मेघा खूब खुश थी क्योंकि की कितने सालों के बाद वो राखी मनाने भईया के घर जा रही थी। मां – पापा के जाने के बाद तो सारा त्योहार ही सूना हो गया था। मायका ही नहीं बचा था।
सब तैयारी कर ली, बाजार जाकर पूरे परिवार के लिए कपड़े खरीदे और राखी मिठाई सब लेकर बस कल जाने का इंतजार था।
सुबह जल्दी से उठ गई थी शायद रात भर नींद नहीं आई थी उसे। घर के सारे काम निपटाए और दोपहर की गाड़ी से निकल गई।
घर पहुंची तो देखा कि भईया भाभी तो कहीं जाने की तैयारी कर रहे हैं।
भईया ” कहीं जा रहे हैं क्या?” मेघा ने पूछा तो भाभी बोल पड़ी अरे ननद जी जल्दी से राखी बांधिए हमारी शाम को गाड़ी है।चार दिन की छुट्टी है तो हम सभी नैनीताल जा रहें हैं। टिकट तो पहले से थी ,अब आपने ही अचानक प्रोग्राम बना लिया तो आपके भईया मना नहीं कर पाए।”
ये क्या? वो तो चार – पांच दिन बच्चों और भईया – भाभी के पास रुकने आई थी।अब कौन सा मुंह लेकर वापस जाएगी। रविन्द्र को क्या कहेगी? उनको तो ताना मारने का एक और मौका मिल जाएगा।उनका तो मन नहीं था की मैं भईया के घर जाऊं।
भईया ” बता देते आप तो मैं नहीं आती। मैं तो आप सभी के साथ रहने आई थी।”
अरे ” तू तो कभी आती ही नहीं थी, मुझे लगा ऐसे ही कह रही होगी। तेरी भाभी का बहुत दिनों से मन था नैनीताल जाने का तो प्रोग्राम बना लिया। ऐसा करना तेरा मन है तो रुक जा, जाते समय पड़ोसी को चाभी दे जाना और हां बाई को बोल दूंगा काम कर जाएगी।”
मेघा ने जैसे सारे आंसू पी लिए कि क्या वो इतनी पराई हो गई है कि उसके लिए उसके भाई के घर में या दिल में इतनी सी भी जगह नहीं है कि इतने समय के बाद आई बहन को सम्मान से घर में रख सके और राखी जैसे पवित्र बंधन का कोई भी मान नहीं है उनके लिए।
वो पछता रही थी कि क्या करे।शाम को कोई गाड़ी भी नहीं है। उसने फैसला लिया कि भले ही उसे होटल में आज रात गुजारना पड़े वो राखी बांधते ही निकल जाएगी।
राखी बांध कर बिना कुछ खाए पीए वो चली गई और उसके आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे कि काश आज मां – पापा होते तो ऐसा बर्ताव उसके साथ कभी ना होता। मां हमेशा कहतीं थीं कि मैं जब तक हूं बिटिया आती रहा करो ।पता नहीं बाद में कोई पूछेगा की नहीं।
सचमुच अब मायके का भ्रम टूट गया था और दूसरे दिन वो अपने घर लौट गई थी लेकिन रविन्द्र ने कोई भी सवाल जबाव नहीं किया था उससे।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी
मुहावरा और लघुकथा प्रतियोगिता