पूरा हाल लोगों से भरा हुआ था। सबकी नज़रें मुख्य अतिथि यानी आई•ए•एस• सविता सिंह के आने की प्रतीक्षा में लगी थी। आर्ट गैलरी के उद्घाटन के लिए उनको बुलाया गया था। तभी कुछ लोग दौड़ते हुए गेट के पास पहुंचे। एक कार वहां आकर रुकी उससे बाहर प्रभावशाली व्यक्तित्व की मालकिन सविता सिंह उत्तरी। चेहरे पर रोब था खूबसूरती उनके व्यक्तित्व और तेजमयी चेहरे में थी । उनके सधे हुए कदम हाल की तरफ बढ़ गए।
सभी लोग उनके सम्मान में अपनी कुर्सी छोड़कर खड़े हो गए।सामने सोफे रखे थे उनसे थोड़ी दूरी पर डायस रखा था । जहां से होस्ट शिखा अनाउंस कर रही थी । उसने जैसे ही सविता सिंह को देखा वह ऐसे चौंक गई जैसे गल्ती से गर्म तवे पर हाथ पड़ गया हो। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ जब वह करीब आईं तो फिर उसने ध्यान से देखा, यह तो देखी हुई लग रही हैं बहुत करीब से। कहां देखा ? कौन है ? शिखा अपने आप में बड़बड़ा रही थी कि पास खड़े उसके पति विकास ने उसे झकझोर कर कहा -“शिखा क्या हुआ? क्या बड़बड़ा रही हो? मैडम आ चुकी हैं । तुम कुछ बोल क्यों नहीं रही ?” ऑ शिखा जैसे सोते से जागी । फिर बोली-” विकास इनको देखो यह मुझे जानी पहचानी लग रही है।
मगर याद नहीं आ रहा ।देखो विकास तुमको याद आया क्या?” शिखा धीरे से बोली। तभी मिस्टर सक्सेना जाकर गुस्से में बोले – शिखा आप चुप क्यों हैं मैंने कहा था आप नहीं कर पाएंगी। तब भी आपने कहा हम बोलेंगे । अब क्या हुआ ? चलिए रागिनी को माईक दीजिए। ” सक्सेना जी ने शिखा को वहां से हटने के लिए कहा । तभी उनकी आवाज से सोफे पर बैठी सविता की नजर एकाएक शिखा पर पड़ी । उन्होने एक नजर में उसे पहचान लिया साथ ही उनके होंठो पर निश्छल मुस्कान और आंखों में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के भाव आ गये। इसके साथ ही कुछ पलों में ही वो अतीत में पहुंच गयीं ।
जब शिखा कुंज कलिका इंस्टीट्यूट की अध्यक्ष थी । किसी को कुछ समझती नहीं थी किसी के सामने झुकना तो मंजूर ही नहीं था एक दिन एक बड़े नेता की जयंती मनाने का कार्यक्रम रखा गया था। जिसमें राजनीति के बड़े दिग्गज नेता उसमें शामिल होने वाले थे। होस्ट के लिए उसे निश्चित किया गया था ।
अतिथि गण आने लगे। एंकरिंग सही हो रही थी कि तभी कुछ और नेता आ गए। जिनके लिए वह थोड़ा रुक गई। तभी शिखा ने उसके हाथ से माइक छीन लिया और खुद ही एंकरिंग करने लगी । अभी वह खड़ी थी कि विकास ने उसको स्टेज के नीचे की तरफ जाने को कहा और पीछे जाकर अपमानित करने वाले शब्द बोले । उसकी आंखों में आंसू छलक पड़े वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें जाए या वहां रुके ।
लेकिन वह रुकी रही कार्यक्रम समाप्त हुआ । तभी लोग लंच के लिए बढ़े। शिखा और विकास ने उसके पास जाकर कहा -“तुमको बोलने की तमीज नहीं तो दूसरे काम कैसे करती होगी। पता नहीं कैसे यहां नौकरी मिल गई । वह रो पड़ी उसने कहा – “मैम जब आपने अतिथि के नाम की लिस्ट बनाई थी उसमें उन लोगों का नाम नहीं था। इसलिए मुझे वहां रुकना पड़ा फिर भी मैं बोल रही थी।” ” तुम मुझसे तर्क कर रही हो मुझे तुम्हारी बकवास नहीं सुननी। अभी यहां से जाओ।” सविता रोने लगी इस बात से कम कि उसका अपमान हुआ बल्कि इस बात से ज्यादा कि उसकी नौकरी चली जाएगी। वह अपने बेटे की फीस, घर का किराया और बाकी खर्चे कैसे करेगी? उसका कोई और सहारा नहीं है। बेटे के जन्म के 6 माह बाद उसके पति ने किसी और की वजह से उसको तलाक दे दिया था। जिसको ना चाहते हुए भी उसको स्वीकार करना पड़ा था। उसके बाद वह बड़ी मुश्किल से उसे यहां नौकरी मिली थी ।
मगर अब क्या होगा ?” वह रोते-रोते गिड़गिड़ाकर बोली -” मैं मुझे माफ कर दीजिए फिर गलती नहीं होगी । ” नहीं, मुझे कुछ नहीं सुनना।” शिखा चीखते हुए बोली। सब लोग देखने लगे सविता की नजरें झुक गई। और वह रोती -रोती वहां से चली गई। लेकिन मन ही मन में वहां उसने निश्चय किया कि” ” मैं असहाय नहीं हूं ।” मैं खुद का साथ लेकर खुद को मजबूत बनाऊंगी ।
उसके बाद सविता एक स्कूल में नौकरी करने लगी। साथ ही प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने लगी। एक दिन उसके दृढ़ संकल्प ने अपना रूप दिखा दिया। वह आई.ए.एस. की परीक्षा में सफल हो गई।
तभी तालियों की आवाज से वह अतीत से बाहर आ गयी।
शिखा अपने आसुओं को छलकने से रोक रही थी। मगर उसका अतीत उसे घायल कर रहा था उसे भी सब याद आने लगा। उसका और उसके पति का घमंड था या सविता की आह जिसने उनको दिन पर दिन अवनति की ओर फेंक दिया। सब खत्म हो गया। बदनामी के डर से दोनों दूसरे शहर में जाकर एक साधारण नौकरी करने लगे ।
तभी विकास की आवाज से शिखा अपने अतीत से बाहर आई। “विकास याद आया यह कौन है ? “
“नहीं ।”
यह सविता सिंह जो कुंज कलिकाल में काम करती थी। ” शिखा ने धीरे से कहा।
” क्याऽऽ”- विकास आश्चर्य से बोला। तभी सविता सिंह को वहां के प्रबंधक आर्ट गैलरी में लेकर आ गए। सविता ने एक उड़ती नजर शिखा और विकास पर डाली ।और आगे निकल गई शिखा को अपने कार्य के अनुसार सविता सिंह से आर्ट गैलरी के लिए टिप्पणी लिखवाना था। सविता ने सामने रखे पेपर पर लिखा-” घड़ी का आकार कैसा भी हो समय का पहिया गोल ही है। समय सबका आता है। ” शिखा समझ गई। उसकी नज़रें ऊपर नहीं उठ सकीं। सविता जा चुकी थी ।
लेखिका- उषा भारद्वाज
प्रतियोगिता में दिए विषय- मैं असहाय नही
हूं ” पर आधारित