आरती की मकान मालकिन की बेटी प्रिया जो कि दसवीं कक्षा मे पढ़ती थी वह प्रतिदिन उसके घर उसकी बेटी के साथ खेलने आती थी साथ ही पुरे मुहल्ले की खबर भी आरती को देती।आरती की बेटी तीन वर्ष की थी जिसके साथ प्रिया को खेलना अच्छा लगता था।आज जब दोपहर मे स्कूल से आने के बाद प्रिया आरती घर आई तो आरती से पूछा भाभी आप अपने मायके नहीं जाइएगा?और साथ ही पुरे मुहल्ले की बहूओ के बारे मे भी बताने लगी।फ़लाना भाभी आज मायके गईं तो फ़लाना भाभी कल
जाएंगी, किसी बहू का भाई ही राखी बंधवाने आने वाला है, किसी नें डाक से राखी भेज दिया है।प्रिया लगातार बोले जा रही थी। जब उसने पुरे मुहल्ले का समाचार सुना दिया तब जाकर चुप हुई।अब फिर से उसने वही सवाल आरती से किया और बोली भाभी आपने जबाब नहीं दिया। आरती नें हँसते हुए कहा तुम कुछ बोलने दोगी तब तो जबाब दूंगी। तब से तो तुम ही बोले जा रही हो। अच्छा मेरा बोलना
अच्छा नहीं लग रहा है तो मै कल से आपको कोई बात नहीं बताउंगी। अरे, बच्ची ऐसा नहीं करना नहीं तो मेरा मन ही नहीं लगेगा। एक तुम्ही तो हो जिसके कारण यह गाँव मुझे अच्छा लगता है।तुम ही तो मेरी छोटी सहेली हो।बस बस ज्यादा मस्का लगाने की जरूरत नहीं है। मै कल भी आकर आपको
सारी बात बताउंगी। अभी मै जा रही हूँ। प्रिया तो चली गईं पर अपने सवाल से आरती के मन मे उथल पुथल मचा गईं। प्रिया के जाने के बाद आरती अपने मायके की याद मे खो गईं।उसके मन मे अपने बचपन की याद कभी धुंधली नहीं पड़ी।उसे आज भी अच्छी तरह से याद आता है, जब वह पांच वर्ष की थी।उसने पड़ोस की लड़कियों को अपने भाई को राखी बांधते देखा और रोते हुए आकर माँ से
बोली मुझे भी अपने भाई को राखी बांधनी है। दादी नें कहा जा जाकर कृष्ण भगवान को राखी बांध दे और उनसे एक भाई माँग ले।फिर उसे राखी बांधते रहना। बच्चे का भोला मन उसने कृष्ण की मूर्ति को राखी बांध दिया और उनसे भाई की विनती की।आरती की माँ नें अपनी सास को कहा माँ आप उसे यह क्यों सीखा रही है? आप तो जानती है कि मुझे अब बच्चा नहीं हो सकता है।कितनी कोशिशो
के बाद तो यह हुई है अब दूसरे के लिए डॉक्टर नें साफ मना कर दिया है।उसे कृष्ण को अपना भाई मानकर राखी बाँधने को कहिए।दादी नें समझाया डॉक्टर के कहने से क्या होता है जब कोई दिक्कत नहीं है तो बच्चा हो सकता है। ब्लडप्रेशर कोई इतनी बड़ी बीमारी नहीं है।बच्चो की भगवान सुनते है।
आरती की माँ चुप हो गईं। उसे पता था कि माँ को समझाया नहीं जा सकता है, पर उसे मालूम था कि उसे जब भी बच्चा रहता है तो उसका ब्लडप्रेशर हाई हो जाता है और फिर गर्भपात हो जाता है। आरती के पहले ऐसा दो बार हो चूका था। आरती के होने के वक़्त पुरे सात महीने डॉक्टर की देखरेख मे रही, पूरा एहतियात बरतने के बाद किसी तरह आरती को डॉक्टर नें बचाया और ऑपरेशन करके
सातवे महीने मे ही उसको पैदा कर दिया गया। पर ईश्वर की माया से कुछ भी हो सकता है। आरती की प्रार्थना को भगवान नें सुना और उसे अगले वर्ष एक भाई हुआ। आरती अब एक पल को भी भाई के पास से हटना नहीं चाहती थी। स्कूल जाने के नाम पर रोने लगती, नहीं मै भाई को छोड़कर नहीं जाउंगी।किसी तरह समझा बुझाकर उसे स्कूल भेजा जाता था। यह सिलसिला तब तक चला जब तक
भाई का स्कूल मे नामांकन नहीं हुआ।जब भाई का भी स्कूल मे नामांकन हो गया तो अब वह ख़ुशी ख़ुशी भाई को लेकर स्कूल जाती।देखते देखते समय व्यतीत हो गया और वह बारहवीं बोर्ड पास हो गईं। पर उसका भाई के प्रति प्रेम ज़रा सा भी कम नहीं हुआ। आगे की शिक्षा के लिए जब बाहर जाने की बात हुई तो उसने यह कहकर मना कर दिया कि वह भाई के बिना नहीं रह सकती है। सबने बहुत
समझाया की आगे भाई भी बाहर जाएगा तो कैसे रहोगी? तुम तो फिर भाई की पढ़ाई भी बर्बाद करोगी। उसने कहा तब की तब देखेंगे।इसतरह से आरती का नाम उसके शहर के कॉलेज मे ही बी ए मे लिखवा दिया गया। देखते देखते फिर पांच वर्ष बीत गया आरती नें बी ए, बी एड कर लिया और भाई नें भी बारहवीं कक्षा पास कर ली। अब उसका नामांकन इंजिनियरिंग मे हो गया। सभी को डर था कि
कही आरती हंगामा ना करनें लगे। इस डर से उसके पिता नें पहले ही उसकी शादी करने की सोची और उसके लिए वर खोजने लगे। पर आरती नें भाई के भविष्य का सोचकर उसे बाहर जाने की आज्ञा दे दी। भाई के बहुत समझाने पर उसने अपने विवाह की भी रजामंदी दे दी और इसतरह से उसका विवाह एक ग्रामीण बैंक मे काम करने वाले लडके से हो गया ।दोनों भाई बहन दूर हो गए पर प्यार मे
ज़रा भी कमी नहीं आई। वह प्रतिदिन अपने भाई को फोन करती भाई भी जब तब उससे मिलने आता रहता। कुछ दिनों बाद भाई की पढ़ाई पूरी होने और उसकी नौकरी लगने के बाद भाई की भी शादी हो गईं। फिर भी उसका भाई को फोन करने का और भाई का भी महीना मे एक बार बहन से मिलने आने का क्रम जारी रहा।लेकिन यह बात उसकी भाभी को बुरी लगती थी। वह इसके कारण
प्रायः घर मे कलह करती और कहती तुम्हारी बहन जैसी तो बहन ही नहीं देखी हूँ। मेरा भी तो भाई है पर क्या मै उसे रोज़ फोन करती हूँ या वह जब तब हमारे यहाँ आता रहता है।जबकि भाभी का भाई भी मुंबई मे ही रहता था।पर भाई उसकी बात को अनसुना कर देता था।यह बात आरती को नहीं पता थी। पिछले वर्ष की राखी मे आरती का भाई बीमार था इसलिए वह नहीं आ सकता था। आरती नें
सोचा कि हर बार तो भाई आता ही है इसबार मै ही चली जाती हूँ। इसी बहाने भाभी से भी मिल लुंगी, उसकी घर गृहस्थी भी देख लुंगी। यह सोचकर वह भाई के घर मुंबई चली गईं।जब वह वहाँ पहुंची तब उसकी भाभी अपने भाई को राखी बाँधने गईं थी।आरती नें अपने भाई को राखी बांध दिया।थोड़ी देर
बाद उसकी भाभी आई और आते ही आरती को देखा। उसे देखते ही उसकी भाभी का मूड खराब हो गया और वह उसके सामने ही अपने पति से बोलने लगी। लो आ गईं तुम्हारी प्यारी बहना। इस बार तुम नहीं गए तो स्वयं ही आ गईं। अपना उपहार क्यों छोड़ेगी। इसी लिए तो भाई भाई करती रहती है। जानती ही है कि भाई के पास बहुत पैसे है तो मिला के रहूंगी तो उपहार देता रहेगा। यह बात आरती
को नागवार गुजरी और उसने कहा कि तुम्हारी सोच बहुत ही घटिया है। तुम्हारी बातो नें मुझे बहुत आहत किया है।मै आज प्रण लेती हूँ कि आज से भाई को कभी फोन नहीं करूंगी और भाई से कहा कि आज से तुम कभी भी मेरे घर नहीं आना। तुम्हे मेरी कसम है। यह कहकर वह भाई के यहाँ से चली आई और आज एक वर्ष से उसने ना भाई को फोन किया और ना भाई कसम के डर से उसके
घर आया। आरती यह सब सोचते सोचते रोने लगी। तभी फिर उसकी मकान मालकिन की बेटी प्रिया फिर से आ गईं और उसे रोते देख कर पूछने लगी भाभी क्या हुआ? आरती नें बहाना कर दिया कुछ नहीं बच्ची आँख मे मिर्च चली गईं थी। बोलो तुम किस लिए आई हो? कुछ नहीं भाभी बस ऐसे ही। कुछ देर बाद आरती के पति के आने के बाद प्रिया चली गईं। आरती नें सोचा राखी के दिन भाई को फोन कर लुंगी। ऐसी आन किस काम का जो मुझे मेरे भाई से दूर कर दे।आरती फिर अपने रोजमर्रा
के काम मे लग गईं और रक्षा बंधन का इंतजार करने लगी । दो दिन बीत गया और राखी का दिन आ गया। आरती नें घर के सारे काम करने के बाद जब उसका पति बैंक चला गया तो एक राखी लेकर कृष्ण की मूर्ति को बांध दी और कहा हे कृष्ण मै हरेक वर्ष आपको राखी बांधती हूँ पर मैंने जब पहली बार आपको राखी बाँधी थी तब मैंने आपसे भाई माँगा था और आज फिर आपसे विनती करती हूँ कि
आप मुझे मेरे भाई से मिला दो।तभी दरवाज़े की घंटी बजी उसने दरवाजा खोला तो सामने उसका भाई खड़ा था। बहन को देखते ही उसने हाथ जोड़कर रोते हुए कहा दीदी मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हारी कसम तोड़ी है,पर मै आपसे राखी बंधवाए बिना नहीं रह सकता। हमारा बंधन सिर्फ कच्चे धागो का बंधन नहीं है। यह प्रेम का बंधन है। जो किसी के ईर्ष्या या किसी के कसम से नहीं टूटेगा। आरती नें भाई को गले लगा लिया और कहा सही कहा तुमने भाई।
वाक्य —-यह बंधन सिर्फ कच्चे धागो का नहीं है।
लतिका पल्लवी