिश्रा कौन है?’ -डाकिया ने पूछा। ‘जी, मैं ही हूंँ ‘- कहते हुए विदग्ध ने डाकिया के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । डाकिया ने एच.सी.एल. प्रिंट लिफाफा उसकी ओर आगे बढ़ाते हुए 10 रुपये की मांग की। वह पेपर पर हस्ताक्षर किया और बिना किसी प्रश्न के 10 रुपये का नोट डाकिया को दिया है और लिफाफा लेकर दरवाजा बंद कर लिया।
लिफाफा खोल कर देखा तो जॉइनिंग लेटर था। वह खुशी से झूम उठा, उसका गंभीर व्यक्तित्व बच्चों की तरह, उछल- कूद करने के लिए मचल उठा । वह अपना लैपटॉप खोलकर स्क्रीन पर लगे फोटो को चूमा और फिल्मी अंदाज में देखकर मुस्कुराते हुए बोला -‘आई लव यू, सुन रहीं हैं न।’ कुछ पल वह एकटक फोटो को निहारता रहा। लैपटॉप पर अंकित यह तस्वीर, किसी प्रेमिका की नहीं, बल्कि बचपन के मानस पटल पर अंकित उस व्यक्तित्व की है, जो मन में जीवंत बसी है।
बारहवीं के फेयरवेल दौरान बड़ा साहस करके उसने साथ फोटो क्लीक करवाने का मैम से आग्रह किया था।
स्कूल से निकलने के साथ ही उनके साथ वाली ये फोटो लैपटॉप के स्क्रीन पर लगा लिया है।
विदग्ध के अंतःकरण से सरोकार रखने वाली यह तस्वीर जिंदगी के उतार- चढ़ाव में हमसफर सा साथ निभाती है। वह जब भी अकेला या हताश होता, तब लैपी खोलकर तस्वीर के सामने बैठ जाता है। उसे लगता है, कि उनकी बड़ी और जीवंत आँखें उससे बात कर रही हों। उसके मन मस्तिष्क की उलझनों पर प्रश्न करती हो और उनके मुस्कुराते होठ उसे हौसला से भर देते हैं। उसमें एक नए सोच का संचार होता है।
इस बार तो वह, बस यूँँ ही इंटरव्यू देने गया। उसे असिस्टेंट मैनेजर पद नियुक्ति मिल गई। इसकी कल्पना भी उसने नहीं की थी। आज वह इस सफलता के बाद पुनः उसी बचपन में जाना चाहता था । वह अपने सपनों की राजकुमारी से गरीब नायक की तरह कुछ कहने का साहस तो नहीं जुटा पाया, लेकिन उनको देखने की बेकरारी, उनसे बात करके मिलने वाली खुशी का एहसास वह अपने स्कूली जीवन में हमेशा करता था। वह स्कूल नहीं आती तो, पूरे दिन स्कूल में अच्छा नहीं लगता । उनकी एक झलक उसको सुकून से भर देता ।
वह स्वयं को भावनाओं में डूबा देखकर अपने पर नियंत्रण का प्रयास किया। अपना मोबाइल निकाल कर कुछ बटन दबाया और घंटी जाने लगी कॉल रिसीव होते ही वह बड़ी विनम्रता से पिता से घर परिवार का हाल-चाल जाना, फिर अपनी नौकरी की खबर पिता को सुनाई । बेटे की सफलता का समाचार सुनकर पिता का हृदय गदगद हो गया । ईश्वर पर विश्वास रखने वाले पिता ने जॉइनिंग से पहले पुत्र को गाँव आने को कहा। घर के देवता की पूजा किए बिना कोई नया काम न करना । उसने भी अगले सप्ताह के मंगलवार को पहुँचने का आश्वासन दिया ।
दिल्ली शहर में अकेला वह आज हर किसी से अपनी ख़ुशी व्यक्त करना चाह रहा था। अंतर्मुखी स्वभाव के कारण ना के बराबर उसके दोस्त थें। कुछ सोच वह मंदिर जाने का विचार बनाया । अपने पोषाक में थोड़ा बहुत फेर बदल कर वह मंदिर के लिए निकला। शाम हो चुकी थी। बाजार को वह भर नजर देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया । अंततः मंदिर में अपनी सफलता के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की । मंदिर से बाहर निकल कर वह मंदिर के लॉन में लगे एक बेंच पर बैठ गया। वह चुपचाप पेड़-पौधों, फूल- पत्तों को ध्यान से देख रहा था ।
उसे अनुभव हो रहा था, कि उसके साथ सभी खुश हैं। शाम धुंध की चादर ओढ़ने लगा और छिटकी चाँदनी में चमकता चाँद उसे अनायास ही आकर्षित करने लगा। वर्षा मैम का मुस्कुराते चेहरे की झलक उसमें अनुभव हुआ। उसे लगा कि पूछ रही हों-” क्यों विदग्ध अकेले-अकेले मनाओगे अपनी खुशी ? मुझे शामिल नहीं करोगे क्या?” वह बेसुध सा अपने आप से ही बोल उठा – “मैंम, मेरे जीवन के हर पल में, हर सफलता में आप है। कैसे भूल सकता हूंँ आपको?” तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी मोबाइल निकाल कर निगाह दौड़ाया तो,
स्क्रीन पर वर्षा मैम लिखा था। वह हमेशा हतप्रद हो जाता है। वह हर बार सोचता, दूर रह कर भी मैम को कैसे पता चल जाता है कि, मैं उन्हें याद करता हूँ, उनका साथ चाहता हूँ। यह उसके लिए अचरज नहीं, लेकिन चिंतन का विषय अवश्य था । वह इस बेतार के तार के संबंध पर हर बार मूक रह जाता। यह घटना किसी जादू से कम नहीं लगता । वह स्थिर बना रहा। कॉल मिस्ट होकर फिर आने लगा कॉल उठाते ही “हेलो” शब्द सुनाई दिया। उसने प्रति उत्तर में “गुड इवनिंग” बोला। “कैसे हो बेटा?” मैम ने पूछा। ” ठीक हूंँ, मैं आपको फोन लगाने की सोच ही रहा था,
कि आपका कॉल आ गया ।” “अरे” आश्चर्य से। लेकिन मुझे तुम्हारी याद आई तो मैंने सोचा, कि अपने बच्चे की खबर ली जाए। क्या कर रहे हो इस समय ?” विदग्ध अपनी भावना नहीं रोक पाया और चहक उठा-‘ मैम आज मैं बहुत खुश हूँ, आज ही मुझे एन. सी. एल. में असिस्टेंट मैनेजर के पद के लिए ज्वाइनिंग लेटर मिला है और मुझे नवंबर में 15 तारीख को वहाँ ज्वाइन करना है ।” मैम बोली- ” बहुत अच्छा , बधाई हो बेटा। कल मैं तुम्हारी बात प्रिंसिपल सर को बताऊँगी। वह भी तुम्हारे बारे में सुनकर खुश होंगे।” विदग्ध चाहता था
कि घंटों फोन पर मैम से बाते करता है, लेकिन उसके शब्द उसका साथ नहीं दे रहे थें, वह कुछ सोच ही नहीं पा रहा था। वह शांत मैंम की बातें सुन रहा था। “बेटा अपना ख्याल रखना । ईश्वर हमेशा तुम्हारे साथ रहे । ज्वाइन करने के बाद बताना, कि तुम्हें वहाँ कैसा लगा अब फोन रखती हूंँ। गुड नाइट।” वह भी “गुड नाइट” कह कर फोन वापस रख देता है। शाम चाँदनी रात में बदल चुकी हुई थी। छिटकी हुई चाँदनी में आसपास के पेड़ पौधे उज्ज्वलता में निखर आये थें। प्रकृति अपनी सौंदर्य की छटा बिखेर रही थी उसे ऐसा लग रहा, कि उसकी खुशी में प्रकृति एकाकार हो रही हो।
वह पेड़ पौधों को देखते-देखते बचपन के दिनों में लौट।
उसे आज भी याद है, जब वह घर छोड़कर वाराणसी में अपने हास्टल जीवन की शुरुआत किया था। कितना तकलीफ़देह था। विद्यालय का शुरुआती दिन। घर से दूर अनजान लोगों के साथ रहना। बात बात पर आँखों का भर आना। हास्टल में जाने के बाद स्कूल का पहला दिन था, कक्षा में चुपचाप बैठा था, कि अटेंडेंस रजिस्टर के साथ वह पहली बार वर्षा मैम को देखा था। वह अटेंडेंस लेते हुए उसका नाम पुकारी तो उसके भर्राना गले से कोई आवाज़ नहीं निकल पाई, लेकिन उसके आँखों से आँसू गिरने लगे। हालात भाप, वह अपने टेबल से चलकर उसके पास आकर मुस्कुराते हुए, उसके आँसू अपने रुमाल से पोछते हुए बोली-” क्यों बच्चा क्या हुआ?
क्यों रो रहे हो। उसकी सिस्कियाँ फूट पड़ी “ना बच्चा ना इतना नहीं रोते।” कहते हुए, उसे अपने हाथों में भर लेती हैं। उनका वह मुस्कराते चेहरे के साथ मिला संबल उसके दुखते रग पर मरहम का काम किया। वह कक्षा में सहज अनुभव करने लगा। बेल लगने पर मैम उसे अपने साथ स्टाफ रुम में ले गई । अपने पर्स से निकाल कर एक चॉकलेट दिया। उसके मना करने पर वो मुस्कराते हुए बोली -“मुझसे नाराज हो। मुझे अपना दोस्त नहीं बनाओगे।” वह दोस्ती के लिए हामी भरने के प्रसंग में ना में सिर हिलाया। मैम ने मुँह बनाते हुए कहा -“मैं इतनी गंदी हूँ , जो आप दोस्त नहीं बना रहे हो।”
” नहीं मिस आप बहुत अच्छी हो और आप मेरी दोस्त भी। ” कहते हुए विदग्ध मुस्कुराते हुए सिर झुका लिया। धीरे धीरे कुछ बात चित के बाद पूछने पर वह बताया कि, उसको मांँ बापू की याद आती है। वह माँ के लिए बात-बात पर रो पड़ता है । खाना खाते समय, सोते समय, कपड़ा धोते समय हर वक्त उनकी याद आती है। हाॅस्टल में आने के बाद उसके सीनियर उसे तंग करने की समस्या से लेकर उसके हर परेशानी को सुनकर उस व्यवधान के निराकरण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पता नहीं कब वह उसके जिंदगी का अपने व्यवहार से अहम हिस्सा बन गई। उसके अंदर बदलाव आना शुरू हो गया ।
वह गाँव से आया बच्चा विद्यालय के हर क्रिया कलाप के साथ कक्षा में उत्साह पूर्वक हिस्सेदारी निभाने लगा। उसके हर सफलता असफलता में मैम का प्रोत्साहन और सांत्वना उसे निखारता चला गया। चार महीने के समयांतराल के बाद जब दशहरा की छुट्टियों में पहली बार घर आया, तो स्वयं को अधूरा सा पाया। गाँव की गलियों में, खेत के मेड़ पर, जब कभी वह स्वयं को अकेला पाता मैम उसे याद आने लगती । पता नहीं कैसे और कब वह उसके ख्वाबों में शामिल होने लगी। छुट्टियों से वापस हाॅस्टल आने के बाद, वह दूसरी सुबह का इंतजार नहीं कर पा रहा था। पहाड़ बनकर रात उसके और मैम के बीच खड़ा हो गया था।
सुबह वह जल्दी ही स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया था। मैम से पहले जल्दी पहुंँचकर उनके आने का इंतजार करता रहा। मैम के सामने से गुड मॉर्निंग करते हुए गुजरा मैम ने मुस्कुराकर उसके गुड मार्निंग का जवाब दिया। यह देखकर वह फूला न समाया। वक्त के साथ मैम के प्रति अपनापन की प्रगाढ़ता बढ़ती गई।
विदग्ध ही नहीं उसके परिवार का हर सदस्य के लिए वर्षा मैम अब एक जाना पहचाना चेहरा थी। वह भले ही विदग्ध के जीवन में एक अध्यापक के रूप में आई थीं, लेकिन उनकी आत्मीयता ने उन्हें विदग्ध और उसके परिवार के लिए परिवार का एक सदस्य बना दिया था। जो आज भी लम्बे समय अंतराल के बाद, वह उसके सफलता की प्रेरणा बनी हुई हैं। उसके दिल में बसी हैं। जिसे वह मूक स्वयं में बसा कर, सिर्फ अनुभव करना चाहता है।
-पूनम शर्मा, वाराणसी।