आंगन का बूढ़ा पेड़ और बूढ़े मां-बाप शैली की परेशानी का कारण बनते जा रहे थे ।शैली शिवम से कहने लगी कि कहने को तो हमारे पास इतनी जगह है लेकिन इस पेड़ ने आधी से ज्यादा जमीन घेर रखी है ।बाहर आंगन में यह पेड़ और घर के अंदर तुम्हारे मां बाबूजी ने जीना हराम कर रखा है ।पेड़ की सूखे पत्ते और गंदगी समेट समेट कर तो परेशान हो गई हूं । शिवम बोला तो क्या करूं, मां बाबूजी किसी भी कीमत पर उसको काटने नहीं देंगे उन्होंने बड़े जतन से उसे लगाया था।
शैली बोली ,,, तुम अगर मेरी एक बात मानो तो हमारी मौज ही मौज होगी शिवम ने हैरानी ने पूछा ।कि क्या ? शैली कहने लगी देखो अगर तुम थोड़ा सा अपना मन कड़ा कर लो तो हम उन लोगों को कुछ दिन के लिए तीर्थ यात्रा पर भेज देंगे और जब तक वह लौट कर आएंगे पेड़ कट चुका होगा फिर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे फिर किसी बिल्डर से बात कर लो आंगन में लगे पेड़ को काटकर यहां बढ़िया सा बच्चों के लिए कमरा बनवा देते हैं ।शिवम बोला आईडिया तो अच्छा है चलो देखते हैं।
दूसरे दिन शिवम माता-पिता के लिए चार धाम जाने का एक महीने का पैकेज लेकर आ गया उनके पास जाकर कहने लगा अब आप लोगों ने बहुत काम कर लिया, आप अब यात्रा कर आइए वे दोनों यात्रा की बात सुनकर बहुत खुश हुए। सुषमा मां की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई वह दोगुने उत्साह से तैयारी में जुट गई । पिता सुधीर को भी कुछ अटपटा तो लगा परंतु सुषमा का उत्साह देखकर वह कुछ ना बोले। चार दिन बाद दोनों के यात्रा पर जाने का समय आ गया शिवम ने कैब बुक कर दी सभी लोग स्टेशन तक उनको छोड़ने गए ।
दूसरे दिन एक बिल्डर को बुलाकर आंगन में लगा पुराना नीम का पेड़ कटवा दिया गया और शुरू हो गया बच्चों के लिए उनका नया कमरा बनवाने का कार्य ।
जब पेड़ कट रहा था तो शिवम को दिल में कुछ अटपटा सा लग रहा था पर शैली के उत्साह और बच्चों की खुशी को देखते हुए वह कुछ नहीं बोला। 20 दिन में वहां दोनों बच्चों के लिए कमरा बन चुके थे। बच्चे अपना कमरा पाकर बहुत खुश थे कुछ दिनों बाद जब सुषमा जी और सुधीर जी की यात्रा पूरी हो गई और वह अपने आशियाने में वापस आए तो गेट में घुसते ही घर के बदले हुए स्वरूप को देखकर वह एकदम शॉक्ड हो गए ।
मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे आंखों से अश्रु धारा प्रवाहित हुई जा रही थी, पैरों की शक्ति एकदम चली गई थी, दोनों एक दूसरे को देख रहे थे।शिवम और बच्चे दौड़ते हुए आए शिवम ने जैसे ही उनके पैर छूने जाए दोनों चीख कर पीछे हट गए सुधीर जी चिल्ला कर बोले…….
नालायक बंद कर अपना नाटक हमें लगा तू हमारे पुण्य का फल है लेकिन तूने साबित कर दिया कि हमने जरूर महा पाप किए होंगे जो तेरे जैसी संतान हमें मिली। चार धाम की यात्रा का नाटक इस पेड़ को काटने के लिए किया था ।अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर बोले चलिए सुषमा जी अब मुझे एक पल भी इस घर में नहीं रुकना है।
सुषमा जी ने शिवम को पकड़ कर बोली तूने यह क्या कर दिया तूने पेड़ नहीं बल्कि हमारे बड़े बेटे को मार डाला। शिवम ने यह सुन तो उसका मन बहुत विचलित हो गया लेकिन शैली का मन तो उछल पड़ा वह सोचने लगी, इसे देखते ही एक इसे कहते हैं एक तीर से दो निशाने लगाना। वह भगवान जी आपने तो मेरी बात सुन ली ।शिवम रोकता रह गया पर उन दोनों ने एक न सुनी और रोते हुए घर छोड़कर गांव की राह पकड़ ली ।
शिवम पेड़ तो कटवाना चाहता था पर उसे अपने मां पिताजी से बहुत प्यार था उनके घर से इस प्रकार रो कर जाना उसके हृदय को भेद रहा था उसने अपने बचपन में पेड़ के साथ मां पिताजी के साथ बताएं स्मृतियां रह रहकर याद आ रही थी उसने तय किया कि वह कल ही गांव जाकर मां पिताजी को घर वापस लेकर आयेंगे ।
मां पिताजी के पेड़ के प्रति लगाव को अब वह महसूस कर पा रहा था अगले दिन शैली के मना करने पर उसने उसे डांट कर कहा मेरे मां पिता अगर इस घर में नहीं आएंगे तो मैं भी इस घर में नहीं रुकूंगा पता नहीं कैसे मैं तुम्हारी बातों में आ गया पर अब और नहीं एक गलती में पेड़ को काटकर कर चुका हूं पर अपने माता-पिता को इस उम्र में गांव में छोड़कर अपराध का भागी नहीं बन सकता मैं उनको लेने कल जा रहा हूं और तुम्हें भी साथ में चलना है ।
अगले 2 घंटे में शिवम शैली और अपने बच्चों के साथ अपने गांव वाले घर पहुंच गया। वहां जाकर वह सुधीर जी के पैरों में गिर पड़ा बोला ,,,,पापा मुझे बहुत बड़ा अपराध हो गया आप अपने इस नालायक बेटे को माफ कर दो मैं अपने आंगन की छांव तो खो चुका हूं पर आप दोनों के बिना तो उसे घर में में सांस भी नहीं ले पा रहा हूं ,आप मुझे इस अपराध की जो भी सजा दो पर मुझे और मेरे बच्चों से अपने आशीर्वाद और संस्कारों की छांव से वंचित ना करो।
शैली ने भी हाथ जोड़कर अपने किए की माफी मांगी और दोनों को बच्चों की कसम देकर घर चलने का आग्रह किया । शिवम और बच्चों को इस तरह से रोता हुआ देखकर सुधीर जी की आंखें नम हो गई। सुषमा जी अपने आंखों से इशारा करके दोनों को माफ करने का आग्रह किया । सुधीर जी ने दोनों के चेहरे पर पश्चाताप के आंसू देखकर उनको माफ कर दिया परिवार के वृक्ष को लहलहाते हुए देखकर शिवम ने भगवान का धन्यवाद करते हुए हाथ जोड़ लिए।
स्वरचित ,,,,
सरितालोक दीक्षित
ग्वालियर ,मध्य प्रदेश