आंख भर आना – विमला गुगलानी

   झुगी- झोंपड़ी बस्ती में कोहराम मचा हुआ था। हरिया और उसकी पत्नी भगवती दोनों शहर में बन रही किसी बड़ी इमारत में मजदूरी करते थे। दोनों के अंकुश और सुखी यानि सुखमनी पांच और आठ वर्ष के दो बच्चे थे जो कि पास के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे।घर में हरिया की बूढ़ी मां भी रहती थी।  आज भी रोज की तरह दोनों काम पर गए लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

        कुछ दिन पहले ही बनी बिल्डिंग की एक छत गिर गई और कई मजदूर नीचे दब गए। कुछ को तो मामूली चोटें आई और कईयों को ज्यादा, लेकिन किस्मत की मार कुछ ऐसी पड़ी कि हरिया और भगवती ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। चारों और भगदड़ मची हुई थी। कोई मालिकों को कोस रहा था तो कोई प्रशासन को। 

      घायलों को हस्पताल पहुंचाया गया और हरिया और भगवती के शव जब बस्ती में पहुचें तो वहां आसपास भीड़ इकट्ठी हो गई। बूढ़ी मां के रो रो कर आंसू सूख चुके और दूसरी तरफ बच्चे सहमें खड़े थे। पड़ौसी तेजभान ने गांव में हरिया के बड़े भाई को कई बार फोन लगाया लेकिन फोन बंद आ रहा था।

    बेचारे गरीब लोग, पता नहीं भाई भी कहीं काम पर होगा या फिर फोन में बैलेंस नहीं होगा। ठेकेदार और कुछ बड़े लोग भी आए लेकिन सात्वंना के दो शब्द बोल कर और  हादसे की पूरी जांच पड़ताल का वायदा करके सब खिसक लिए। बस्ती में कोई ऐसा नहीं था जिसकी आंख न भर आई हो।

वहां करीब पचास टूटे फूटे झोपड़ी नुमा घर थे। कभी नल में पानी के लिए तो कभी बिजली की तारों को लेकर वहां रोज लड़ाई होती लेकिन इस दुःख की घड़ी में सब एक थे। उनके मुखिया जसराज के कहने पर सबने पैसे इकटठे किए और दोनों का अतिंम संस्कार किया।

     उस रात कहीं चूल्हा नहीं जला।बाहर से लाकर बच्चों , बूढ़ों को थोड़ा बहुत खिलाया।सारी मजदूर बस्ती थी। रोज कमा कर ही रूखी सूखी खा कर गुज़ारा करते। अगले दिन भाई तक भी बात पहुंच गई। तीन चार लोग गांव से आए। रीति रिवाज पूरे करके चले गए। 

   बच्चों की और बूढ़ी मां की देखभाल कैसे हो। गांव में भाई का गुजारा भी मुशकिल से होता था। मालिकों से कुछ मदद मिलने की आशा थी लेकिन तब तक क्या हो, कोई कमाने वाला नहीं, किसी ने कहा बच्चों को अनाथालय भेज दो लेकिन दादी ने यह होने नहीं दिया।

     दो तीन घर छोड़कर भगवती की खास सहेली रूकमणी रहती थी। उसके दोनों बच्चे भगवती के बच्चों की उमर के ही थे। गरीब हो या अमीर भगवान ने दिल तो सबको दिया है। रूकमणी मजदूरी पर नहीं जाती थी, वह आसपास तीन चार कोठियों में काम करती थी। 

      अनाथालय में बच्चें छोड़ने को उसका दिल नहीं माना, उसकी आंखों के सामने भगवती की तस्वीर घूम रही थी। कितना प्यार था उसे अपने बच्चों से। हफ्ता होने को आया, किसी तरह सब मिलजुलकर उन तीनों के खाने का बंदोबस्त कर रहे थे। लेकिन ऐसा कब तक चलता। मुखिया ने बैठक बुलाई, इससे पहले कि कोई फैसला होता रूकमणी ने कहा कि उन तीनों की जिम्मेवारी वो उठाएगी। उसके पति ने भी हामी भरी।” लेकिन तुम्हारा तो अपना गुज़ारा नहीं होता” मुखिया ने कहा। 

    “ कोई बात नहीं, देख लेगें, सब मिलकर रूखी सूखी खा लेगें”। रूकमणी का ऐसा दिल देखकर वहां बैठे सब की आंखे भर आई और फैसला हुआ कि सब मिलकर इस परिवार की देखभाल करेगें। तभी वहां पर बिल्डिगं के मालिक के दो लोग आए और उनकी आर्थिक मदद करते हुए कहा कि जाने वालों को तो वापिस नहीं लाया जा सकता लेकिन पूरी कानूनी कार्यवाही होगी और मदद भी दी जाएगी । 

       अब रूकमणी का और भगवती का परिवार इकट्ठा रहता है, और चारों बच्चे मिलकर स्कूल जाते है। सब झगड़ते भी है और एक दूसरे की मदद भी करते है और जब कभी दिन त्यौहार पर मिलकर बैठते हैं तो हरिया और भगवती की याद में आंसूओं का सैलाब भी उमड़ पड़ता है।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

मुहावरा- आंख भर आना

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