आखिरी मैसेज – पूर्णिमा सोनी : Moral Stories in Hindi

आलमारी में अपने कपड़े जमा कर  पूनम पलटी ही थी कि फोन पर निगाह पड़ी, उठा कर देखा तो बहुत से मिस काल और मैसेज पड़े थे।

क्या करें?

जब से इस शहर में ट्रांसफर हो कर आई है, काम से फुर्सत ही नहीं मिल रही है। पतिदेव  और बिटिया आते ही अपनी व्यस्तता में डूबे हैं। आते ही इन्होंने आफिस ज्वाइन कर लिया और बेटी का एडमिशन हो गया और उसके स्कूल शुरू हो गए।सुबह किचन की भागमभाग से फुर्सत नहीं मिलती, दोनों के निकल जाने के बाद,पूनम सामान,अनपैक करने में जुट जाती।

कितना बड़ा काम होता है , किसी ट्रांसफर के साथ नई जगह पर जाकर गृहस्थी फिर से जमाना। हालांकि इतने वर्षों से इसका भरपूर अनुभव है। अपने पापा के साथ भी अनेक शहरों में ट्रांसफर में घूमती रही,अब पतिदेव के साथ भी वही हाल है।

हालांकि ये शहर कोई नया तो नहीं। पूनम के माता-पिता भी इसी शहर में हैं और पतिदेव भी लंबे समय तक यही पढ़ें हैं। परंतु बेटी के स्कूल से निकटता को देखते हुए,शहर के काफी आउटर में घर लिया है।

पूनम तो इस तरफ़ कभी आई भी नहीं थी। कहने को यहीं बचपन बीता है। मगर इस तरफ़ तो कभी आना भी नहीं हुआ। कुछ मिला जुला कर किसी नए शहर में पोस्टिंग वाला एहसास ही है।पास की मार्केट में जाने पर भी सब कुछ नया नया सा ही लगता है। कौन कहेगा कि इतने वर्षों बाद उसके बचपन वाले शहर में पतिदेव का ट्रांसफर हो गया है?

बस एक बार किसी तरह समय निकाल कर मम्मी पापा से मिल आई थी। मम्मी को भी बोल दिया है कि पहले घर अच्छी तरह जमा लूं, फिर फुर्सत से आउंगी।

वैसे भी दोनों घर,एक मीर घाट तो दूसरा पीर घाट जितनी दूरी पर थे।

अपने शहर में विवाह के इतने वर्षों बाद आने पर,ना तो बचपन की सहेलियां होती है, मोहल्ले के  भी वो रिश्ते जिन्हें हम ताऊ जी, चाचा जी कहते थे,शनै शनै नहीं बचते, उनके घरों में नई ब्याह कर आई बहुएं भी नहीं पहचानती, तो…. मगर पूनम के बचपन की सहेली की मम्मी,जो प्रधानाचार्या के पद से रिटायर हुईं थीं,उनका कई बार फ़ोन और मैसेज आया, कितनी बार तो उन्होंने अगले दिन का ही प्रोग्राम बनाना चाहा.. मगर

यादें तो बस परतों में कैद रहती हैं…..  वक्त की धूल में विस्मृति गहराती जाती है या यूं कहूं जीवन की आपाधापी में याद आने का मौका ही नहीं मिलता…. और कहीं से जरा सी उधड़ जाती हैं तो  बहुत कुछ चलचित्र की तरह आंखों के सामने से गुजरने लगता है!!

  पूनम को स्टेज़ पर वाद-विवाद, आशु भाषण जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लेना खूब  भाता था…. एक बार आंटी ने कहा था सूरज की किरणों को उसके आगे कुछ भी लगा कर रोका नहीं जा सकता…. वो बाहर, सबके सामने आने का रास्ता ढूंढ ही लेती हैं… ऐसे ही कोई प्रतिभा भी होती है.. वो छुपाए नहीं छुपती

और जब उसकी बिटिया ने कहा… मम्मी पिछले स्कूल में मैं वाद-विवाद, आशु भाषण…… जैसी प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी और विजयी भी रहती थी…. यहां ट्रांसफर होकर आने के बाद मुझे नए स्कूल में कौन जानेगा? कौन फिर अवसर देगा?….सब खत्म हो गया मम्मी 

 तो पूनम ने झट से कहा 

 सूरज की किरणों को उसके……….

 और सच बिटिया को नए स्कूल में भी सबमें भाग लेने और विजयी रहने का अवसर मिला !!

 आंटी ने मेरे विवाह के समय कितना सुन्दर जयमाल गीत लिखा था… मम्मी और आंटी ने मिलकर हारमोनियम बजाते हुए गाया था।  एक टेबल के सामने खड़े होकर माइक लेकर जहां से उन्हें मैं जयमाल लेकर जाते हुए दिखाई पड़ रही थी…. आंटी ने कहा कि तुम तो पूनम का चांद हो और तुम्हारे पतिदेव के नाम का मतलब हवा!! तो दोनों को मिलाकर कैसे गीत बनाउं?

 फिर उन्होंने एक पंक्ति कुछ यूं बनाई…. जिसका मतलब था….. जोर की हवा चली और हमारे पूनम के चांद को उड़ा कर साथ में ले गई!

यह लाइन सुनाते हुए आंटी हंस रही थी कि कितना मुश्किल है जब दोनों के नाम का अर्थ इतना अलग हो उन्हें मिलाने जैसा कुछ लिखना 

 और  पूनम मंत्रमुग्ध सी सुन रही कि कितना आसान है आंटी के लिए किसी भी विषय पर कुछ लिखना!

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” अरे नहीं आंटी कल से बिटिया के एक्जाम शुरू हो रहे हैं, तो … फुर्सत मिलते ही आउंगी” कह कर वीनू ने  अफसोस के साथ कहा 

घर को फिर से जमाना, बिटिया की पढ़ाई भी देखना….. फिर फुर्सत  ही नहीं मिलती 

क्या करुं? थोड़ा घर एडजस्ट कर लूं, फिर खाली समय में बिटिया को पढ़ाती भी हूं, आंटी घर में अकेली ही रहती हैं, अपने माता-पिता के बाद सबसे ज्यादा उन्हें ही सम्मान देती हूं, फुर्सत से जाउंगी तो ढेर सारी बातें करूंगी।कितनी क्रिएटिव हैं आंटी, कितना कुछ सीखा है उनसे।

ऐसा करूंगी किसी छुट्टी के दिन जाउंगी… पक्का.. बल्कि सुबह से ही चली जाउंगी…. ये ठीक रहेगा….. पूरा दिन आंटी के साथ बिताऊंगी..

और फोन उठाया तो आंटी का मैसेज था

तुमसे मिलने का बहुत मन है बेटा,तुम्हारा घर भी देखना है, तुमने कैसा सजाया है?….एक समय ऐसा आ जाता है जब बड़े बुलाते हैं और बच्चों के पास आने का समय नहीं होता…. फुर्सत मिलने पर आना बेटा…

ओहो, आंटी को भी मेरी बहुत याद आ रही है बस बिटिया के एक्जाम हो जाएं तो पक्का जाउंगी समय निकाल कर।

और कुछ दिन बाद

वीनू बाथरूम से नहा कर निकली,आज तो भयंकर ठंड है,सिर धोकर नहाया है और धूप का नामोनिशान नहीं, बड़ी तेज़ ठंड लग रही है

तभी बेटी ने आवाज लगाई

” मम्मी आपकी  मौसी ( आपकी फ्रेंड) का फोन है”पूनम  ने भागकर फोन लिया

” तुम तुरंत पहुंच जाओगी क्या मम्मी के पास, उनके पास कोई नहीं है,सुबह दूध वाले ने आवाज दी …. तब किसी तरह मोहल्ले के लोगों ने दरवाजा  तोड़ा.. और पता चला मम्मी नहीं रही…”

 पूनम जड़वत सुन रही थी।

बिटिया को घर में अकेले छोड़ कर,कार सर्विसिंग को गई थी, अतः, स्कूटी से पति-पत्नी तुरंत रवाना हो गए।

कोहरे  भरी बेहद ठंडी सुबह में गीले बालों को सिर पर बांधे, कंपकंपी सी महसूस हो रही थी।बेटी को जिम्मेदारी से घर पर रहने और अगले दिन के एक्जाम की पढ़ाई करने को कह कर वीनू सरसराती हुई ठंडी हवा में जा रही थी।

उस घर में शहर के लगभग दूसरे कोने में था।आज कोई भी बात, कोई भी जिम्मेदारी उसे नहीं रोक सकती थी।

वो तो पहले ही देर कर चुकी थी।

आंटी कब से बुला रही थीं। मैं ही जिम्मेदारियों में फंसी नहीं जा पा रही थी।अब पीछे बैठी आंसू पोंछ रही हूं और मन ही मन क्षमा प्रार्थना कर रही हूं,

मुझे माफ़ कर दीजियेगा, आंटी आपके बुलाने पर नहीं आ सकी। जाने किस जिम्मेदारी में फंसी रही गई,और आज सब कुछ छोड़कर भागती हुई आ रही हूं,जब आप इस दुनिया में नहीं रहीं।

इसके बाद वहां पहुंच कर क्या क्या हुआ ये बताने वाली बात नहीं है।

बताने वाली बात तो यह है, कुछ निर्णय समय रहते,या समय निकाल कर लेना अति आवश्यक है, पता नहीं कब कोई बात,… कोई मैसेज, आखिरी साबित हो जाए,जीवन भर मन कचोटने के लिए।

आंटी की पवित्र यादों को ढेर सारे श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए, यहीं बात समाप्त करती हूं।

पूर्णिमा सोनी

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कहानी प्रतियोगिता # अफसोस, शीर्षक — आखिरी मैसेज

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