मीता एक साधारण परिवार की बेटी है । उसकी रुचि पढ़ाई में अधिक है । वैसे तो वह प्रत्येक कार्य में पूर्ण रूप से निपुण है । घर के कार्यों में, संगीत कला के साथ पढ़ाई आदि में उसकी विशेष रूप से रुचि है । परिस्थितियों ने उसको मजबूर कर दिया । जिसके कारण पढ़ाई आदि में कई बार सोचने पर विवश हो जाती है । परिस्थितियों का विपरीत होना, लोगों के ताने, लड़की की जात को अधिक पढ़ाई करके क्या करना है ।
पालना तो घर गृहस्ती ही है । मीता के पिताजी टैक्सी चलाते थे । जिससे अच्छी आमदनी हो जाती थी । घर में चारों लोग खुशी-खुशी जीवन जी रहे थे । मीता के पापा राम सिंह कहते थे मैं अपने दोनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाऊंगा । ताकि एक औधे के अफसर बन सके । मेरी तरह न रह जाए ।
दोनों बच्चे पढ़ाई में नंबर वन थे । वह हमेशा कहा करते थे मंजू अपनी पत्नी से देखना मेरे बच्चे हम दोनों का नाम रोशन करेंगे । एक दिन घर आने में देर हो गई । वह तेजी से गाड़ी चला रहे थे । दूसरी टैक्सी भी पूर्ण रफ्तार पर चल रही थी । दोनों आपस में भिड़ गई । दोनों की लड़ाई झगड़ा होने लगा । इस बीच दूसरे टैक्सी वाले ने चाकू निकाल लिया । राम सिंह के सीने में घूसा दिया । चाकू का वार इतनी जोर का था कि राम सिंह सह नहीं सका । वह वहीं गिर गया । जब तक पुलिस आई । वह टैक्सी वाला भाग गया ।
घर में कुंडा खटखटाया । कुंडा खोला तो देखा पुलिस की गाड़ी खड़ी थी । हम सब डर गए । एक आदमी ने इशारे से बताया राम सिंह नहीं रहे । यह सब देखकर तीनों लोगो ने घबराकर गाड़ी के पीछे देखा । राम सिंह खून से लथपथ पड़े थे । उनको देखकर सबकी चीख निकल गई । वह वहीं गिर पड़े ।
आसपास के लोगों ने उनको उठाया । पुलिस वालों ने राम सिंह की लाश अंदर रखवाई । दूसरे दिन रिश्तेदार आ गए । सब ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया । अब मंजू के सर पर परिवार के पालन पोषण का भार पड़ गया । कैसे परिवार का खर्चा चलेगा । रिश्तेदारों ने अपनी अपनी राय दी कि मीता को कहीं नौकरी करने दें ।
बेटा तो अभी छोटा है । मंजू के मन में पति की इच्छा पूरी करने का मन था । उसने कमर कस ली कैसे भी बच्चों की पढ़ाई कराने की । उसने यह सोचना छोड़ दिया कि लोग क्या कहेंगे । आसपास घरों में काम करना शुरू कर दिया । किसी के खाना बनाने का, किसी के घर सफाई कपड़े धोना आदि से अब आर्थिक आमदनी होने लगी ।
बच्चों की पढ़ाई सुचारू रूप से अपनी पटरी पर आ गई । मीता स्कूल के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर पैसे कमाने लगी । इस तरह दोनों भाई बहन की पढ़ाई चलती रही । समय में परिवर्तन होता गया । मीता तो निरंतर पढ़ाई में आगे बढ़ती रही । समय के साथ भाई मन्नू लगातार पढ़ाई में पिछड़ता गया ।
पिता का साया सर पर न होने के कारण तथा छोटा होने के कारण मां बहन के प्यार में उसकी मित्र मंडली गलत बच्चों की संगति में आ गई । वह भटक गया । पढ़ाई में रुचि कम होती गई । किशोरावस्था तक आते-आते मुश्किल से हाई स्कूल ही कर पाया । अब मां को बेटे की चिंता होने लगी ।
इधर मीता का फाइनल कंप्लीट हो गया । मीता ने चार्टर्ड अकाउंटेंट का इंटरव्यू दिया । एक प्रतिष्ठित फर्म में फाइनेंस डिपार्टमेंट में ज्वाइन कर लिया । अब मीता बेंगलुरु में रहने लगी । मां ने मन्नू के लिए घर के पास एक दुकान खुला दी । जिससे कम से कम अपना जेब खर्च के लिए आमदनी हो जाती ।
ऐसा नहीं मन्नू मां को प्यार नहीं करता । रात को टाइम से घर आ जाता था । मां चिंता ना करें । मां तो मां है बच्चों की चिंता नेचुरल है । मीता अपनी जॉब में सेटल हो गई । मां को लगता किसी तरह मन्नू की शादी हो जाए । ऐसे लड़के को कोई अपनी बेटी कैसे दे । मन्नू के पापा के साथ के थे जो टैक्सी चलाते थे । वह मंजू के व्यवहार को जानते समझते थे ।
उनसे मंजू ने मन्नू की शादी की बात की । उनकी बड़ी प्यारी बेटी है । उनसे उनकी बेटी के बारे में बात की । मन में डर भी था कहीं मना न कर दे । यह सुन कर रानी के पापा मम्मी बड़े खुश थे । आनन फानन में शादी तय हो गई। मीता भी छुट्टी लेकर आ गई । दोनों मां बेटी ने सब तैयारी कर ली थी ।
अब रानी मन्नू की दुल्हनिया बनकर आ गई । बड़ी प्यारी संस्कारिक बहू मिल जाने से सब खुश हो गए हैं । मीता ने कुछ पैसे लगाकर दुकान अच्छी करवा दी । दोनों मिलकर दुकान चलाते । अच्छी आमदनी होने लगी । रानी बहुत समझदार है । अपने परिवार को खुशी व अपनत्व से सबका मान सम्मान करती है । दूसरे दिन मीता ने अपने खास-खास रिश्तेदारों को और मिलने वालों के लिए छोटी सी डिनर पार्टी रखी ।
सब लोग मंजू और बच्चों को उनकी मेहनत के लिए बधाइयां दे रहे थे । वहीं पर मीता ने खड़े होकर कहा आज मेरे मां पापा का सपना पूरा हुआ । मेरे पापा कहा करते थे मैं अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देकर बड़े अफसर बनाऊंगा। मेरी तरह न बन जाए । भगवान ने मेरी मां पापा का सपना बीच मझधार में छोड़ दिया । जिससे हम सब असमर्थ हो गए । समय के साथ-साथ भगवान का आशीर्वाद और मेरे पिताजी की दुआओं ने साथ दिया ।
जिससे मुझ में और मेरे परिवार का आत्मबल सदा पनपता रहा । यह मां की मेहनत आत्मशक्ति का ही परिणाम है कि आज हम बच्चे इस लायक हैं । समाज वालों ने कुछ कहने में कसर नहीं छोड़ी । आज असमर्थ को समर्थ बनाने में मेरी मां के हौसले को पूरा करने में मेरी लगन और विश्वास ने मेरा पूरा-पूरा साथ दिया ।
अगर हममे आत्मविश्वास लग्न सहनशीलता है तो कोई काम असंभव नहीं है । असमर्थ को समर्थ करने में भगवान के ही आज्ञा अनुसार हमारा जीवन हर परिस्थिति में जीने की राह दिखाता है । उसी राह के अनुरूप जीवन धारा बहती है । संसार का सबसे कठिन कार्य है । प्रत्येक स्थिति में स्वयं को ढालना । उसके अनुसार प्रसन्न रहना । जो व्यक्ति इस कला को जान गया वही व्यक्ति संसार में सब प्रकार से सुखी है । दुनिया में सबसे कीमती गहना हमारा परिश्रम है । और जिंदगी में अच्छा साथी हमारा आत्मविश्वास है । इसके कारण ही हम असंभव को संभव करने में सक्षम हो पाते हैं असमर्थ को समर्थ में परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं ।
लेखिका
सरोजनी सक्सेना