आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे ।

उत्तर प्रदेश के गांव में रामचरण जी अपने परिवार के साथ रहते थे । उनके खेतों में काम अच्छा चलता था । बहुत अच्छी खेती थी । मानों जमीन खेत खलियान सोना चांदी उगल रही हो । उनके खेतों का अनाज घर के अलावा बाजारों में बिकता था । घर में किसी तरह की कमी नहीं थी । उनकी पत्नी मालती जब से ब्याह कर आई घर में अन्नपूर्णा देवी विराजमान हो गई । 

उन दोनों के दो बेटे हैं ।

बड़ा कृष्णा छोटा श्यामू दोनों में बहुत प्यार है । पढ़ाई में भी होशियार है । मेहनती सरल स्वभाव स्कूल में अपने सब साथियों के साथ मधुर व्यवहार । अगर कोई साथी पढ़ाई के बारे में कुछ पूछता तो बड़े प्यार से समझाते । दोनों बेटे मां पापा को अतुल्य प्यारे और दुलारे थे । दोनों के ग्रेजुएशन करने के बाद मां पापा दोनों को आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेजने का विचार कर रहे थे ।

दोनों बेटों ने मना कर दिया । हम तो यही पास के शहर में बिजनेस करना चाहते हैं । उनके मां-बाप ने बहुत कहा आगे की पढ़ाई के लिए । परंतु दोनों ने अपने मन की बात बता दी । बड़े बेटे कृष्णा ने कहा मैने तो सेनेटरी सामानों का बिजनेस करने का मन बनाया है । छोटे बेटे श्यामू ने कहा मैं तो अनाज से संबंधित थोक विक्रेता का बिजनेस करना चाहता हूं । दोनों की जानकारी  जानकर मां पापा ने कहा जैसी तुम लोगों की मर्जी । पैसों आदि की कोई परेशानी थी नहीं । 

दोनों भाइयों का बिजनेस खूब अच्छा चलता । दोनों मेहनती मिलनसार व्यवहारिक थे । ग्राहक भी खुश रहते । दोनों के व्यापार में दिन-रात की तरक्की होने लगी । 

रामचरण जी मालती जी ने कहा अब बच्चे बड़े हो गए हैं । घर बसाने के लिए । एक दिन कोई ग्राहक कृष्णा की दुकान पर आया सामान लेने के लिए । उनको कृष्णा बहुत अच्छा लगा । उसका व्यवहार बोली मिठास लिए । उसका आवभाव देखने में सुंदर । बातों बातों में उन्होंने कृष्णा के घर की जानकारी ली ।

कहा बेटा कल मैं तुम्हारे घर आऊंगा  दूसरे दिन हरिकिशन माधुरी दोनों पति-पत्नी उनके घर गए । उन्होंने पूछा आपका बेटा देखा हमें बहुत अच्छा लगा । रामचरण जी ने कहा मैंने आपको पहचाना नहीं तो बोले हम लोगों ने कल दुकान पर आपका बेटा देखा । हमें बहुत अच्छा लगा । क्या आप अपने बेटे की शादी करना चाहते हैं ।

मेरी बेटी है राधा । मैं भी उसकी शादी करना चाहता हूं । मैं कल कृष्णा जी की दुकान पर गया था । मैंने आपके बेटे को देखा मुझे बहुत अच्छा लगा । अगर आप लोगों का शादी का विचार है तो कल हमारे घर आईयेगा । अगर आप लोग लड़की देखना चाहते हैं । सब लोग राजी हो गए । समय पर वह लोग उनके जाने को तैयार हो गए ।

रामचरण जी बोले भगवान कितने दयालु होते हैं । हम तो सोच ही रहे थे । भगवान ने अपने आप रिश्ता भेज दिया । दूसरे दिन हम सब उनके घर गए । उनका घर आलीशान कोठी था । थोड़ी देर में चाय नाश्ता आ गया । बातचीत के बाद लड़की फलों की प्लेट के साथ आई । लड़की को देखकर हमारा परिवार बहुत खुश हुआ । लड़की क्या सुंदरता की देवी कह सकते हैं । बोली मधुर रस लिए । देखने भालने में कोई कमी नहीं है ।

हम सबको बहुत पसंद आई । मालती जी  उनके खानदानी कंगन थे रखकर ले गई थी । उन्होने तुरंत निकाल कर उसको पहना दिए । बोली दीदी हमें तो आपकी बिटिया बहुत अच्छी लगी । अब जल्दी ही हम अपनी बहू को लक्ष्मी बनाकर ले जाएंगे । वहीं पंडित जी को बुलाया । शादी की तारीख पक्की कर दी गई । दोनों परिवारों मे खुशियों की लहर दौड़ गई ।

खुशी-खुशी शाम को खाना खा कर हम सब घर आ गए । सभी के दिलों में खुशी के उल्लास लिए हुए । अगले महीने की 10 तारीख विवाह की तारीख तय हो गई । दोनों परिवारों में विवाह की तैयारियां जोरों शोरों से होने लगी ।

अच्छे धूमधाम से कृष्णा की शादी हो गई । राधा रानी की सुंदरता को देखते हुए सभी गांव और रिश्तेदारों ने कहा आप लोगों की किस्मत बहुत अच्छी है । भगवान ने इतनी प्यारी बहु दी है । राधा भी अपनी सुंदरता के साथ एक संस्कारी गुनो की खान है । वह अपने परिवार का मान सम्मान आदर भाव से सब की सेवा में घर को संजोय रखती । 

अब मालती जी और रामचरण जी ने छोटे की शादी का  सिलसिला शुरू कर दिया । कई रिश्तेदारों से कहा कोई अच्छी लड़की नजर में हो तो बताना । रामचरण जी के पिताजी के मुंह बोले भाई थे । उनका फोन आया मेरी पोती है ।

सुंदर पढ़ी लिखी है । एम ए  कर रखा है । हम सब उसके लिए अच्छे लड़के की तलाश में है । मैं कल ही उसका फोटो लेकर आ रहा हूं । यदि पसंद आए तो आगे बात करूं । अगले दिन चाचा जी फोटो लेकर आ गए । सब ने फोटो देखकर कहा लड़की बहुत सुंदर है । सबको पसंद है । अगले सप्ताह हम सब ने लड़की को देखकर रोका  कर दिया । मालती जी अपना खानदानी गले का हर लेकर गई थी । उन्होंने उसको पहना दिया । दोनों बेटों की शादी कर दोनों पति-पत्नी अपने जीवन को धन्य और खुशी-खुशी उल्लास पूर्ण जीवन जी रहे है । 

एक दिन शाम को वो मन में अपने अतीत के बीते दिनों के बारे में सोच रहे थे । उनके माता-पिता ने कितनी कठिनाइयों में जीवन व्यतीत किया । खेती ज्यादा अच्छी नहीं थी । दोनों टाइम की दाल रोटी मिल जाया करती थी । तभी से मेरे मन में आया मैं खूब मेहनत करूंगा । इसी कारण आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी ।

पिताजी के साथ खेती के कामों में सहयोग करने लगा । वहीं जमीन अब दोनों की मेहनत से खूब हरी-भरी होने लगी । अब अनाज पहले से दुगना होने लगा । देखते ही देखते हमारे घर अनाजों के ढेर लग गए । मेरी और पिताजी की मेहनत सफल हो गई ।

गांव के जमीदार जी ने बेईमानी से हमारी जमीन हड़प ली थी । बंजर जमीन पिताजी को दे दी थी । पिताजी एक ईमानदार व्यक्ति थे । जो दिया उसी में संतोष कर लिया । पर कहते हैं भाग्य में जो होता है वह हर हाल में मिलता है । समय की महत्वता और वक्त का समय चक्र घूमता रहता है । जो किसी को दिखाई नहीं देता है ।

आज जमींदार की आखिरी पड़ाव पर पड़े पड़े अकेले मन में अपनी आखिरी सांस गिर रहे हैं । जमीन लोगों ने ले ली । अपने अतीत की सोच कर मां-बाप की याद में उनकी आंखों में आंसू आ गए । इतने में राधा शाम की चाय लेकर आ गई । अंदर मां को बताया पापा की आंखों में आंसू है । मालती जी ने पूछा क्या बात है । आपकी आंखों में आंसू तबीयत तो ठीक है ना । 

दोनों परिवार खुशहाल जीवन बिता रहे थे । रामचरण जी मालती जी अपने परिवार को लेकर बहुत उत्साहित होते हुए खुश रहते । दोनो बहुयें मिल जुलकर सासू मां और ससुर जी की सेवा में मस्त रहती । हर बात पर बड़ी बहू राधा राधा को नाम से बुलाती । छोटी बहू शारदा के मन में हलचल चलती रहती ।

यही हलचल एक दिन ईर्ष्या बनकर उसके मन में बेचैनी मचा देती है । समय तो अपने चक्कर में घूमता है । ज्यादा खुशियां बहुत समय तक नहीं रहती । पत्नी ने अपने पति श्यामू को ऐसी पट्टी पढ़ाई । उसके दिमाग में पत्नी के अलावा किसी की बात नहीं आती । धीरे-धीरे घर में मतभेद रहने लगा । रामचरण जी अपने खुशी परिवार में दुखी रहने लगे । अपने छोटे बेटे को समझाते । सब खुश आराम से थे । यह तुझे क्या हो गया ।

तेरी पत्नी हमारी छोटी बहू है । वह तो कुछ नहीं सुनता मुंह बना कर दुकान पर चला जाता । वक्त आऔर समय दोनों प्रिय मित्र हैं । दोनों का चक्र घूमता है । एक दिन राधा की तबीयत ठीक नहीं थी  उसको डॉक्टर को दिखाया पता चला वह मां बनने वाली है । यह खबर सुनकर पूरा घर खुशियों से झूम उठा । क्या सुख दुख का संगम ।

समय अनुसार राधा ने पुत्र को जन्म दिया । पूरा गांव खुशी बधाई देने उनके घर आए । बेटे की नजर उतारी । मालती जी ने सबको मिठाई और एक-एक उपहार दिए । नन्हे मुन्ने को देखकर शारदा मुन्ने की चाची बहुत खुश । मुन्ने को गोद में लेकर बोली दीदी मुझे माफ कर दो । मैंने अपने कर्मो से परिवार को दुख दिए । मेरी तो मति ही मारी गई जो मैं बुआ के कहने में आ गई । यह बातें मालती सुन रही थी ।

उन्होंने रामचरण जी को सारी बात बताई । उनको अपनी मानी हुई बहन पर बहुत गुस्सा आया । वह हमेशा उसी से राखी बन्धवाते थे । और पति-पत्नी सगी बहन से बढ़कर प्यार करते थे । शारदा ने सबसे माफ़ी मांगी । सब ने कहा बेटा तुम्हारी गलती नहीं है । फालतू बातों से अच्छे अच्छो की बुद्धि फिर जाती है । रामचरण ने उसे फोन किया । बहन तुमको शर्म नहीं आती । जिस भाई ने प्यार से तुमसे राखी बंधवाई । उसी भाई के घर आग लगा दी । वक्त से डरो तुम्हारा भी परिवार है 

इसीलिए कहा जाता है कि वक्त से डरो 

लेखिका सरोजिनी सक्सेना जयपुर

“वक्त से डरो”

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