आंखों का पानी ढालना – नाज़ मन्नत

श्यामलाल एक कस्बे में रहने वाला व्यक्ति था। वह न तो मेहनती था और न ही ईमानदार, परंतु उसमें एक विशेष गुण अवश्य था—उसे किसी भी बात की लज्जा नहीं आती थी। लोग कहते थे कि उसने तो पूरी तरह आंखों का पानी ढाल दिया है। वह बिना शर्म किए झूठ बोलता, दूसरों का हक मारता और अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी धोखा देने से नहीं हिचकता।

श्यामलाल कभी दुकानदार से उधार लेकर लौटाता नहीं था, कभी पड़ोसी की वस्तुएँ लेकर गायब कर देता और जब कोई उससे पूछता, तो उल्टा उसी को दोष देने लगता। उसे समाज की आलोचना की कोई चिंता नहीं थी। गाँव के बुज़ुर्ग उसे समझाते, पर वह हँसकर टाल देता।

एक बार गाँव में पंचायत बैठी। गाँव के विकास के लिए धन इकट्ठा किया गया और श्यामलाल को हिसाब रखने की ज़िम्मेदारी दी गई, क्योंकि वह पढ़ा-लिखा था। परंतु उसने उस धन में से बड़ा भाग अपने लिए रख लिया। जब कुछ लोगों को शक हुआ और उससे हिसाब माँगा गया, तो वह निर्लज्जता से बोला कि सारा पैसा सही जगह खर्च हुआ है।

जाँच होने पर सच्चाई सामने आ गई। पंचायत में सबके सामने उसकी धोखाधड़ी उजागर हो गई। फिर भी श्यामलाल के चेहरे पर कोई पश्चाताप नहीं था। वह बहाने बनाता रहा और दूसरों को ही दोष देता रहा। उसकी इस निर्लज्जता को देखकर सभी लोग स्तब्ध रह गए।

पंचायत ने उसे दंडित किया और गाँव से बाहर कर दिया। धीरे-धीरे उसके अपने भी उससे दूर हो गए। जिस समाज की परवाह उसने कभी नहीं की थी, उसी समाज के बिना वह अकेला पड़ गया। तब जाकर उसे समझ में आया कि सम्मान और विश्वास धन से नहीं, बल्कि अच्छे आचरण से मिलता है।

मोरल (शिक्षा):

जो व्यक्ति आंखों का पानी ढाल देता है, वह कुछ समय के लिए लाभ तो पा सकता है, पर अंततः समाज में अपना सम्मान, विश्वास और स्थान खो देता है।

Thanku & Regards 

Eram Naaz Mannat

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