शहर के एक नामी अपार्टमेंट में रहने वाली अनन्या को लोग “सक्सेसफुल” कहते थे। बड़ी कंपनी, ऊँचा पद, चमकती कार और सोशल मीडिया पर परफेक्ट तस्वीरें। मगर इस चमक के पीछे कहीं कुछ सूख गया था—उसकी आँखों का पानी।
एक समय था जब अनन्या छोटी-छोटी बातों पर भर आती थी। किसी की पीड़ा देखकर उसका दिल काँप उठता, गलती हो जाए तो सिर झुक जाता। माँ कहा करती थीं, “बेटी, आँखों का पानी बचाए रखना, यही इंसान होने की पहचान है।”
पर समय के साथ उसने सीखा—आगे बढ़ने के लिए भावनाएँ छोड़नी पड़ती हैं।
ऑफिस में एक दिन उसकी टीम की जूनियर, रिया, एक गलती की वजह से सबके सामने अपमानित हुई। अनन्या जानती थी गलती उसकी अपनी थी, पर उसने चुप रहना बेहतर समझा। मीटिंग खत्म हुई, लोग निकल गए, रिया की आँखों में आँसू थे। वह बोली, “मैम, अगर सच बोल देतीं तो…।”
अनन्या ने आँखें फेर लीं। उस पल उसे कुछ चुभा, पर उसने अनदेखा कर दिया।
उसी शाम अस्पताल से फोन आया। माँ भर्ती थीं। अनन्या दौड़कर पहुँची। माँ ने कमज़ोर आवाज़ में कहा, “बेटी, तू बहुत आगे बढ़ गई… पर तेरी आँखों में पानी क्यों नहीं रहा?”
अनन्या कुछ कह न सकी। माँ की सूखी आँखें और काँपते हाथ उसकी आत्मा को हिला गए।
अगले दिन ऑफिस में अनन्या ने एक असामान्य काम किया। उसने पूरी टीम के सामने अपनी गलती मानी, रिया से माफ़ी माँगी और कहा, “सफलता अगर इंसानियत छीन ले, तो वह हार है।” कमरे में सन्नाटा था, फिर तालियाँ बजीं। रिया की आँखों में राहत थी—और अनन्या की आँखों में आँसू।
उस दिन उसे समझ आया—आँखों का पानी ढल जाना ताकत नहीं, कमजोरी है। आधुनिक दुनिया में आगे बढ़ना ज़रूरी है, पर संवेदना खोकर नहीं।
अनन्या बदली नहीं, नर्म हुई। और उसी नर्मी ने उसे सचमुच बड़ा बना दिया।
प्रेरणा यही है:
जो इंसान अपनी आँखों का पानी बचा लेता है, वही जीवन की सबसे बड़ी जीत हासिल करता है।
सुदर्शन सचदेवा
विषय : आंखों का पानी ढलना