सुमी का ससुराल में आज पहला दिन था।कल ही एक हाॅल में शानदार तरीके से शादी हुई थी ।रात भर शादी की धूम धाम थी अभी अभी घर आई थी।मुँह दिखाई की रस्म चल रही थी ।बगल में सास मीता बैठ कर सबसे परिचय करा रही थी।तभी कानों में किसी ने धीरे से कहा “अपनी सास जैसी मत बन जाना “”सास जैसी? “मतलब? सुमी के समझ में कुछ नहीं आया ।
अपनी सास मीता के ओर देखकर पूछना चाहा तो उसने अभी चुप रहने को कहा ।तभी चचेरी ननद ने समाधान कर दिया उसके सवाल का ।”अरे, मीता भाभी बहुत सीधी सादी थी ।सुन्दर, आकर्षण, शिक्षित हर बात में होशियार ।सबसे बड़ी बात थी कि मृदु भाषी और संस्कार से भरी पूरी ।सबकी नजरों में दहेज कम आंका गया था उसका ।पिता साधारण पोस्ट पर थे ।
सीमित आमदनी से कितना और कहाँ से दे पाते ।लेकिन ससुराल में आते ही उसकी कमी खोज खोज कर गिना दिया गया ।”आटा सानने का भी शउर नहीं है इसके ।घर के लोग तो बड़ी बड़ी बातें बना रहे थे ।इतनी होशियार है मेरी बेटी ।सर्व गुण संपन्न है मेरी बेटी “। हर बात में टोकना, हर बात में उपेक्षित ।ननद ने पूरी मन की भड़ास निकाल दी थी ।
ननद की हमदर्दी मीता से बहुत थी।ननद ही कयों परिवार के बहुत सारे लोग भी मीता के गुण गान गाते।जिससे और आग में घी पड़ने लगा था ।फिर भी मीता चुप चाप रहती ।माँ ने चुप रहने का संस्कार जो दिया था ।पति बहुत अचछे और सीधे सादे थे।
लेकिन बेकार का झंझट घर में नहीं चाहते थे ।शादी के दो साल के बाद ही सौरभ का जन्म हो गया था ।पोते के आने से परिवार खुश थे।मीता की दिन चर्या बदल गई ।सुबह उठकर घर की साफ-सफाई, रसोई तैयार करना, समय पर सब का नाश्ता खाना देना, उसके बाद बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी निभाना ।
दिन भर समय कैसे भाग जाता कुछ पता ही नहीं चलता ।हालांकि सासू माँ पोते को तेल पानी कर देती ।लेकिन बैठे बैठे हांक लगाती।” मीता तेल दे जा” मीता कपड़े दे जा ।मीता गरम पानी दे जा बच्चे को नहलाने के लिए ।दौड़ती हुई थक जाती वह।फिर एक दिन सुना “एम ए पास करने का क्या मतलब है जब आमदनी मे कुछ मदद ही नहीं कर पाये ” मीता ने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली ।
अब सुबह से चकरघिन्नी बनी रहती ।फिर घर में बच्चे को और सास ससुर की देखभाल भी जरूरी हो जाता ।समय पर ससुर जी को भोजन नहीं मिलता तो उनका पारा हाई हो जाता ।पति समझते तो थे लेकिन कुछ कर नहीं पाते ।सबकुछ तो जरूरी था।
माता पिता के लिए तो बेटा बहू को समर्पित होना चाहिए ऐसा उनका सोचना था ।लेकिन मीता का स्वास्थय गिरता गया ।वह कमजोर हो गई ।बच्चा तीन साल का हो गया ।घर में बात चीत चलने लगी “एक बच्चा तो और होना भी चाहिए ” लेकिन मीता का मन नहीं था।
बहुत थक गई थी वह।देखते देखते बेटा सौरभ बड़ा होता गया ।पढ़ाई में अच्छा था।आगे बढ़ता गया ।जाड़ा का मौसम आ गया ।मीता के सिर में तेज दर्द होने लगा ।पति ने बाम लगा दिया और दवा लाने के लिए चले गए ।सिर दर्द से फटा जा रहा था ।
राह देख रही थी वह।अपनी तकलीफ किससे कहें ।एक वही तो समझते हैं ।तभी बाहर शोर सुनाई दिया ।खिड़की से झांक कर देखने लगी ।रोड पार करने में आटो से धक्का लगा और वह बेजान हो गये ।अस्पताल जाने पर डाक्टर ने सीधा कह दिया ” अब कुछ शेष नहीं है ” उसकी तो दुनिया ही उजाड़ हो गई थी ।
फिर घर में रिती रिवाजों का दस्तूर चलने लगा ।चुप चाप मीता सबकुछ निभा रही थी ।विरोध कहाँ करती? ।एक माँ पापा ही थे जो हिम्मत बढ़ाते।उसके पास बहुत बड़ा सवाल था।कैसे बेटे को पालेगी? कैसे उसकी शिक्षा पूरी करेगी? बूढ़ी सास और ससुर जी की भी जिम्मेदारी निभाना जरूरी हो गया था ।मीता ने और भी मेहनत से काम लिया ।
घर में टयूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ।बेटे की मौत से माता पिता टूट गये ।लेकिन मीता के प्रति उनका रवैया वही रहता ।अब तो उसके लिए सोचने वाला कोई नहीं था ।बेटा अपनी पढ़ाई में लगा रहता ।फिर बेटे की नौकरी लग गई ।एक अच्छी कम्पनी में ।वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद लगा था ।माँ के खुशी का ठिकाना नहीं था ।दादी दादा भी खुश थे।
पोते से लगाव तो था ही ।मीता अक्सर सोचती रहती कि मैंने और मेरे माता-पिता ने क्या कसूर किया था कि कभी उनको हमारे यहाँ इज्जत नहीं मिला ।हमेशा उनको नीचा दिखाया गया है ।फिर अपने मन को झटक देती ।माँ समझाया करती ” तुम कुछ मत सोचो बेटा ।अपना काम करती रहो।
उनहोंने भी तो बेटा खोया है ।”हाँ माँ उनहोंने बेटा खोया है तो मेरा क्या? ” मैंने क्या कसूर किया था ।अब बेटे के लिए अच्छी वधु चाहिए ।मीता खोज में लग गई ।नाते रिश्ते में बात चलाने लगी।संजोग अच्छा था।एक अच्छे परिवार से रिश्ता आ गया ।कितनी खुश हो गई वह।
भगवान ने दुख दिया है तो खुशी भी तो आने को है ।अपनी मन की साध पूरा कर लेगी वह।अपना सभी जेवर दे देगी बहू को ।निश्चित हो जायेगी बेटे की गृहस्थी बसा कर।देखते देखते वह दिन भी आ गया ।कितना सुन्दर लग लग रहा है बेटा दूल्हा के रूप में ।
वह अपने बहु को जीवन के सारे सुख देगी।कभी कड़ी बात नहीं कहेगी ।बहुत सहा है उसने ।अब और नहीं ।बारात सज गई ।शादी भी हो गयी ।दुल्हन घर आ गई है ।बहुत बलैयां ली उसने अपनी बहु सुमी की।मुँह दिखाईं की रस्म पूरी हो गई ।नाते रिश्ते अपने घर जा रहे हैं ।
कमरे में सिर्फ सुमी और मीता रह गये ।तभी सुमी ने अपने सास की हथेली पर अपने हाथ रखा “एक और मौका मै नहीं दूंगी मम्मी किसी को “आपने बहुत कुछ सहा।अब और नहीं ।मै किसी की गलत बात बर्दाश्त नहीं कर सकती।सभी का आदर सम्मान करना चाहती हूं लेकिन किसी शर्त पर नहीं ” ” हाँ मेरी बच्ची “तुम खूब फूलों फलो ।
मेरा आशीर्वाद है तुम्हारे लिए ।एक सास ने अपनी बेटी जैसी बहू को गले लगा लिया ।दो शरीर एक प्राण हो गये दोनों ।उपर से शायद पति भी मुस्कुरा रहे थे ऐसी ही तो उम्मिद थी तुम से मीता ।—
उमा वर्मा ।नोयेडा ।स्वरचित ।मौलिक ।