असहाय – लतिका पल्लवी

आज पूनम अपने आप को एकदम असहाय महसूस कर रही थी।यह जानते हुए भी कि उसके पति का फिल्ड वर्क जॉब है उसने अपने दम पर कोई काम करना नहीं सीखा था। उसका पति विभव समझाता भी था पर वह नहीं समझती थी। पर आज ऐसी परिस्थिति मे पड़ गईं थी तो उसे विभव की सारी बातें याद आ रही थी।आज दोपहर जब उसका बेटा मुन्ना स्कूल से आया तो उसका देह गर्म था और देखते देखते ही उसका पूरा शरीर बुखार से तपनें लगा।पूनम बार बार ठंडे पानी से उसका मुँह पोछ रही थी और कभी हथेलिया तो कभी तलवा कपड़े से रगड रही थी।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। विभव ऑफिस के काम से बाहर गया हुआ था।घर पर सिर्फ वह और मुन्ना ही थे। घर से थोड़ी ही दुरी पर एक मेडिकल स्टोर था पर मुन्ना को अकेले घर पर छोड़कर वह मेडिकल स्टोर नहीं जा सकती थी नहीं तो वही से बुखार की कोई दवा लाती।कैब भी बुक करने नहीं आता था कभी किया ही नहीं था। बुक कर पाती तो मुन्ना को लेकर किसी डॉक्टर के डिस्पेंसरी मे ही चली जाती।ऑटो स्टेण्ड उसने देखा भी नहीं था और वैसे भी उसे अकेले बाहर जाने मे डर लगता है नहीं तो ऑटो से ही चली जाती।विभव जब भी बाहर जाता है तो घर मे जरूरी राशन फल सब्जी आदि रख कर जाता है।फिर भी कुछ जरूरत पड़ती तो पूनम आस पास के दुकान से ले आती थी वैसे ऐसी नौबत शायद ही कभी आती थी।कभी मुन्ना के स्कूल मे टीचर कोई प्रोजेक्ट देते और विभव उस समय घर मे नहीं रहता था तब ही ऐसा होता था,नहीं तो पूनम कभी अकेले बाहर नहीं जाती थी।बार बार उसे आज अपने आप पर गुस्सा भी बहुत आ रहा था।विभव बार बार कहता था कि मै प्रायः बाहर रहता हूँ इसलिए तुम कुछ काम अकेले भी जाकर किया करो, पर वह कही भी अकेले जाने से भी हिचकती थी।विभव नें कितनी ही बार उससे यह भी कहा था कि अकेले बाहर नहीं जा सकती तो ऑनलाइन ऑडर करना ही सीख लो।तुम्हारे मोबाईल पर भी पेटीएम डाउनलोड कर दे रहा हूँ। जब मै घर पर नहीं रहुँ तो तुम खुद भी जरूरत का सामान मंगवा सकती हो क्योंकि विभव का काम ही ऐसा था कि वह  दश दिन घर पर रहता तो दश दिन ऑफिसियल टुर पर रहता था।विभव कितना समझाता था कि ऑनलाइन आर्डर करना बिल्कुल ही मुश्किल काम नहीं है पर पूनम को बहुत डर लगता था उसे लगता था कि मेरी अंग्रेजी कमजोर है तो कही मै मैसेज का सही अर्थ नहीं समझी और कुछ गलत कर दिया तो बैंक डिटेल्स किसी फ्राड के पास चला गया तो वह पैसे निकाल लेगा।जब भी विभव कुछ समझाने की कोशिश करता तो वह कह देती मुझे नहीं पड़ना ऑनलाइन के झमेले मे, जरूरत होंगी तो बगल के दुकान से ले आउंगी नहीं तो आपको फोन कर दूंगी आप ऑडर कर देना।विभव कहता कि मान लो कोई मेहमान घर मे आ जाए और तुम्हे किसी चीज की जरूरत हो तो तुम उसे अकेले घर पर छोड़कर तो बाजार नहीं जा पाओगी और उसी समय मेरा फोन भी नहीं लगे तो क्या करोगी?पर विभव के किसी बात का उसके उपर प्रभाव नहीं पड़ता था।आज विभव की कही सारी बातें याद आ रही थी क्योंकि सभी सच हो रही थी। मेहमान के रूप मे बुखार आ गया था जिसे ना तो छोड़कर जा सकती थी और ना ही लेकर जा सकती थी।विभव का फोन भी नहीं लग रहा था। हर बार नॉट रिचेबल आ रहा था। पूनम एकदम हताश निराश हो गईं थी।शहर मे पड़ोसियों को भी एक दूसरे से कोई मतलब नहीं रहता है इसलिए किसी पड़ोसी से भी जान पहचान नहीं थी जिससे कारण किसी पड़ोसी से भी मदद नहीं ले सकती थी। समस्या कोई कठिन नहीं था पर पूनम के अकेले कुछ नहीं करने की आदत के कारण कठिन बन गया था। उसने कभी भी अपनी माँ या सास को अकेले बाहर आते जाते नहीं देखा था और ना ही उसे कभी अकेले बाहर जाने दिया गया था। जहाँ भी जाना है साथ मे भाई या पापा जाएंगे। ससुराल मे भी पति के साथ ही बाहर जाना होता और उनके नहीं रहने पर देवर के साथ जाती परअकेले कभी बाहर नहीं गईं थी।इसलिए आज वह ऐसी परिस्थिति से इतना डर गईं थी कि उसका दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा था।उसे मोबाईल पर बहुत ही ज्यादा भरोसा था कि जब जरूरत होंगी पति को फोन कर दूंगी बस काम हो जाएगा पर आज जब उसके पति का कॉल नहीं लग रहा था तो उसका वह भरोसा टूट रहा था पर अब क्या हो सकता था जब विभव कहता था कि किसी पर भी एक हद तक ही भरोसा कर सकते है चाहे सामान हो या आदमी।कुछ काम आदमी को खुद भी करनी चाहिए पर तब वह ध्यान नहीं देती थी। विभव कितना ही थका क्यों ना हो पर सब्जी लाने तक के लिए भी उसी के साथ जाती थी।आज उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था पर गलती के अहसास होने से समस्या का समाधान नहीं होना था उसे तो उसको किसी भी तरह दूर ही करना था।थक हारकर उसने सोचा कि मुन्ना को अकेले ही छोड़कर पहले झटपट मेडिकल स्टोर से कोई दवा ले आती हूँ ताकि बुखार कुछ कम हो जाए फिर सोचूंगी कि आगे क्या करना है। बुखार कम होने पर शायद दिमाग़ भी कुछ काम करे।वह पर्स उठाकर बाहर निकल ही रही थी कि उसका मोबाईल बजा उसने देखा तो उसके देवर का फोन था। उसने कॉल उठाया कॉल उठाते ही देवर नें पूछा भाभी आप कैसी है वहाँ सब ठीक ठाक है?देवर के यह पूछते ही पूनम को थोड़ी राहत मिली।उसने कहा नहीं,कुछ भी ठीक नहीं है।दोपहर से ही आपके भैया को फोन लगा रही हूँ पर लग नहीं आ रहा है। मुन्ना को बुखार हुआ है मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करू।अभी बगल के मेडिकल हॉल से दवा लेने जा रही थी कि आपका फोन आया।भैया आप ही नेट पर देखकर किसी डॉक्टर के यहाँ अपाइंटमेंट बुक कर दो और कैब भी बुक कर दो।आपके भैया का फोन नहीं लग रहा था तो मेरा दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा था। मै पहले ही आपको या पापा जी को फोन करके भी बुक करवा सकती थी पर यह बात दिमाग़ मे आ ही नहीं रही थी ।ठीक है भाभी मै सब कर देता हूँ और जब तक भैया नहीं आते तब तक के लिए पापा को भेज देता हूँ।मैंने भैया को फोन किया था तो उन्होंने कहा कि फोन मे बैटरी खत्म हो रहा हैऔर बिजली भी बारिस के कारण कट गईं है तो तुम अपनी भाभी को बता देना कि फोन नहीं लगे तो चिंता नहीं करेगी।बिजली आते ही मै उसे कॉल करूंगा।ठीक है भाभी फिर फोन करता हूँ। आप बिल्कुल चिंता नहीं कीजिए मै पापा को भेजता हूँ। यह कहकर उसने फोन काट दिया। फिर अपने पापा के पास जाकर कहा पापा मुन्ना बीमार है,भैया है नहीं तो भाभी बहुत परेशान है इसलिए मुझे लगता है कि आपको वहाँ जाना चाहिए।पूनम के ससुर जी उसके पास पहुंच गए और जब तक विभव नहीं आया तब तक रहे। विभव के आते ही पूनम नें सबसे पहले कहा मुझे ऑनलाइन बुकिंग सीखा दो और आगे से मै फल सब्जी लाने अकेले ही जाउंगी और धीरे धीरे सारे काम अकेले करना सीख लुंगी।अरे!आते ही यह क्या ना दुआ ना सलाम बस काम।क्या हुआ,मै हूँ ना बुक करने के लिए,तुम्हे सीखने की क्या जरूरत है?अम्बानी से मोहभंग हो गया?विभव नें हसँते हुए कहा।नहीं,पर भरोसा उठ गया है।इसलिए अब कुछ काम मै खुद भी करूंगी और कुछ काम अम्बानी की मदद से पर तुम्हारे भरोसे नहीं अपने भरोसा पर।

वाक्य – एकबार टुटा भरोसा फिर नहीं जुड़ता 

लतिका पल्लवी

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