आंखें भर आना – सुदर्शन सचदेवा 

निहारिका एक UX डिजाइनर थी—हमेशा व्यस्त, हमेशा भागती हुई, हमेशा “ओके, आई’म फाइन” कहते हुए।

पर उसके फोन की स्क्रीन पर एक ऐप था जिसे उसने कभी नहीं खोला था—“MemoryVault”।

यह ऐप आवाज़, संदेश और छोटी यादों को सुरक्षित रखता था।

यह ऐप उसके पिता ने उसकी आखिरी जन्मदिन पर इंस्टॉल किया था।

तभी एक हादसे में वो गुजर गए… और ये ऐप कभी खुला ही नहीं।

एक रात, ऑफिस के बाद वह मेट्रो में बैठी थी। थकी हुई, फोन हाथ में, और दिल कहीं और।

गलती से उसका अंगूठा उसी ऐप पर चला गया।

ऐप खुलते ही एक स्क्रीन उभरी—

“You have 1 unsaved message from Dad.”

निहारिका का दिल जैसे रुक-सा गया।

मेट्रो की भीड़, शोर—सब दूर हो गया।

उसने प्ले बटन दबाया।

पिता की आवाज़ आई—

“बेटा, मैं जानता हूँ तू स्ट्रॉन्ग है… पर स्ट्रॉन्ग लोग भी कभी-कभी रो सकते हैं।

अगर कभी लगे कि दुनिया तेज़ दौड़ रही है, बस थोड़ी देर रुक जाना। मैं यहीं हूँ, तेरे साथ।”

आवाज़ टूट रही थी, जैसे जल्दी में रिकॉर्ड की गई हो।

जैसे उन्होंने भी सोचा हो—कल बता दूंगा… वक्त है अभी।

पर वक्त कहाँ होता है?

निहारिका की आंखें भर आईं।

वो मेट्रो की खिड़की में अपना धुंधला प्रतिबिंब देख रही थी—

आज पहली बार उसने खुद को टूटा हुआ माना, और ठीक भी।

ऐप ने अंत में एक लाइन दिखाई—

“Message saved to your heart.”

उस पल उसे लगा—

तकनीक चाहे कितनी भी आधुनिक हो जाए,

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो नेटवर्क से नहीं,

दिल की धड़कनों से जुड़े रहते हैं।

और उसके आंसू…

उस रिश्ते की सबसे सच्ची नोटिफिकेशन थे।

सुदर्शन सचदेवा 

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