कल्लू वो कल्लू कहां घूम रहा है। कितने दिनों से तुम्हें फोन लगा रहा हूं ,पर फोन बंद था रहा है।कहां था इतने दिन से ।बस बाबूजी फोन रिचार्ज नहीं था ।आजकल कहीं काम नहीं मिल रहा था पास में पैसे नहीं थे तो रिचार्ज नहीं कर पाया ।अच्छा इधर आ घरमें कुछ काम कराना है ,कर देंगे बाबू जी काम की ही तलाश में इधर-उधर घूम रहा हूं। कब से काम कराना है।बस चार दिन और रूक जा सोमवार से करा लेंगे।आजा सामान वगैरह लिखवा दे वो ला देते हैं तो काम कर देना। ठीक है बाबू जी।और ये लो सौ रूपए अपना फोन रिचार्ज करवा लो, जिससे काम पड़ने पर बात तो हो जाए। अच्छा बाबूजी जब काम करेंगे तो सौ रूपए काट लेना उससे।अरे नहीं नहीं सौ रूपए ही तो दिए हैं उसको भी क्या काट लेंगे तुम्हारे पैसे में से ।इतने सालों से काम कर रहे हो बस इतना ही जाना है क्या मुझे। नहीं नहीं बाबूजी आप लोग तो बहुत अच्छे हैं ।हम तो सबको बताते हैं कि देखो दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है।हम उनके धर्म के नहीं हैं तब भी बाबूजी कितनी मदद करते हैं हमारी।
कल्लू एक बढई था और बहुत ही कुशल कारीगर, अपने काम को बहुत ही तल्लीनता और लगन से करता था ।किसी को भी कोई गलती निकालने का मौका नहीं मिलता था वह धर्मसे मुस्लिम था अंम्बरीष जी अपनी कॉलोनी में दो बच्चों और पत्नी के साथ रहते थे। नई कॉलोनी का विकास हुआ था और सभी घर नये बन रहे थे ।वहां की कॉलोनी के सभी खिड़की दरवाजे कल्लू ने ही बनाए थे। कल्लू अपने काम में तल्लीनता से लगा रहता था कभी किसी से फालतू न बातचीत करता न समय बर्बाद करता था ।एक जगह काम खत्म होने के पहले ही दूसरी जगह काम की जुगाड़ कर लेता था।
कल्लू के घर में उसकी पत्नी तीन बेटियां और एक बेटा था। बेटियों की तो शादी धीरे धीरे निपटा चुका था बेटा सबसे छोटा था । अभी 15 साल का रहा होगा।अब कल्लू अपने बेटे को भी काम पर साथ लाने लगा था।उसको भी काम सिखाता था।और लंच टाइम में अपने घर से लाया हुआ टिफिन दोनों बैठकर खाते थे।कई बार अम्बरीष जी की पत्नी निलिमा चुपके से उसके टिफिन को देखती कि क्या लाया है , यदि सब्जी वगैरह न हो तो वो अपने पास से दे दे । लेकिन टिफिन में उसके सब्जी के साथ प्याज हरी मिर्च आचार सब रहता था। कल्लू के काम और उसके होशियारी के चर्चे पूरी कालोनी में थे।
कल्लू को काम करते हुए कई साल बीत गए।अब कल्लू उम्र दराज हो गया था । लड़का भी अब बड़ा हो गया था।और वो किसी लड़की के चक्कर पड़कर उससे चुपके से शादी कर ली ।और इधर कल्लू की पत्नी गर्भाशय के कैंसर से काल कवलित हो गई। कल्लू की एक यही बड़ी बात थी कि उसका खुद का घर था। पत्नी के गुजर जाने से घर में खाने पीने की बहुत समस्या हो गई।बेटे ने शादी कर ली थी तो कल्लू ने सोचा कि चलो बहू आ गई है तो अब घर में खाना पीना बनाएगी। लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही बहू नजमा कल्लू को परेशान करने लगी । खाना नहीं देती लड़ाई झगड़ा करती । फिर एक दिन लड़ाई झगड़ा इतना बढ़ा कि वो ससुराल छोड़कर मायके चली गई , कहने लगी जबतक बुड्ढा घर में रहेगा वो नहीं आएगी।और साथ में कल्लू के बेटे को भी ले गई। पत्नी के मोह में पागल बेटा अज़ीम पिता को छोड़कर पत्नी के साथ चला गया। फिर बहू नजमा ने ससुर के ऊपर गंदी नजर रखने का इल्ज़ाम लगा दिया ।और दहेज में परेशान करता है ससुर इल्जाम लगाया । पैसे की मांग करने लगी । बेटा भी अपना हिस्सा मांगने लगा ।रोज रोज के चिक-चिक और पुलिस के द्वारा परेशान किए जाने से तंग आकर कल्लू ने अपना घर बेचकर पैसा लड़के बहू को दे दिया।और खुद बेघर हो गया। फिर कल्लू के छोटे भाई ने उसको अपने यहां शरण दी । छोटे भाई ने बरामदे में एक खटिया डाल कर कल्लू को सोने की जगह दे दी और सुबह एक कप चाय दे देता बस। बेटियों के ससुराल में भी वो नहीं रहना चाहता था ।काम के चक्कर में इधर उधर घूमता रहता था । कुछ पैसे जब अपने भाई को दे देता था तो भाई के घर से कुछ खाना मिल जाता था नहीं तो नहीं।
कल्लू को कहीं काम मिल जाता तो तल्लीनता से काम करता ।उसका काम ऐसा था कि एक हेल्पर की जरूरत पड़ती थी तो कभी कभी किसी लड़के को ले आता लेकिन जब काम नहीं रहता तो वो लड़के फिर भाग जाते मिलते नहीं। ऐसे ही कल्लू की जिंदगी चलती रही ।बहू तो बहू बेटे ने भी बुढ़ापे में बाप से मुंह मोड़ लिया था।
एक दिन कल्लू अम्बरीष के घर काम कर रहा था तो दो-तीन दिन केबाद उसका काम पर आना बंद हो गया। जब अम्बरीष ने फोन करके पूछा तो पता लगा कि उसको फूड प्वाइजनिंग हो गई है।वह बीमार है इसलिए काम पर नहीं आ रहा है। ठीक होने के बाद आया तो बताया कि दोपहर में खाने के समय समोसा और सब्जीखा लिया था इसलिए बीमार हो गया था, नीलिमा ने कहा यह रोज-रोज समोसा क्यों खाते हो तो कहने लगा कि क्या करें बहन जी भूख लगती है कुछ न कुछ खाना पड़ता है।तो पहले तो घर से खाना लेकर आते थे । तो उसने अपनी आपबीती सुनाई अब कौन है घर में खाना बनाने को। पत्नी थी तो वह मर गई और बेटा ससुराल में बस गया जाकर। वह रोने लगा और कल्लू ने कहा बाबूजी आप मेरी शादी करवा दो, अम्बरीष जी बोले मैं तुम्हारी शादी कैसे करवा सकता हूं मैं तो तुम्हारे धर्म के बारे में कुछ जानता नहीं हूं ।हमारा तुम्हारा धर्म अलग है। और रोने लगा कल्लू । उसकी आप बीती सुनकर नीलिमा और अम्बरीष का मन बहुत दुखी हुआ, उस दिन से नीलिमा जी ने तय कर लिया कि जब तक यह हमारे घर में काम करता रहेगा सुबह आने के बाद चाय कुछ नाश्ता और दोपहर का खाना रोटी ,दाल , सब्जी देती थी। नीलीमा और अम्बरीष जी को एक मानसिक संतोष मिला कि चलो किसी भूखे को हम खाना खिला दें रहे हैं ।
आज कल्लू का काम खत्म हो गया ।जब उसके पैसे का हिसाब किया गया तो उसने पूरे पैसे लेने से इंकार कर दिया, कहने लगा बाबूजी इस काम के आधे पैसे दिजिए हमें, अम्बरीष जी ने पूछा क्यों तो कहने लगा आपने ढाई महीने हमें खाना खिलाया उसके पैसे काट लिजिए ।अरे कैसी बात कर रहा है तू कल्लू तुझे खाना खिलाया तो पैसे काट लें नहीं ये नहीं होगा तुम पूरे पैसे लो और जब भी तुम्हारे पास पैसे न हो कोई जरूरत हो तो बेझिझक आना मेरे पास पैसे ले जाना।और खाना , खाना तो तुम्हारी बहन जी कोई भी घर में काम करें उसको खिला देती है । उनसे कोई इंसान भूखा रहे ये देखा नहीं जाता है। कहती हैं ये कितनी बड़ी बात है कि ईश्वर ने मुझे इतना दिया है कि किसी भूखे को खाना खिला सकूं तो जरूर खिलाना चाहिए। कल्लू कहने लगा अल्लाह का शुक्र है कि दुनिया में बाबू जी जैसे लोग और बहन जी जैसी नेकदिल इंसान है । इंसानियत आज भी जिंदा है , नहीं तो कौन किसी को पूछता है। बहुत बहुत आदाब और धन्यवाद बाबूजी।
दोस्तों किसी की मदद कर देना सबसे बड़ी नेमत है ।और किसी भूखे को खाना खिला देना और प्यासे को पानी पिला देना , इससे बढ़कर कोई इंसानियत नहीं है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
29 दिसंबर