मैं कह रहा था ताऊजी कि, बड़ी दीदी का तो कोई भाई है हीं नहीं तो फिर मायके की संपत्ति में उनका हिस्सा लगाना जरूरी है क्या???
आंखों में बेशर्मी की पट्टी चढ़ाए मनोज ने ताऊजी से कहा।
ताऊजी ने उसे जलती निगाहों से देखा और गुस्से से तमतमाते हुए कहा _ किसको क्या मिलेगा कितना मिलेगा इसका फैसला करने के लिए हम बड़े मौजूद हैं यहां तुम्हें अपनी राय देने की कोई आवश्यकता नहीं है।
छह भाइयों के बंटवारे के सारे कागजात तैयार किए जा चुके थे….
घर के सारे पुरुष और महिला सदस्यों को खास कर के एकजूट किया गया था ताकि सबकी राय ली जा सके।
नीता घर के सबसे बड़े बेटे की बेटी थी…
वो माता-पिता की एकलौती संतान थी इसलिए अपने माता-पिता की सेवा और बीमारी में उनकी देखभाल की सारी जिम्मेदारियां उसने बखूबी निभाई थी।
घर के सारे फैसले मंझले ताऊजी हीं किया करते थे…
खेत-खलिहान बाग-बगीचे घर-परिवार सबकी जिम्मेदारी वहीं देखा करते थे…
कहां और कितने खेत हैं इस सबकी जानकारी केवल मंझले ताऊजी को हीं था…
घर में सब-कुछ अच्छा चल रहा था परंतु बदलते समय को देखते हुए ताऊजी ने बंटवारे का फैसला सुना दिया….
घर के सभी नौजवान सदस्यों के मन में यहीं था कि बड़ी दीदी का तो कोई भाई नहीं है तो,उनको हिस्सा देने की कोई जरूरत नहीं है।
परंतु मंझले ताऊजी ने बड़ी दीदी को भी बंटवारे की प्रक्रिया में बुलाया और सभी पंचों के सामने पूछा- देखो नीता अब बंटवारे की सारी प्रक्रिया पूरी होने वाली है बस हम सब ये जानना चाहते हैं कि तुम अपना हिस्सा लेना चाहोगी या किसी को देना चाहोगी???
नीता ने सभी पंचों को साक्षी मानकर अपना फैसला सुना दिया, ताऊजी मुझे मायके की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं चाहिए….
मेरे सभी भाई मुझे अत्यन्त हीं प्रिय हैं।
मैं मायके में हिस्सा लेकर इन सबकी शत्रु नहीं बनना चाहती।
मैं बस भाइयों से यहीं
चाहती हूं कि मैं जब भी मायके में आऊं वो मेरा उचित मान-सम्मान करें…
कभी मुझे ये महसूस नहीं होने दें कि मेरा कोई सगा भाई नहीं है…
और मनोज तुमने कहा था कि बड़ी दीदी का हिस्सा लगेगा कि नहीं तो सुन लो मेरे प्यारे भाई तुम सब हो मेरा सबसे बड़ा हिस्सा…
एक बहन के लिए उसके भाई से बढ़ कर कुछ भी नहीं है…
मनोज ने बड़ी दीदी की बातें सुनकर आंखें नीची कर लीं और लज्जित हो कर बोला – बड़ी दीदी क्षमा कर दो मुझे…
मैंने आपको कमतर आंक लिया…
मैं आपको समझ हीं नहीं पाया…
बड़ी दीदी ने उसे गले लगा लिया और बोली अपनी बहन से आंखें नीची करने की जरूरत नहीं है तुम्हें मैं चाहती हूं मेरा भाई सदैव सर ऊंचा कर के जिए यूं नजरे चुरा कर नहीं…
नीता की बातें सुनकर सब हंसने लगे।
डोली पाठक
पटना बिहार