दिसम्बर का उत्साह पूरे उफान पर था।शायद अपनी बारी की प्रतीक्षा करते करते अंत में वहीं बचता है अकेला पूरे वर्ष का भर ढोने वाला।पूरे वर्ष सारे महीनों ने जो उम्मीदें पूरी नहीं की उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी का बोझ उठाता दिसंबर कभी निराश नहीं दिखता।मेरे साथ यह वर्ष खत्म हो जाएगा इसका दुख मनाने की उसे फुर्सत ही नहीं होती।वह तो अपने पूर्व घटित और अघटित का हिसाब किताब कर संतुलन बनाने में विरक्त योगी की तरह लीन हो जाता है।मानो बीतते साल की उपलब्धियों और खामियों को संभाले आने वाले साल के लिए पूरी जगह बनाता रहता है।
निम्मी यही सोच रही थी और बेतरह ठंड की परवाह बिना किए ठंडी ओस भरी पगडंडी पर तेज कदम बढ़ाती दिसंबर का साथ दे रही थी।उसे मैम साहब का बुलावा आया था उनके घर हर वर्ष की तरह न्यू ईयर पार्टी का आयोजन हो रहा था।एक सप्ताह के लिए उन्होंने निम्मी को पूरे दिन भर के घर पर सभी कामों के लिए लगा लिया था।निम्मी आर्थिक मार से जूझते उच्च निर्धन वर्ग की पढ़ी लिखी लड़की थी।किसी तरह इंटीरियर डिजाइन का कोर्स किया था उसने साथ ही इवेंट ऑर्गेनाइज कार्य भी शुरू करने की सोच रही थी।न्यूजपेपर में विज्ञापन देख कर ही निशि मेमसाब ने उसे ढूंढा था और फोन पर सारी बातें तय कर दी थीं।उनका ऑफर सुनते ही निम्मी को यूं महसूस हुआ मानो सूखे रेगिस्तान में बारिश हो गई हो।साल भर से वह काम ढूंढ कर थक गई थी।ढलते दिसंबर के साथ ही उसकी उम्मीदें भी ढल रहीं थीं कि तभी यह ऑफर मिल गया।एक अवसर ही चाहिए था उसे अपनी प्रतिभा दिखाने का कौशल दिखाने का फिर तो कई ऑफर उसे ढूंढते खुद ही चले आएंगे उसका दृढ़ विश्वास था।फिर वह अपनी मां के लिए मुलायम शनील वाली रजाई खरीदेगी और पिता के भारी पुराने एक कान वाले एनक को बदल कर नया हल्के फ्रेम का चश्मा बनवा देगी यही विचार उसे उत्साह और उम्मीद से भर था ।
निम्मी बहुत देर लगा दी ।मेहमानों की लिस्ट ये रही और सबकी पसंद नापसंद ये रही।कल सुबह से मेहमान आने शुरू हो जाएंगे।सारी तैयारी अभी कर लो।एक भी मेहमान नाराज नहीं होना चाहिए कहते हुए सरला ने लिस्ट पकड़ाते हुए सब समझा दिया और खुद पार्लर चली गई।
इतनी लंबी लिस्ट।कितने मेहमान आ रहे हैं।कितना ज्यादा खर्चा कितनी व्यवस्था कितना ज्यादा खाना पीना रहना ।न्यू ईयर की रात तो कम से कम 100 तरह के व्यंजन !! नया साल मनाने के नाम पर इतनी शाहखर्ची कैसे कर लेते है लोग।स्टेटस और दिखावे की होड़ तो सीमा पार कर रही है आधुनिक युग में। मन की उथल पुथल नियंत्रित करते हुए निम्मी ने सभी आगंतुकों के बारे में ध्यान से पढ़ा समझा फिर सबके कमरों की उनकी पसंद के अनुसार व्यवस्था करवाती चली गई।अत्याधुनिक सर्व सुविधायुक्त किचेन में जाकर शेफ के साथ सबकी रुचि का मीनू भी तैयार करवा दिया ।शाम हो चली थी लेकिन मेमसाहब अभी तक नहीं आईं थीं।अंधेरा होते देख निम्मी का धीरज खत्म हो गया।उसने सरला जी को फोन भी लगाया लेकिन उन्होंने नहीं उठाया।तब निम्मी अपने घर की तरफ रवाना हो गई उसे अपने मां पिता जी की चिंता थी।
दूसरे दिन जब वह आई तो देखा मेमसाहब बहुत नाराज थीं।तुम बिना बताए चली गईं तुम्हे यहीं रुक जाना था इतना बड़ा घर है एक कमरा ले लो यहीं रुको।रात में किसी को कोई जरूरत पड़ी तो कौन संभालेगा आज से यहीं रुकना सरला जी ने निम्मी से कहा।
लेकिन रात में रुकने की बात तो नहीं की थी आपने निम्मी ने आश्चर्य से कहा।
हो सकता है पर अब मुझे महसूस हो रहा है कि तुम्हें यहीं रुकना चाहिए सारी जिम्मेदारी तुम पर ही तो है तुम्हारे बिना कौन करेगा सरला जी बोल पड़ी।
निम्मी का शांत स्वभाव शालीनता और काम के प्रति अनोखी समझ ईमानदारी ने सरला जी का मन मोह लिया था।इस बार वह अपनी न्यू ईयर पार्टी यादगार बना देना चाहती थीं।निम्मी ने उन्हें कुछ अलग हट के करने के आइडियाज भी दिए थे जो उन्हें लाजवाब लगे थे।निम्मी को तो यहीं रहना पड़ेगा वर्ना व्यवस्था बिगड़ जाएगी।पिछली बार उनके घर से कुछ मेहमान नाराज होकर गए थे।इस बार वह कोई खतरा नहीं उठाना चाहतीं थीं।
आखिर स्टेटस का सवाल है।पूरे वर्ष उनका ही दबदबा रहेगा।नाक ऊंची उठाकर चलेंगी वह।
लेकिन मेरे मां पिताजी..??निम्मी पशोपेश में पड़ गई।
सुनो निम्मी वैसे तो एक हफ्ते की बात है वे लोग आपत्ति नहीं करेंगे लेकिन फिर भी उन्हें तुम्हारे बिना ज्यादा दिक्कत हो तो तुम उन्हें भी यहां ला सकती हो वे भी रह लेंगे यहीं पर तुम्हारे साथ।सरला जी किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी की शान में कोई बट्टा नहीं लगाना चाहतीं थीं।
सरला जी की बात सुन निम्मी विस्मित हो गई।मेमसाहब मेरे लिए इतना सोच सकती है ये बात उसकी कल्पना से परे थी।
सोच क्या रही हो निम्मी जाओ ड्राइवर से गाड़ी निकलवाओ मै भी चलती हूं तुम्हारे साथ।मेहमान दोपहर से आएंगे सारी तैयारी तुमने समझा ही दी है।तब तक हम तुम्हारे मां पिता जी को ले आयेंगे।कहती मेमसागब निम्मी के साथ गाड़ी में बैठ गईं।
मैम साहब गाड़ी मेरे घर की पगडंडी नहीं चढ़ पाएगी कहती निम्मी सकुचा गई।
ओह कहती सरला जी सहसा चुप हो गईं।
निम्मी के साथ पैदल वह उस पगडंडी पर चल पड़ीं तो निम्मी और भी अचरज से भर गई।अपने खास मेहमानों को छोड़ ये मेरे साथ समय गंवा रही है निम्मी सोच रही थी।
पगडंडी के दोनों तरफ ढेरों बच्चे आधे अधूरे कपड़े पहने खेलते दिखे उन्हें।कई महिलाओं के पास कोई गरम कपड़ा ही नहीं था कि वे भीषण ठंड का सामना कर सकें।अनेक वृद्ध लोग लकड़ी जलाकर उस आग के पास झुंड बना ठिठुरन से लड़ रहे थे।सरला जी पैदल चलते हुए ये सब देख विस्मित थीं और चिंतामग्न भी।
निम्मी क्या ये सब लोग ऐसे ही रहते हैं।इनके घर कहां हैं।
वो थोड़ीदूर पर हथेली से इंगित करती निम्मी बोल पड़ी।
वो घर हैं या झोपड़े!!इनके आधे अधूरे कपड़ों की तरह ही इनके रहने के मकान भी हैं कैसे रहते हैं सब सरला जी के इस प्रश्न का कोई उत्तर निम्मी के पास नहीं था सो वह खामोश हो रही।
निम्मी समझ गई थी सरला जी ने ऐसा परिवेश पहली बार देखा था।इतने करीब से मेहनत करने वाले पर गरीब दशा में रहने वाले लोगों को पहली बार जाना था।वह देख रही थी मैम साहब का चेहरा चारों तरफ की दुर्दशा देख चिंतित और आकुल हो रहा था और कदम शिथिल।निम्मी का घर आते आते वह क्लांत हो गईं थीं।
इंटीरियर डिजाइन का कोर्स करने वाली लड़की निम्मी के घर का इंटीरियर देख वह सकते में आ गई।
मां की पुरानी फटी साड़ियों के पर्दे एकमात्र दरवाजे पर और एक खिड़कीनुमा जगह पर पड़े थे।पुरानी सी टेबल को दो टूटी टांगों के नीचे पत्थर टिका कर खड़ा किया गया था।पीली पड़ चुकी चादर झूले जैसी खाट पर डाल निम्मी की मां सरला जी के स्वागत में खड़ी हो गईं थीं और पिता अपने टूटे एनक को संभालते पानी का साफ गिलास ढूंढने में बेचैन हो गए थे।
निम्मी के माथे पर पसीना आ गया था। मैम साहब क्यों आ गईं यहां।मेरा ऑफर कैंसिल कर देंगी ये सब देख कर ।
लीजिए पानी पी लीजिए आप थक गई होंगी कहते निम्मी के पिता एक हाथ से एनक संभालते दूसरे हाथ से पानी का गिलास बढ़ाते सरला जी के सामने आ गए।
गिलास देख कर सरला जी का पीने का मन ही नहीं हुआ।निम्मी को शर्म सी आने लगी थी।तब तक सरला जी ने पिता जी का दयार्द्र भाव भांप कर उनके हाथ से गिलास ले लिया था।
बेटा ये यहां क्यों आई हैं निम्मी की मां ने परेशानी के भाव से धीमे से पूछा।
मां ये मेरे साथ आप दोनों को अपने घर ले जाने आई हैं निम्मी ने राज खोलते हुए कहा तो मां डर सी गई।
क्यों जायेंगे हम इनके घर हम तो यही भले हैं।होंगी अपने घर की ये रईस हम गरीब ही भले।तू कहीं नहीं जाएगी मां ने नाराजगी से कहा।
पर मां इसमें बुरा क्या है।ये तो मेरे भले के लिए ही सोच रही हैं।आने जाने के कष्ट से बच जाऊंगी और तुम लोगों की चिंता से भी।कितनी इंसानियत है इनमें।इतना कौन सोचता है ऊपर से इतनी फीस भी मुझे दे रही हैं निम्मी ने असहमति जताई।
तेरे भले के लिए नहीं अपने भले के लिए सोच रही हैं समझी।इनका कार्यक्रम बिगड़ ना जाए इसलिए यहां हम लोगों को फुसलाने आई हैं।ये अमीर लोग हम लोगों को बहुत सस्ता और बिकाऊ समझते हैं ।सुन तू कही नहीं जा रही मै इन अमीरों की चालें अच्छे से समझती हूं।जरूर तुझे कहीं फंसा देंगी मां के दिल का डर सरला जी पर भरोसा करने में बाधक हो रहा था।
हां आप ठीक कहतीं हैं निम्मी बिल्कुल नहीं जाएगी मेरे घर। मैंने कैसे सोच लिया आप दोनों को भी अपने घर ले जाऊंगी।अब कोई कहीं नहीं जाएगा निम्मी सरला जी बहुत गंभीरता से बोल उठीं तो निम्मी का दिल कांप गया।उसकी आशंका सही साबित होने वाली थी। मैम साहब नाराज़ हो गईं है उसका ऑफर रद्द करने वालीं थीं।अच्छा खास काम मिल गया था।फीस भी मुंहमांगी मिल रही थी।सब खत्म होता दिख रहा था निम्मी को।पिता की टूटी एनक और मां की जीर्ण रजाई उसे मुंह चिढ़ाने लगे थे।
मैम साहब आप मेरी बात तो सुनिए निम्मी आतुर हो उठी।
नहीं मुझे कुछ नहीं सुनना निम्मी।अब मेरे घर पर न्यू ईयर का कोई कार्यक्रम नहीं होगा।सब रद्द सरला जी की बात सुन निम्मी रुआंसी हो गई।
लेकिन क्यों आप मेरी मां की बात पर ध्यान मत दीजिए।
क्योंकि अब न्यू ईयर यहां होगा अचानक सरला जी ने विस्फोट सा कर दिया।
यहां .. आँखें फाड़ निम्मी कह उठी।
हां निम्मी इतने अभावों में पल कर भी तुम बहुत प्रतिभाशाली हो संस्कारी हो।तुम्हारे मां पिता जी कितने सिद्धांत वाले हैं।इसका मतलब यहां के सभी लोग ऐसे ही होंगे।इनके पास धन नहीं है और मेरे पास ऐसे लोग नहीं है।मै नव वर्ष यहीं तुम सबके साथ मनाऊंगी सारी व्यवस्था तुम ही करोगी सरला जी की आंखों में नए संकल्प की चमक थी।
और आपके मेहमान निम्मी ने प्रश्न किया।
वे सब यहीं आयेंगे।तुम सबकी व्यवस्था करोगी।सबके साथ रहेंगे।तुम सबसे मिलेंगे वे सब बड़े उद्योगपति हैं पूंजीपति है।मेरी इच्छा है हम सब मिलकर अपने धन का सदुपयोग करें।यहां के लोगों की सहायता पर खर्च करें।पार्टी तो हर बार होती है इस बार भी होगी पर अलग तरह की होगी सरला जी बोल रहीं थीं और निम्मी चकित खड़ी सुन रही थी और मन ही मन सारी योजना की कल्पना कर रही थी ।
जैसी कल्पना थी बिल्कुल वैसा ही सरला जी ने करवाया भी।पूरी बस्ती उसी तरह साफ की गई सजाई गई जैसी उनकी हवेली हो।सारे रहवासियों के लिए नए गरम कपड़े कंबल जूते शॉल दोनों समय का भोजन मिठाइयां साफ पानी गीत संगीत सब कुछ हुआ।बस्ती के बच्चों के लिए स्कूल कॉलेज हॉस्पिटल सबकी व्यवस्था करने की योजना नए वर्ष पर फाइनल की गई।
इंसानियत हो तो सरला जी जैसी हो चौतरफा यही हल्ला हो गया।
इस बार सरला जी के मेहमान बेहद खुश थे।नए वर्ष पर नए तरह के कार्य नया आयोजन था।कुछ अलग करने का कुछ उपलब्धि हासिल करने की ऊर्जा थी।सरला जी की चारों तरफ तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे।सरला जी ने निम्मी को तय फीस से ज्यादा फीस दी थी।निम्मी ने सारा आयोजन बेहद कुशलता से संपन्न करवाया था।
निम्मी अपनी मां के लिए नई मुलायम शनील की रजाई और पिता जी के लिए सुनहरी फ्रेम का पतली कमानी वाला चश्मा खरीदने बाजार पहुंच गई थी।
दिसंबर उतार पर था लेकिन उत्साह उफान पर था।कुछ अधूरे काम अधूरी ख्वाहिशों को पूरी करने की खुशी लिए दिसंबर विदा हो रहा था…!!
इंसानियत#शब्द कहानी प्रतियोगिता