गाँव के एक छोटे से घर में मोहन अपनी पत्नी सुनीता और दो बच्चों, रोहित और पायल, के साथ रहता था। मोहन एक किसान था, लेकिन सालों से सूखा पड़ने के कारण उसकी फसलें बर्बाद हो रही थीं। आमदनी कम होने के कारण घर चलाना मुश्किल होता जा रहा था।
सुनीता एक समझदार और सहनशील स्त्री थी, जो हर कठिनाई में मोहन का साथ देती थी। लेकिन जब बच्चों की पढ़ाई का सवाल आया, तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। रोहित नौवीं कक्षा में था और पायल छठी में। दोनों पढ़ने में होशियार थे, लेकिन फीस भरने के लिए पैसे नहीं थे।
मोहन के लिए यह सबसे बड़ा दर्द था। एक रात वह चुपचाप बैठकर आसमान की ओर देखने लगा, जैसे भगवान से पूछ रहा हो— “क्या मेरे बच्चों का भविष्य अंधकारमय ही रहेगा?”
गाँव में एक शिक्षक, शेखर सर, रहते थे। वे न केवल एक अच्छे शिक्षक थे बल्कि एक नेक इंसान भी थे। जब उन्हें मोहन की परेशानी के बारे में पता चला, तो उन्होंने रोहित और पायल को अपने घर बुलाया और कहा—
“बच्चों, अगर तुम्हारे माता-पिता तुम्हारी फीस नहीं भर सकते, तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हें पढ़ाई छोड़नी होगी। अगर तुम सच्चे मन से मेहनत करोगे, तो मैं तुम्हारी मदद करूंगा।”
यह सुनकर बच्चों की आँखों में आशा की किरण चमक उठी। शेखर सर ने उन्हें निःशुल्क पढ़ाना शुरू किया।
समय बीतता गया, और रोहित और पायल अपनी मेहनत से गाँव के सबसे होशियार बच्चों में गिने जाने लगे। रोहित ने अपने दसवीं की परीक्षा में जिले में टॉप किया और उसे स्कॉलरशिप मिल गई। पायल ने भी राज्य स्तर की प्रतियोगिता में पुरस्कार जीता।
मोहन और सुनीता की आँखों में आँसू थे, लेकिन ये आँसू दुख के नहीं, गर्व और खुशी के थे।
कुछ सालों बाद, रोहित एक बड़ा इंजीनियर बन गया और पायल डॉक्टर। उन्होंने गाँव वापस आकर अपने माता-पिता और शेखर सर के चरणों में सिर झुका दिया।
“पिता जी, माँ, और गुरुजी—आज जो कुछ भी हूँ, वह आप सबकी बदौलत हूँ।”
गाँव वालों ने जब यह देखा तो उनकी आँखों में भी आँसू आ गए। एक किसान का बेटा और बेटी, जो कभी फीस के लिए संघर्ष कर रहे थे, आज गाँव के गौरव बन चुके थे।
मोहन ने आसमान की ओर देखा और मुस्कुराकर कहा—
“भगवान, तेरी परीक्षा कठिन थी, पर तूने मेरे आँसू को सच में मोती बना दिया।”
शिक्षा:
संघर्ष चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, अगर मेहनत और लगन हो, तो आँसू भी मोती बन जाते हैं।
दीपा माथुर