“बाबूजी, खाना रख दिया है, खा लीजिए।”
रीना, महेश जी के पलंग के पास पड़ी मेज़ पर थाली रखते हुए बोली।
“बहु, पता नहीं क्यों आज खाना खाने का मन नहीं कर रहा है। दोपहर का खाना लग रहा है कि जैसे अभी पेट में रखा हो। न हो तो एक गिलास दूध दे दो, खाना वापस ले जाओ।”
महेश जी एक तरह से रियायत करते हुए बोले।
“अब आज आपका एक और नखरा कि खाना नहीं खाना है। दूध दे जाओ? दूध तो बच्चों के मुँह से ही नहीं बचता, आपके लिए कहाँ से लाऊँ।”
रीना बड़बड़ा रही थी। तभी आलोक अचानक कमरे में आ गया।
“क्या हुआ रीना? बाबूजी क्या कह रहे हैं?”
“अरे, आज आप जल्दी दुकान से आ गए?”
“हाँ, थोड़ा काम जल्दी निपट गया तो वापस आ गया। पापा, आप खाना क्यों नहीं खा रहे हैं?”
आलोक वही महेश जी के पास बैठ गया।
“बेटा, कुछ खास भूख नहीं है।”
“तो फिर दूध ही पी लीजिए पापा। पापा आसानी से दूध ही तो माँग रहे थे, लेकिन मम्मी ने उनको दूध देने से मना कर दिया।”
पास खड़ा सोनू बोला।
“क्या? ये क्या सुन रहा हूँ रीना? दूध कम से तुम्हारा क्या मतलब? दूध तो रोज़ तीन लीटर आता है। क्या तुम रोज़ बाबूजी को दूध नहीं देती हो? और पापा… मम्मी बाबा को खाना भी दोपहर का बचा हुआ देती हैं।”
“रीना, तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया? जिस घर में तुम खड़ी हो और जिस दुकान की कमाई तुम खाती हो, वो सब कुछ बाबूजी का ही है। मुझको तो सब कुछ बाबूजी ने ही बना-बनाया सौंपा।”
अब तो रीना को जैसे साँप सूँघ गया। सफेद झूठ बोले भी तो कैसे!
“हे भगवान! मैं अपने ही जन्मदाता का ख्याल नहीं रख पाया। तुम्हें तो पता ही था रीना कि बाबूजी को रात में दूध पीने की आदत है, फिर भी तुमने यह गलती की।”
आलोक गुस्से में बोला।
अब महेश जी कैसे बताते आलोक को कि 3 महीने पहले ही जब से तेरी माँ इस दुनिया से गई है, तब से दूध तो छोड़ ही दो, खाने में भी बस मुश्किल से ही खुशी मिलती है। कभी अगर नहीं खा पाता तो बहु लगे हाथ चार बातें सुना देती है। लेकिन महेश जी ने कभी आलोक को कुछ नहीं बताया, क्योंकि वह बेटे-बहु के बीच में कलह का कारण नहीं बनना चाहते थे।
लेकिन सोनू ने तो बता ही दिया। आलोक की आँखों में आँसू आ गए।
कैसे माधुरी जी महेश जी के खाने-पीने का बेहद ख्याल रखती थीं। शुरू से ही उनका पेट थोड़ा कमजोर था और अब तो मुँह के दाँत और पेट दोनों ही कमजोर हो चुके थे।
रीना के किन मीठे-मीठे शब्दों के बावजूद भी माधुरी जी तवे से गरम-गरम मुलायम रोटियाँ उतारकर देती थीं। खाने में वही देतीं जो उनको आसानी से हज़म हो जाए—जैसे नरम दलिया, दूध में भीगी हुई रोटी, मूँग की पतली खिचड़ी।
लेकिन माधुरी जी को भगवान के पास जाते ही सारी स्थिति बदल गई। बेटा दुकान से फुर्सत नहीं निकाल पाता था और बहु के तो अब मज़े हो गए थे। अपनी मनमर्जी चलती। उसे ससुर जी की सेहत से कोई मतलब नहीं था। कौन चार तरह का खाना बनाए!
लेकिन आज तो सारी सच्चाई आलोक के सामने खुल चुकी थी।
“रीना, गलती तुम्हारी नहीं, सारी गलती मेरी है। मुझको ही अपने बाबूजी का ख्याल खुद रखना चाहिए था। मैं सुबह दुकान निकल जाता और देर रात तक वापस आता। मुझे क्या पता था कि तुम मेरे बाबूजी के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कर रही हो। अगर आज मैं दुकान से जल्दी न आता और सोनू सब कुछ न बताता तो शायद आज भी मैं नहीं जान पाता। मुझको माफ कर दीजिए बाबूजी। मेरे रहते हुए आपके साथ ऐसा व्यवहार हुआ। कमी है मुझमें, पर अब और नहीं। मैं दोनों समय बाबूजी को अपने सामने खाना खिलाऊँगा और रोज़ रात को खुद अपने हाथों से दूध दूँगा।”
आलोक, महेश जी का हाथ पकड़कर रोने लगा।
“प्लीज़ आलोक, मुझको माफ कर दो। फिर मुझसे ऐसी गलती नहीं होगी।”
रीना भी बोली।
“मैं तुमको कभी माफ नहीं कर सकता बेटा। नादान है यह, शायद अचानक ज़िम्मेदारी पड़ने से कुछ समझ नहीं पाई। और बेटा, वैसे भी गलती तो इंसान से ही होती है। बहु की आँखों में पछतावे की झलक दिखाई पड़ रही है और अब वह बिल्कुल भी ऐसा कुछ नहीं करेगी। मुझको पक्का विश्वास है।”
महेश जी आलोक से बोले।
“देखो रीना, तुमने बाबूजी के साथ इतना गलत व्यवहार किया लेकिन फिर भी बाबूजी तुम्हें माफ करने को कह रहे हैं। यही होता है माँ-बाप का दिल।”
आलोक बोला—“प्लीज़ बाबूजी, आप भी मुझको माफ कर दीजिए। सचमुच मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है।”
रीना महेश जी के पैरों में झुक गई।
“बेटा, सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। ठीक है, बाबूजी, मैंने माफ कर दिया रीना को। लेकिन आज से मैं यह संकल्प लेता हूँ कि अब से ज़िम्मेदारी तो मैं ही संभालूँगा आपकी।”
आलोक उठते हुए बोला और रसोई में जाकर एक गिलास दूध गरम करके ले आया और महेश जी के हाथ में पकड़ा दिया।
महेश जी के मुँह से आलोक के लिए आशीर्वादों की झड़ी निकलने लगी।
लेखक : अज्ञात