आसमान में उड़ना – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

सुनो कामिनी अब मैं रिटायर हो चुका हूं,घर चलाने के लिए सिर्फ पेंशन आती है अब मैं शुभम को खर्चे के लिए इतने सारे पैसे नहीं दे सकता। आखिर कबतक मैं उसका बोझ उठाता रहूंगा।अब कुछ काम धाम करेगा मैं तो परेशान हो गया हूं पवन जी अपनी पत्नी से बोले।

              पवन जी और पत्नी कामिनी में बातचीत चल रही थी कि तभी पवन जी के चाचा जी ने घर में प्रवेश किया जो पवन के घर के पास ही रहते थे।किस बात पर नाराज़ हो रहा है पवन बहू पर ।पवन जो गुस्से में भरा था बोल पड़ा क्या करूं चाचा जी रिटायर हो गया हूं और आपका पोता 28 पार हो गया है और कोई काम धाम नहीं घर बैठा है ।

और साहबजादे को खर्चा पानी और दो ।पवन जी के चाचा जी हंसने लगे अरे चाचा जी आप हंस रहे हो , हंसूं न तो और क्या करूं। इसमें शुभम की क्या ग़लती है उसे आसमान में उड़ना तो तुम्हीं ने सिखाया है न जमीन पर पांव धरने कहां दिया। जैसे ही थोड़ा बड़ा हुआ बस हर समय उसकी बड़ाई ,मुंह पर तारीफें कभी उसको किसी बात पर डांट लगाई , कुछ उसे अच्छा बुरा समझाया ।

हां मानता हूं कि बच्चे की तारीफ करनी चाहिए लेकिन उसको प्यार दुलार के साथ डांट डपट भी बहुत जरूरी होती है और अनुशासन भी सिखाना चाहिए।लाड प्यार से तुमने उसको इतना बिगाड़ दिया अब भुगतो । जीवन सरल नहीं होता। कठिनाइयों , अभावों, परेशानियों के बीच से होकर गुजरना होता है तभी तो इंसान जीना सीखता है ।

जब हर वक्त उसे अच्छा ही अच्छा दिखाते रहोगे तो वो अभावों और तकलीफ़ से कैसे वाकिफ होगा। हां चाचा जी ये तो आप सही कह रहे हैं ।शुभम को मैंने कभी किसी तकलीफ़ या अभाव से गुजरने ही न दिया। खुद परेशानी झेल ली लेकिन उसको कभी किसी चीज की परेशानी हो न होने दी ।

यही तो तुमने गलती की भतीजे। जिंदगी सिर्फ फूलों की सेज नहीं है कांटों की सेज भी है ये बताना पड़ता है बच्चों को नहीं तो वो जिंदगी के अभाव को कैसे जानेंगे ।आराम तलबी वाली जिंदगी के आदी हो जाते हैं।

           पवन और कामिनी के दो बच्चे थे ।एक बेटा शुभम और एक बेटी दिव्या।पवन जी स्टेट बैंक में क्लर्क के पद पर कार्यरत थे। बच्चे अभी पढ़ रहे थे । कामिनी जी एक घरेलू महिला थी।पवन जी दो भाई और पांच बहनें थीं पिता जी का देहांत हो चुका था और माता जी थी।पवन जी के बड़े भाई को चार बेटियां थीं

तो बेटे की कमी घर में सबको बहुत महसूस होती थी । पवन जी को भी पहली बेटी दिव्या हुई और उसके बाद बेटा शुभम पैदा हुआ तो घर में खुशी का माहौल हो गया की चलों घर में एक बेटा है गया। हालांकि पवन और कामिनी अलग घर में रहते थे

और पवन जी के बड़े भाई माता जी के साथ अलग रहते थे।कई बार पवन जी का अपने शहर से अलग टांसफर भी हो गया था लेकिन फिर उन्होंने प्रमोशन न लेने  का मन बना लिया और अपने गृहनगर में ही अपना स्थाई घर बनवा लिया।

             घर में एक बेटा होने की वजह से उसको बड़े लाड़ दुलार से पाला गया।जरा सी सर्दी जुखाम होने पर ही या खेल खेल में ही कभी चोट लग जाने पर सारे घर में हाय तौबा मच जाती थी। बचपन से उसे इस तरह से रखा गया कि जरा सी सर्दी गर्मी भी उसको बर्दाश्त नहीं होती थी ।लाड दुलार की वजह से वो पढ़ाई में भी पिछड़ गया था उसका मन ही न लगता था।

अक्सर क्लास मे फेल हो जाता था ।इंटर करने के बाद पवन जी ने उसे इंजीनियरिंग कराने का सोचा लेकिन काम्पटिशन तो वो निकाल न सकता था। तो भोपाल में किसी प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन करा दिया । जिसमें लाखों की फ़ीस , रहने खाने और हास्टल का सब मिला कर अच्छा खासा खर्चा होता था ।

अब पवन जी ने अपने खर्चे से कटौती करके बेटे के लिए सारी सुख-सुविधाएं मुहैया कराई गई। खुद तो पवन जी और कामिनी स्लीपर से आते जाते लेकिन बेटे को सेकेंड एसी का टिकिट करवाते।एक बेटी भी थी उसकी भी पढ़ाई करानी थी।

शुभम को कोई परेशानी न हो इसलिए घर में कामिनी जी और पवन जी अपने छोटे छोटे खर्चे में भी कटौती करते थे ।और जब बेटे को कभी परेशानी देखने ही नहीं दी तो उसको क्या पता घर में क्या परेशानी है।

             शुभम का मन पढ़ाई लिखाई में कम ही लगता था। वह सेमिस्टर के एग्जाम बड़ी मुश्किल से निकाल पाता था हर सेमिस्टर में बैंक लग जाती थी फिर से दुबारा परीक्षा देकर तो किसी तरह पास हो पाता था ।उसके दिमाग में भर दिया गया था कि किसी तरह ग्रेजुएशन कर लो उसके बाद तो पैसे की बरसात होने लगेगी । कभी यथार्थ के धरातल पर बैठाया ही नहीं उसको ।

           शुभम जरा देखने सुनने में अच्छा था स्मार्ट था और हाईट भी अच्छी थी ।चार साल कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई की लेकिन डिग्री नहीं मिल पाई क्योंकि आखिरी सेमिस्टर में फिर बैंक लग गई थी जब उसको क्लीयर कर लेगा तब ही तो डिग्री मिलेगी ।जब शुभम इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था तो उसकी एक लड़के से दोस्ती हो गई थी

जिसका बड़ा भाई मुम्बई में था और छोटी-छोटी फिल्मों में छोटे-छोटे रोल किया करता था । पढ़ाई-लिखाई खत्म करने के बाद उसे मुम्बई जाना था ।और उसके साथ साथ शुभम भी मानसिक रूप से तैयार हो गया था कि मुझे भी मुम्बई जाना है बिना मेहनत के खूब सारा पैसा मिलता है वहां । ग्रेजुएशन जरूरी था इस लिए पढ़ाई-लिखाई कर रहे थे।

पवन जी भी बेटे की हर बात में राजी थे ।तो दो लाख रुपए का जुगाड करके बेटे को मुम्बई जाने की सहर्ष स्वीकृति दे दी ।

         वहां मुम्बई की चकाचौंध देखकर ही शुभम और उसका दोस्त श्याम बिहारी (अब अपना नाम सैंकी रख लिया था) पागल हो गए । कुछ दिन तो शुभम दोस्त के भाई की खोली पर रहा लेकिन फिर जगह की दिक्कत होने लगी । वहां कोई भी किसी के साथ जगह शेयर नहीं करता ।एक इंसान के रहने भर की ही जगह होती हैं।

          सुख सुविधाओं में रहने का आदी शुभम के लिए ऐसी जगह पर रहना मुश्किल हो रहा था। फिर चार लोगों ने मिलकर एक फ्लैट किराए पर लिया।40 हजार किराया और खाने पीने कि लाइट का खर्चा अलग से। कुछ पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है , मेहनत तो कभी की नहीं थी । स्ट्रगल करना पड़ता है कुछ पाने के लिए जिंदगी में।

बस इधर उधर घूमते रहे और कहीं जाना है तो टैक्सी से नीचे बात नहीं करना।बस घर में पवन जी और कामिनी अपने सारे पैसे बेटे के पास भेजते रहे और खुद बदहाल जिंदगी जीते रहे ।

कभी ये न पूछते बेटा कोई काम बना कि नहीं कुछ मेहनत करो बस बेटे ने जैसी भी उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा दी बस वैसा ही सुन लिया।और बढ़िया ऐश कर रहा है शुभम मुम्बई में।

       घर आना है तो फ्लाइट से आना है सेलेब्रिटी न‌ होकर भी सेलेब्रिटी जैसी जिंदगी जीने लगे।शुभम फ्लाइट और टैक्सी से नीचे बात ही न करता था।काम करने के लिए अपने को गलाना पड़ता है ,तपाना पड़ता है तब ही तो सोना बन पाया है ।

जो भी आज बड़े बड़े सेलेब्रिटी बने हैं वो ऐसे ही नहीं बन गए हैं अपने आपको घीसा है कितनी मेहनत की है कितनी परेशानियां देखी है ज़मीन पर सोए हैं भूखे पेट रहे हैं तब जाकर सफलता मिली है ऐसे नहीं।

         कोई पूछता पवन जी से कि बेटा क्या कर रहा है तो बड़ी शान से बताते मुम्बई गया है हीरो बनने बस कई फिल्म प्रोड्यूसर से बात चल रही है जल्दी ही काम मिल जाएगा।बस आसमान को ही तकते रहे कभी जमीन पर पांव धरने ही न दिया। पांच साल यूं ही बर्बाद हो गए कुछ भी काम नहीं

मिला।पवन जी की सारी सैलरी थोड़ा सा अपने खर्चे को बचाकर सारे बेटे के खर्चे में ही निकल जाते । फिर करोना महामारी आ गई जिसकी चपेटे में शुभम भी आ गया ।वो तो शुरूआत के ही दिन थे तो अस्पताल में भर्ती कराया गया और स्थिति कंट्रोल में आ गई और शुभम की जान बच गई।और फिर किसी तरह से वहा से जान बचाकर घर को भागे सब।

        पांच साल मुम्बई में ख़राब कर दिया और चार साल करोना में घर बैठे रहे ।इस बीच कुछ काम धंधा तो मिला नहीं । फिर थोड़ा सा आनलाइन काम करने लगे दस पंद्रह हजार का कभी कभी हो जाता था।अब बेटा घर बैठा है ।

शादी भी करा दी गई नहीं तो शादी की भी उम्र निकली जा रही थी । किसी गरीब घर की लड़की से शादी हो गई लड़की पढ़ी लिखी है भी,एड किया हुआ है तो स्कूल में पढ़ाती है ।

         पवन जी भी अब रिटायर हो चुके हैं ‌।अब शुभम इतना आलसी हो चुका है कि उससे कुछ काम नहीं होता कोई मेहनत नहीं होती। पिता के सिर पर बोझ बनकर बैठा हुआ है।30 का होने जा रहा है कोई काम धाम नहीं है।

        और बेटी दिव्या ने घर पर कोचिंग शुरू कर दी थी उससे कुछ पैसा इकट्ठा करके फैसन डिजाइन का कोर्स कर लिया और किसी के साथ पार्टनरशिप में बुटीक खोल लिया है ।और अपने पसंदीदा लड़के से शादी कर ली है और अपने घर गृहस्थी में खुश‌ है ।

     और यहां जिंदगी भर की कमाई बेटे पर लुटा दी फिर भी बेटा कुछ न कर पाया। गलती बेटे की नहीं है मां बाप की है । उसे आसमान में ही ताकना नहीं ज़मीन पर भी चलना सिखाना चाहिए। हमेशा सुख सुविधाओं में ही नहीं तकलीफ़ और परेशानी क्या होती है जिंदगी की जद्दोजहद से भी परिचित कराना चाहिए। पैसा कमाना कितना मुश्किल होता है ये भी बताना चाहिए।

        पाठकों कभी कभी मां बाप खुद ही बच्चों की लाइफ को खराब कर देते हैं । उन्हें सही रास्ता दिखाएं , सही ग़लत की पहचान कराए , यथार्थ की दुनिया में रहना सिखाएं। सबसे बड़ी बात समय का मोल बताए । ऐसे ही पवन जी पहले तो खुद ही बेटे को आसमान पर उड़ाते रहे और जब गिरे तो चारों खाने चित्त कुछ भी हाथ न लगा ।

मुहावरा , आसमान में उड़ना 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश 

24 जून

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