संध्या को छत पर पतंगें उड़ रही थीं, और बीच में खड़ी थी नेहा — पूरे घर का सितारा। मॉडलिंग प्रतियोगिता की विजेता, कॉलेज की स्टार और सोशल मीडिया सेंसेशन। घर और रिश्तेदारों की जुबान में उसकी ही चर्चा थी, पर अब उसके अंदर घमंड घर करने लगा था।
उसकी छोटी बहन दीक्षा, जो पढ़ाई में अव्वल और शांत स्वभाव की थी, नेहा की उपेक्षा सहती रहती। नेहा उसे ताने देती — “तुम क्या जानो रैंप पर चलना!”
एक दिन दादी ने नेहा से पूजा का दीप जलाने को कहा, तो वह बोली — “दादी, मॉडल्स ये सब नहीं करतीं!” घर में सन्नाटा छा गया।
दादी को यह चुभ गया। उन्होंने दीक्षा को मॉडलिंग के लिए प्रेरित किया। अनिच्छा से तैयार हुई दीक्षा ने खुद पर मेहनत शुरू कर दी।
तभी एक बड़ा ब्रांड शो नेहा को ऑफर हुआ, पर शो से एक दिन पहले वह सीढ़ियों से फिसल गई। पैर में चोट आई — छह महीने का आराम। कॉलेज में उसकी जगह दीक्षा चुनी गई।
रैम्प शो के दिन दीक्षा के आत्मविश्वास से सब हैरान थे। उसके शांत सांवला सलोना सौंदर्य और विनम्र स्वभाव ने सबका मन जीत लिया।
नेहा जब ठीक होकर कॉलेज गई, तो सबकी नज़रों का केन्द्र दीक्षा थी। घर लौटकर वह उदास थी।
दादी ने प्यार से कहा, “जब पंख अभिमान से भारी हो जाएं, तो गिरना तय है।” नेहा की आंखें छलक पड़ीं। दीक्षा ने मेडल उसकी गर्दन में डालते हुए कहा, “दीदी, असली हकदार आप हैं।”
नेहा बोली, “मुझसे गलती हुई दीक्षा।”
दादी ने दोनों को गले लगा लिया — “मैं हूं ना, गलत राह पर तुम्हारे पीछे थामने के लिए।”
नेहा बदल चुकी है।
क्योंकि उड़ान सुंदर है, अगर उसमें विनम्रता हो — वरना आसमान से गिरने में देर नहीं लगती।अर्श से फर्श में आने में देर कितनी लगती है “घमंडी का सिर नीचा”।
स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी
‘अनाम अपराजिता’
मुहावरे और कहावतें लघु कथा प्रतियोगिता #आसमान पर उड़ना