मैं आप से कोई बात नहीं करना चाहता और न कोई संबंध रखना चाहता हूं ..
मां बोली..बेटा राकेश! ये खून के सम्मानजनक रिश्ते इस तरह नहीं मिटाए जा सकते..
मां! खून का सम्मानजनक रिश्ता समझकर ही मैंने चाचा जी को अपनी कंपनी में काम की देखभाल के लिए रखा था.. मैंने बचपन में ही पिता को खो दिया था… हौसले की उड़ान भरकर एक कंपनी खोली…
सोचा चाचा जी भी अब अकेले हैं.. एक पिता की तरह अपनी सामर्थ्य अनुसार मेरा व्यवसाय में साथ देंगे…दोनों एक दूसरे का सहारा बनकर रहेंगे..
मेरी पत्नी मालती ने भी उन्हें ससुर की तरह मान, अपनत्व दिया और देखभाल की…
कैशियर के साथ मिलकर चाचा जी ने पच्चीस लाख का घोटाला करके इस रिश्ते को हमारी आंखों से गिरा दिया. यह रिश्ता अब हमारी आंखों से गिर गया है..
मां! इस वृद्धावस्था में उन्हें घर में तो रखूंगा ,पर वे अब पहले जैसे सम्मान के हकदार नहीं हैं…
# आंखों में गिरना ( इज्ज़त कम होना)
स्वरचित मौलिक रचना
सरोज माहेश्वरी पुणे (महाराष्ट्र )