बचपन – एम. पी. सिंह

रोहन एक सीमेंट फैक्ट्री में टेक्निशियन था और उसकी एकलौती बेटी कान्ता क्लास 8 में पड़ती थी. फैक्ट्री केम्पेस में कम्पनी का 2 बेड रूम का मकान. उसकी क्लास में एक नया एडमिशन हुआ, जिसका नाम था पायल. पायल के पिता फैक्ट्री में सीनियर अधिकारी थे,

कम्पनी का बड़ा बंगला, नौकर चाकर, कारें ड्राइवर, गार्ड आदि सब कुछ. पायल को ड्राइवर कार से स्कूल छोड़ने और लेने आता था. कान्ता और पायल दोनों पढ़ने में तेज थे, इसलिए जल्दी ही दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई. एक दिन स्कूल की जब छुट्टी हुई तो बारिश हो रही थी तो पायल ने कान्ता को भी अपनी कार में बिठा लिया और उसे घर छोड़ते हुऐ अपने बंगले पर चली गईं. धीरे धीरे कान्ता का कार से आना बढ़ता गया. दोनों कि दोस्ती सारे स्कूल में मशहूर हो गई. एक दिन पायल ने कान्ता को बोला, आज छुट्टी के बाद तुम मेरे साथ मेरे बंगले पर चलना और शाम को तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ दूंगी. कार कान्ता के घर रुकी, माँ को अपना स्कूल बेग दिया और बता कर बंगले चली गई.

बंगले का नज़ारा देख कान्ता दंग रह गई. कार से उतरते ही एक नौकर पायल का बैग लेकर चला गया और पायल के रूम मे रख दिया. पायल ने जूते उतारे तो नौकर ने उठाकर शू रेक मे रख दिए. सारा घर सजा सवरा, साफ सुथरा, हर सामान अपनी जगह पर था. पायल ने कान्ता को अपनी माँ से मिलवाया, फिर हाथ मुँह धोकर, ड्रेस चेंज करके दोनो डाइनिंग टेबल पर बैठ गए. नौकर नास्ता लाया और दोनों ने माँ के साथ नास्ता किया. नास्ता करते हुए पायल के चमच की प्लेट से टकराकर आवाज़ आ रही थी तो माँ ने घूर कर देखा. नाश्ता करके दोनों पायल के रूम में गए और मस्ती करते हुए जोर जोर से बातें करने लगे. तभी एक नौकर आकर बोला, बेबी, मैडम नाराज़ हो रही है,

धीरे बोलो. पायल कान्ता से बोली, घर में मर्जी से बात भी नहीं कर सकते, खाना पीना, उठना बैठना सब मम्मी पापा के अनुसार. तुम्हारे घर मे भी ऐसा होता है? बातें करते करते समय का पता ही नहीं चला, पायल का ड्राइवर कान्ता को उसके घर छोड़ आया. उसके बाद कान्ता का बंगले पर जाना आम बात हो गई. परीक्षा मे कान्ता क्लास में फस्ट और पायल सेकंड आई, दोनों बहुत ख़ुश थी. रिजल्ट के बाद कान्ता ने पायल से कहा, तुम एक बार भी मेरे घर में नहीं आई, आज मेरे घर चलो. पायल ने टालना चाहती थीं पर कान्ता नही मानी. तब पायल बोली, कल संडे है,

शाम को 5 बजे आउंगी. घर आकर कान्ता ने माँ को बताया और अच्छा नास्ता बनाने के लिए बोला. सवेरा होते ही कान्ता ने घर का सब सामान अपनी अपनी जगह पर सजा कर रखा. गुलदस्ते में ताजे फूल लगाए, किताबों की अलमारी साफ कर किताबों को जमाया, शू रेक,सोफा कवर, बेड शीट, गमले सब कुछ अच्छे से जमा कर रखा. कान्ता की कोशिश थी की पायल को कुछ भी गन्दा नहीं लगना चाहिए. काम करते करते शाम के 5 बज गए. कान्ता तैयार होकर पायल का इंतजार करने लगी. इंतज़ार करते करते 6, फिर 7 बज गये. अब कान्ता का गुस्सा बढ़ने लगा और रोना भी आ गया. घर मे फोन था नहीं की बात कर सकती. और फिर 8 बजे कान्ता का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया. उसने जितनी मेहनत से घर सजाया था,

अब उतनी ही मेहनत से सारा सामान उठाकर फेंकना शुरू कर दिया, सारा कमरा अस्त व्यस्त कर दिया. तभी घर के दरवाज़े पर एक कार आकर रुकी और उसमे से पायल निकल कर सीधा अंदर चली आई. देरी से आने के लिए सॉरी सॉरी बोलती हुई कान्ता के गले लग गई, और सारा कमरा अस्त व्यस्त देखकर बहुत प्रसन्न हुई और यहाँ वहाँ दौड़ती हुई बोली, आज लग रहा है की किसी घर मे आई हूँ. रोज तो लगता था जैसे किसी बड़े होटल में रह रहे है, सब जगह शोपीस रखे है जिन्हे हाथ नहीं लगा सकते, ज़ोर से बोल नहीं सकते, खुल के हंस नहीं सकते,

ये मत करो वो मत करो, गन्दा हो जायेगा. परन्तु कान्ता अस्त व्यस्त कमरा देखकर गिल्ट फील कर रही थी और सोच रही थी कि पायल को क्या हो गया है. पायल थक कर जमीन पर बैठ गई. कान्ता और उसकी माँ के लाख कहने पर भी पायल नहीं उठी और बोली आज बहुत मुश्किल से घर में रहने का मौका मिला है, यही अच्छा लग रहा है. कान्ता भी साथ मे बैठ गई और वहीं बातें करते रहे और फिर साथ में खाना खाया. तभी ड्राइवर कार लेकर लेने आ गया परन्तु पायल ने ड्राइवर को वापस भेज दिया और एक घंटे बाद आने के लिए बोला. एक घंटे बाद ड्राइवर आया तो पायल ने रुकने के लिए बोला, लेकिन ड्राइवर ने बताया साब नाराज़ होंगे,

नहीं रुक सकता. पायल जल्दी से ख़डी हो गई, आंटी और कान्ता से गले मिलकर भावुक होकर बोली, ऑन्टी, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, मै पहले यहाँ क्यों नहीं आई. मै फिर आउंगी बोलकर कार मे बैठ गई. अब स्कूल से छुट्टी होने के बाद अक्सर पायल बैग कार मे छोड़कर कान्ता के घर उतर जाती, ड्राइवर अकेला बंगले चला जाता शाम को पायल को लेने आ जाता. जो खुशी कान्ता के घर मै मिलती थी, वो सब बंगले मे नहीं मिलती थी. उसे बंगला एक सोने के पिंजरे के समान प्रतीत होता था , जिसे देखने वाले जलते है पर उसमे रहने वालों का दम घुटता है.

साथिओं, हर माँ बाप अपने बच्चों को बहुत प्यार करते है और दुनिया कि हर खुशी देने के साथ साथ अच्छे संस्कार, तहज़ीब, रहन सहन, उठना बैठना और जीने के तोर तरीके सिखाते है. लेकिन जाने  अनजाने मे माँ बाप कहीं न कहीं उनका बचपन पीछे छोड़ देते है. जिन्दगी जीने कि शिक्षा इंसान सारी उम्र सीखता है, पर गुजरा हुआ बचपन दोबारा लौटकर नहीं आता.

धन्यवाद

लेखक

एम. पी. सिंह

(Mohindra Singh)

स्वरचित, अप्रकाशित 

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