रीना को जब पता चला कि वह फिर से गर्भवती है, उसका मन डर और खुशी से भर गया। पहली बार उसका गर्भपात हो गया था, इसलिए यह ख़बर उसके लिए बहुत मायने रखती थी। उसने पूरे नौ महीने संभलकर बिताए। जब बेटी का जन्म हुआ, रीना की आंखों में खुशी के आंसू थे।
पर उसने देखा कि सास और ननद के चेहरे पर मुस्कान नहीं थी। तभी उसका छोटा देवर दौड़ता हुआ आया औ और बोला भाभी छोटी सी गुड़िया आई है मैं बहुत खुश हूं मैं उसके साथ खूब खेलूंगा कोई खुश हो या नहीं हो अपन दोनों मस्ती करेंगे उसकी मासूमियत ने रीना का दिल छू लिया।
रीना को एक महीने के लिए जच्चा-बच्चा कमरे में रखा गया। उसने सोचा कि अब थोड़ी राहत मिलेगी। लेकिन उसकी ननद कामचोर थी। वह मोटी-मोटी दो रोटियां एक बार में लाकर कहती, “चुपचाप खा लो।” रीना को बासी रोटियां निगलनी पड़तीं। कई बार भूख न लगने पर वह उन्हें खिड़की से फेंक देती थी।
एक दिन ननद दूध लेकर आई तो रीना बोली, “दीदी, इसमें थोड़ा हॉर्लिक्स डाल दो, अच्छा लगेगा।” सादा दूध मुझे नहीं अच्छा लगता है लेकिन तभी ननद गुस्से से चिल्लाई, “कितनी हिम्मत है हॉर्लिक्स मांगने की? पता है कितना महंगा आता है?”
रीना चुपचाप आंसू पी गई। उसके मन में दर्द था कि पूरे घर का खर्च उसके पति की कमाई से चलता है। सास रोज हॉर्लिक्स पीती हैं, लेकिन उसके लिए मना है। क्योंकि वह एक गरीब परिवार से बिलॉन्ग करती थी इसलिए रीना चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई।
आज इतने साल बाद भी जब हॉर्लिक्स का डिब्बा देखती है, रीना की आंखें भर आती हैं। उसकी चुप्पी का दर्द अब भी दिल में कहीं रह गया ।
लेखिका रेनू अग्रवाल