असमर्थ तन से हूं, मन से नहीं – निशा जैन

“माफ कीजिए भाई साहब मै दहेज देने में असमर्थ हूं । मैने बेटी को पढ़ाया लिखाया , अच्छे संस्कार दिए बस ये ही मेरी धन दौलत है। ये मेरी गारंटी है कि बेटी आपके घर परिवार का पूरे तन मन धन से ध्यान रखेगी। कभी कोई ऐसा काम नहीं करेगी जिससे आपकी इज्जत पर कोई आंच आए”।लड़की देखने आए शर्मा परिवार से राधेश्याम जी बोले

“अरे ये कैसी बात कर रहे हैं आप ,किसने कहा आपसे कि हमे दहेज चाहिए हमे तो आप हेतल के रूप में हीरा दे रहे हैं और हमारे विकलांग बेटे को उसका जीवन साथी . बस ये ही हमारे लिए सबसे बड़ा उपहार है। रुपए पैसे की कमी तो हमारे घर में ही नहीं है बस हमे एक सुशील लड़की चाहिए जो आशु की विकलांगता पर दया नहीं करके उसके कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो और जो काम करने में वो असमर्थ है बस उसमें उसकी सहायता करे।”

आशु की मां हेमलता जी बोली

शर्मा जी का परिवार बहुत पैसे वाला था पर बेटे आशु को देखकर दुखी रहता था । एक हादसे में कुछ समय पहले हाथ में करंट लगने से उसके एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया था वो अपने सारे काम खुद नहीं कर पाता था इसलिए पैसे वाले घर की कोई भी लड़की उसके साथ शादी करने के लिए राजी नहीं हो रही थी पर एक दिन समाज में किसी ने उन्हें हेतल के बारे में बताया जिसकी मां नहीं थी और गरीब घर से थी।

शर्मा परिवार जब उससे मिला तो उनको हेतल में वो सारे गुण दिखाई दिए जो उन्हें अपनी बहु में चाहिए थे।

आज हेतल और आशु की सगाई पक्की हो रही थी इसलिए राधेश्याम जी सारी बातें साफ कर रहे थे ताकि बाद में कोई दिक्कत न हो।

दोनों परिवार और बच्चों की रजामंदी से दो महीने बाद शादी भी हो गई।

हेतल के घर में आने से जैसे खोई हुई रौनक लौट आई थी क्योंकि जब से आशु शारीरिक रूप से असमर्थ हुआ था तब से घर में एक अजीब खामोशी छा गई थी। माहौल तनावग्रस्त रहने लगा था।

आशु भी अब खुश रहने लगा था क्योंकि हेतल के रूप में उसे एक दोस्त जो मिल गया था। वो समय समय से उसके सारे काम करती थी। एक साए की तरह उसके साथ रहती थी। शादी के एक साल तक सब कुछ अच्छे से चल रहा था 

पर ये खुशियां ज्यादा दिन टिक न पाई क्योंकि शर्मा परिवार को व्यापार में बहुत बड़ा घाटा हुआ था और जो करोड़पति थे वो अब रोडपति बनने की कगार पर थे। आशु के पापा को बहुत बड़ा सदमा लगा था और चिंतित रहने लगे ये सोचकर कि अब समाज में उनकी इज्जत कम हो जाएगी। जिन बड़े लोगों से उनका उठना बैठना था वो भी अब कन्नी काटने लगे थे। घर का रुतबा , शानो शौकत सब मिट्टी में मिलने वाले थे पर हेमलता और हेतल दोनों ही समझदार औरतें थी उन्हें घर के रुतबे से ज्यादा अपनी जिंदगी को वापस पटरी पर लाने की चिंता थी। दोनों बस इसी प्रयास में रहती कि किसी तरह सब कुछ वापस पहले जैसा हो जाए 

जमा पूंजी भी दिनों दिन खत्म होती जा रही थी । आशु भी व्यापार में ही अकाउंट का काम संभालता था क्योंकि वो बाहर जाके नौकरी करने में असमर्थ था और वैसे भी व्यापार में उसकी जरूरत ज्यादा थी।

वो अपने आपको कोसने लगा कि घर का बेटा होते हुए भी मै कुछ नहीं कर पा रहा ।

हेतल के पापा भी उससे मिलने आए थे और सब कुछ जानकर बड़े दुखी हुए ।हेतल से बोले

“बेटा , मुझे पता है दिन अच्छे नहीं चल रहे पर ऐसे हिम्मत हारने से काम नहीं चलेगा । तूने तो इतनी पढ़ाई की है और तेरे पास तो सर्टिफिकेट भी है तू कोई नौकरी क्यों नहीं कर लेती ? आखिर तू भी तो घर का हिस्सा है , और इसमें कोई बुराई भी नहीं । तू कहे तो मैं बात करूं सबसे ।”

“पर पापा मै आशु को छोड़कर बाहर नौकरी करने नहीं जा सकती। उसके कितने ही कामों में मुझे उसकी मदद करनी होती है पर हां मैं घर से काम जरूर शुरू कर सकती हूं। आपने मुझे सही रास्ता दिखा दिया पापा,” और हेतल पापा के गले लग गई

बहुत सोचने विचारने के बाद हेतल ने सबके सामने एक प्रस्ताव रखा 

मां , पिताजी और आशु मुझे गलत मत समझना पर मै चाहती हूं कि मैं सिलाई और पार्लर का काम शुरू कर दूं घर से ही …वैसे भी मेरे पास कोर्स का सर्टिफिकेट भी है।आसानी से काम शुरू कर सकती हूं।। 

इतना सुनते ही शर्मा जी बोले “क्या बकवास कर रही हो बहु, अब नाई गिरी और दर्जी गिरी मेरे घर में चलेगी ? जहां मै घर पर दर्जी को बुलवाकर अपने कपड़े सिलवाता था वहीं अब मेरी बहु सबके कपड़े बनाएगी और सबके बाल काटेगी

क्या इज्जत रह जाएगी हमारी समाज में

हम इतने असमर्थ हो गए कि अपने घर की बहु से ये सब काम करवाएंगे। नहीं ऐसा नहीं होगा 

मै ये घर बेच दूंगा पर घर की लक्ष्मी को ऐसे काम नहीं करने दूंगा।

कान खोल कर सुन लो सब लोग”

“पर पिताजी इसमें हर्ज ही क्या है । क्या मैं आपके घर का हिस्सा नहीं । इज्जत से ज्यादा मुझे हम सबके जीवन की चिंता है । आज पैसे नहीं तो लोग बदल गए

कल वापस पैसे आ गए तो लोग भी वापस बदल जाएंगे आप इसकी चिंता मत कीजिए। बस आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने काम में सफल हो जाऊं और एक बेटी होने का फर्ज निभा सकूं”

“पर हेतल तुम अकेली सब कैसे कर पाओगी? मै तो कुछ भी कर पाने में असमर्थ हूं “जैसे ही आशु बोला हेतल ने कहा

“अरे मै अकेली कहां , तुम सब हो तो मेरे साथ

मै पार्लर और सिलाई करूंगी तो मां घर को संभालेगी,आप मेरे अकाउंट को देखना जैसे पहले व्यापार में देखते थे और पापा जी मुझे अपने अनुभव से सिखाएंगे कि व्यापार कैसे करना है। “

इतनी सकारात्मक सोच को देखकर सब खुश भी थे तो थोड़े आश्चर्य चकित भी पर हेतल के इस विश्वास पर सबको भरोसा हो गया कि हम इतने भी असमर्थ नहीं हुए कि नई शुरुआत भी न कर सकें।

सबकी एक राय से हेतल ने अपना काम शुरू कर दिया पर अंदर से उसको भी एक डर तो था कि कहीं काम नहीं चला तो पर फिर पापा की एक सीख याद आ गई “कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर”

खुद पर विश्वास है और काम नेक दिल से किया गया है तो परिणाम भी जरूर अच्छे आयेंगे।

थोड़ा समय लगा , लोगों ने बाते भी बहुत बनाई पर शर्मा परिवार की एकता और विश्वास सब पर भारी पड़ गया और हेतल का काम चल निकला । धीरे धीरे स्थितियां बदलने लगी थी। शर्मा जी अपनी बहु को देखकर इतराने लगे थे और उसे बेटी सा लाड़ दुलार करते। हेमलता जी एक मां की तरह उसका ध्यान रखती और आशु बराबर से उसके साथ खड़ा रहता।

घर में खुशियां वापस दस्तक देने लगी थी। हेतल खूब मेहनत करती थी , ग्राहक भी बढ़ने लगे थे और काम भी । उसने एक हेल्पर भी रख लिया था। एक दिन अचानक हेतल बेहोश हो गई।

सब घबरा गए और सोचने लगे शायद ज्यादा काम से बहु को कमजोरी आ गई है पर डॉक्टर ने बताया कि ये तो खुशखबरी थी हेतल मां बनने वाली थी तो सब झूम उठे।

हेमलता जी बार बार बहु की नजर उतार रही थी । 

समय पंख लगाकर उड़ रहा था और देखते देखते हेतल का आठवां महीना पूरा हो गया। इसी बीच करवा चौथ का व्रत भी आ गया । हेतल भी व्रत करती थी पर इस समय कैसे होगा बस यही सोचकर घबरा रही थी उसे इस हालत में देख आशु बोला 

“पूरे दिन चहकने वाली प्यारी पत्नी जी आज उदास क्यों है भला , तुम ऐसे अच्छी नहीं लगती हेतल। बताओ क्या हुआ ?”

“कल मेरा व्रत है पर मेरी तबियत ठीक नहीं तो कैसे हो पाएगा सब बस यही सोचकर घबरा रही हूं”

अरे इतनी सी बात , तुम्हे व्रत रखना क्यों है , मत करो पहले अपना ध्यान बाकी सब बाद के काम”

हेमलता जी जो दूर खड़ी सारी बातें सुन रही थी बोली “नहीं बेटा व्रत तो करना ही होता है, ऐसे छोड़ने से अपशगुन होता है। “

“हां तो छोड़ने की कौन कह रहा है मां, व्रत तो होगा पर हेतल नहीं मै व्रत रखूंगा। इसकी लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए इस बार व्रत मै रखूंगा। माना कि मै अकेले काम करने में असमर्थ हूं पर ये तो मैं अकेला भी कर सकता हूं तो बस कल व्रत मै रखूंगा।

ये सुनते ही दोनों सास बहु आश्चर्य से एक दूसरे को देखने लगी और बोली “तुम जो पूरे दिन खाते रहते हो , बिना पानी के कैसे व्रत रखोगे?”

“मां हेतल के बिना मै अधूरा हूं और इसे कुछ हो गया तो मैं जीते जी मर जाऊंगा ।

मै ये व्रत रखूंगा और इसकी लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करूंगा ।”

ये सुनकर दोनों भावुक हो गए और हेतल तो आशु के गले लग गई। हेमलता जी अपने बेटे बहु के इस प्यार की बलैया लेने लगी ।

अगले दिन पूरे मन से आशु ने व्रत रखा और शर्मा जी बेटे के इस कदम की , नई सोच की , प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे बोले “बेटा तन से तुम जरूर खुद को असमर्थ मान लो पर मन तो तुम्हारा हमसे भी ज्यादा समर्थ है जो अपनी जीवन संगिनी के लिए ये व्रत कर रहे हो । और साबित कर रहे हो कि पति पत्नी एक दूसरे के बिना सच में अधूरे हैं । मुझे तुम पर गर्व है और उसे चूम लिया।

चारों ओर खुशी का माहौल था और दुख के बादल अब छंट चुके थे। 

दोस्तों कहानी पसंद आए तो मेरा उत्साहवर्धन करना मत भूलिए । आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।

धन्यवाद

निशा जैन

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