आस- रेणु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

“सिया बेटा अब तुम्हें ऐक्सेप्ट करना ही होगा कि वरुण अब ताजिंदगी बेड रिडेन रहेगा। तुम्हारे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है, तुम एक ऐसे इंसान के साथ ज़िंदगी कैसे बिता सकती हो जो न बोल सकता है, न चल फिर सकता है, जिसके ठीक होने की उम्मीद ना के बराबर है।”

                 “मैंने नेट पर पढ़ा है, ऐसे कई मरीज ठीक भी हुए हैं, चमत्कार भी हुए हैं। वह सब कुछ महसूस कर सकता है, देख सकता है, सुन सकता है। मैं उसे ऐसे मुकाम पर नहीं छोड़ सकती जब उसे मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है “, और सिया अपने पिता के पास से उठ कर उस फ़िजिओथेरापी सेंटर के दूसरे कमरे में आगई जहां उसका पैरालाइज्ड पति वरुण स्यूडोकोमा में लेटा हुआ था और उसके सास श्वसुर बैठे हुए थे।

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उसके श्वसुर भी उससे बोले, “बेटा, तुम कोरी भावुकता में बह रही हो। हमारी तो यह इकलौती संतान है, हमें तो इसे देखना ही है। लेकिन तुम तो अभी मात्र सत्ताईस साल की हो, खूबसूरत हो, ज़हीन हो, इससे तलाक लेकर एक नई जिंदगी शुरू करो बेटा, देखो वरुण भी यही चाहता है, है ना वरुण”, और वरुण ने हाँ का संकेत देते हुए दो बार अपनी पलकें झपकाईं।

“उफ पापा, अब बस भी करिए, मेरा फैसला अटल है, और आँखों में उमड़ते आंसुओं को सायास रोकने  की कोशिश करते हुए वह भीतर के कमरे में चली गई। “उफ, यह नियति उसे क्या दिखाने पर आमादा है? तीन वर्ष पहले ही तो इतने उछाह उमंग से उसका विवाह दिल्ली के नामी अस्पताल में कार्यरत डाक्टर वरुण से हुआ था।

वह कितनी खुश थी। वरुण उसे अपनी पलकों पर सहेज कर रखता। उसके मुंह से कोई बात निकलती नहीं कि उसे झट पूरी कर देता, लेकिन देखते देखते उसके सोने के संसार को किसी की नज़र लग गई। वर्ष भर पहले एक ऐक्सीडेंट के बाद से वह स्यूडोकोमा में चला गया।

                    अब उसके अपने माता  पिता और सास श्वसुर वरुण को छोड़ उसपर दूसरा विवाह करने के बारे में सोचने के लिए ज़ोर दे रहे हैं। उसकी कोई नहीं सोच रहा। कैसे छोड़ दे वह वरुण को, जो सब कुछ देख, सुन और महसूस कर रहा है, जिसके नाम का कुमकुम उसने लगाया हुआ है, जिसके साथ उसने सप्तपदी के मंत्रों के बीच उसका जीवन भर साथ निभाने के  वचन लिए थे।

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मन ही मन उसने फिर से अपना निश्चय दोहराया, नहीं नहीं , वह किसी की  बात नहीं मानेगी। वरुण को बढ़िया से बढ़िया ट्रीटमेंट दिलाएगी, उसे एक बार फिर से ज़िंदगी की दूसरी पारी खेलने के काबिल बनाएगी।

मन ही मन यह भीष्म प्रतिज्ञा दोहरा अपने बहते आँसू पौंछ  वह वरुण के पास पहुंची। उसका शिथिल, प्राय निर्जीव हाथ अपनी मुट्ठी में भींच उसकी आँखों में झाँकते हुए उससे बोली, “मैं कहीं नहीं जा रही, तुम्हें ठीक होना ही होगा मेरी खातिर, माँ पापा की खातिर। बस तुम्हें अपनी हिम्मत बनाए रखनी है। जब स्टीफ़ेन हाकिंग ने अपनी बीमारी से लड़ते हुए इतना कुछ अचीव कर लिया तो तुम्हें भी अभी बहुत कुछ अचीव करना है।”

सिया को लगा वरुण की आंखों में आस के असंख्य दीप भक से जल उठे।

रेणु गुप्ता

मौलिक

जयपुर

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