दरवाज़े पर घंटी की आवाज़ सुनकर सीमा ने दरवाजा खोला तो देखा कि उसकी घरेलू सहायिका शांति खड़ी थी। सीमा ने उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो शांति ने स्वम् ही कहना शुरू कर दिया कि दीदी! आज हमारे विवाह की सालगिरह है ,इसलिए मैं आज जल्दी काम करके चली जाऊँगी।वह बहुत प्रसन्न दिखाई दे रहीं थी।उसके बाद वो अपने काम में लग गई,आज उसके हाथ बहुत तेजी से चल रहे थे। जब वो काम करके जाने लगी तो सीमा ने उसे सौ रुपये दिए।पैसे लेकर शांति मालकिन को धन्यवाद देकर निकल गई।
उसके जाने के बाद सीमा को लगा कि ये बेचारी क्या सालगिरह मनायेगी।ये तो बहुत गरीब है।
चलो अच्छा किया कि मैंने इसे सौ रुपये दे दिए।
उसके बाद वो अपने गृहकार्य में व्यस्त हो गई।सब भूल गई।
अगले दिन जब शांति आई तो उसने आते ही अपनी मालकिन को प्रसाद दिया और कहा की दीदी ये देवी माँ के मंदिर का प्रसाद है।हम सब कल वहाँ गए थे।सीमा ने श्रद्धापूर्वक प्रसाद लेकर पूछा कि सब मतलब कौन? इसपर शांति
मुस्कराते हुए बोली कि मैं,मेरे पति,मेरे देवर-देवरानी,नंद -ननदोई और मेरी बहन-जीजाजी उनके बच्चे ।यह कहते हुए उसके चेहरे पर जो चमक और प्यार का भाव था,वह देखने लायक़ था । हैरानी से सीमा ने पूछा कि इतने सारे लोग गए थे और मंदिर के बाद क्या किया ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
घर टूटने पर हर बार बेटे-बहु को ही दोष क्यों दिया जाता है? – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi
शांति ने बहुत ही सादगी से उत्तर दिया कि सुख-दुख अपनों के बिना अधूरा है। उसके इस उत्तर से सीमा निरुत्तर हो गई ।फिर कहा,दीदी कल तो मंदिर के बाद हम सबने मंदिर के बाहर से ठेले से मेरे देवर ने सबको आइसक्रीम खिलाई ,जो हमारे लिए बहुत बड़ा उपहार था।उसके बाद घर गए ,रास्ते से मेरी बहन ने सबके लिए समोसे लिए,जो हम सब खूब मज़े लेकर खाये।फिर हम सबने मिलकर खाना बनाया और खाया।उसके गाने चलाकर बहुत देर तक सब मिलकर नाचे।सही में बहुत मजा आया।मैं सही में बहुत खुशक़िस्मत हूँ।
ये सारी बाते बताते हुए वो ख़ुशी से झूम रही थी।
उसके बाद उसने ख़ुशी ख़ुशी काम किया और गाना गुनगुनाते हुए चली गई।
उसके जाने के बाद सीमा को अपनी सोच पर बहुत शर्मिन्दगी हुई । वह सोचने लगी कि मैं कितनी ग़लत थी कि जो सोच रही थी ,ख़ुशी पैसे से आती है।मैं कुछ पैसे शांति को देकर गर्व महसूस कर रही थीकी मैंने उसे ख़ुश कर दिया ।
जबकि उसकी ज़िंदगी तो छोटी छोटी ख़ुशियों से भरी हुई है।एक तरफ़ शांति इतने कम मे भी ख़ुश है दूसरी तरफ़ हम लोग सब कुछ होते हुए रोते रहते है। वर्षगांठ मनाने के लिए भी अपने ही निकट सम्बंधियों को बुलाने से कतराते है और
हिसाब लगाते कि सबको पाँचसितारा होटल में खिलायेगे तो बहुत महंगा पड़ेगा,बेहतर है की हम लोग अकेले ही चले जाये तो सही रहेगा।आज शांति की बात से उसे अहसास हुआ की असली ख़ुशी अपनों के साथ ही है।आज शांति ने उसे सच्चाई का आइना दिखाकर जिंदगी का सही मतलब समझा दिया।जबकि सच्चाई यह है कि हमे ख़ुशी छोटी चीज से भी मिल सकती हैं सिर्फ़ उसे तलाशने की कोशिश करनी चाहिए।ख़ुशी तो हमारे आस पास ही होती है ।
शीर्षक-आईना
# छोटी छोटी बातों में खुशियों को तलाशना सीखो
ममता भारद्वाज