“देखिए ना,हमारे ऊपर तो इतनी बड़ी जिम्मेदारी है,कहीं भी आना-जाना नहीं कर सकते हम।आप लोगों की तरह मैं स्वतंत्र तो हूं नहीं।मंहगाई है कि बढ़ती जा रही है,और खर्च है कि कम होते ही नहीं।बुढ़ापे में बीमारी भी बिन बुलाए मेहमान की तरह आ जाती है।मैं तो आप लोगों के साथ ट्रिप पर नहीं जा पाऊंगी।मन को बहुत मारना पड़ता है।” ज्योति अपनी सहेलियों के साथ बैठकर ,अपने घर में चल रही किटी पार्टी में अपनी सास को साथ रखने का ढिंढोरा पीट रही थी।
रसोई में गरम-गरम पकौड़ियां तलती हुई कृष्णा जी का मन कसैला हो गया।सोचने लगीं मैं कब अपने बहू -बेटे पर बोझ बन गई।अभी भी राहुल के पापा की पेंशन आ रही है।मेरी भी पेंशन मिलती है। पैतृक संपत्ति में से गांव से अभी भी अनाज का हिस्सा मिल जाता है।राहुल के हर जन्मदिन,शादी की सालगिरह पर एफ डी करवा देती हूं।ईश्वर की कृपा से स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रहता है।अपनी महिला मंडली में ज्योति(बहू) ने तो आश्रिता बना कर रख दिया मुझे।
पार्टी सात बजे तक चली।जाते हुए ज्योति की सहेलियां आईं थीं उनसे मिलने।पकौड़ियों की तारीफ के साथ मसाले वाली चाय का भी बखान कर रहीं थीं।कृष्णा जी अपनी कमजोर आंखों से चश्में के पीछे से साफ-साफ देख सकतीं थीं ज्योति की सहेलियों के चेहरे की झूठी हंसी।सास से ज्यादा संवाद ना होने पाए,यह सोचकर ज्योति ने जल्दी से उन्हें चलता किया।थोड़ी देर बाद ही राहुल भी ऑफिस से आ गया।पति के आते ही ज्योति की फुर्ती चौगुनी बढ़ गई।रसोई से गरम-गरम पकौड़े निकाल कर राहुल के हांथ में थमा दिया।राहुल पकौड़ियां खाते हुए ही बोला” अरे वाह!!!!मां,तुम्हारे पकौड़ियों का स्वाद बिल्कुल भी नहीं बदला।ना तो बेसन कम ,और ना ही ज्यादा।मैं दूर से खुशबू सूंघकर भी बता सकता हूं,आपकी बनाई हुई पकौड़ियों का स्वाद।”
ज्योति के चेहरे की गर्वित मुस्कुराहट पति की बात सुनते ही गायब हो गई।झट से मुंह बनाकर बोल पड़ी “कभी तो मेरी भी तारीफ कर दिया करो। अभी-अभी आपके सामने ही रसोई से तलकर लाई,और शाबाशी मां को दे रहें हैं आप।” कृष्णा जी ने बहू का मन भांपकर कहा”नहीं रे,राहुल।ये पकौड़ियां तो ज्योति ने ही बनाईं हैं।मैंने उसे बता दिया था बेसन का अंदाज।उसी ने बनाए हैं।उसकी मेहनत को नजरंदाज मत कर तू।”,
मां की बात सुनकर राहुल ने ज्योति को बधाई दी, पकौड़ियों के बेहतरीन स्वाद के लिए।रात में खाने की टेबल पर कृष्णा जी ने बहू के द्वारा किए गए कटाक्ष के बारे में राहुल से बात करने की सोची, पर घर के खुशनुमा माहौल को बिगड़ते देखने का साहस नहीं जुटा पाईं वे।पोते( आदित्य)की बारहवीं कक्षा थी।ना तो टी वी देखने की इजाजत थी, ना ही ज्यादा बात करने की।ज्योति हर समय आदित्य के भविष्य को लेकर आशंकित रहती।राहुल के साथ बात करने का भी एक ही विषय था, आदित्य का कॉलेज में एडमिशन।
अब तो आदित्य भी दादी के पास कम ही आता था।बचपन से अब तक दादी के साथ एक ही कमरे में रहता आया था,पर अब अलग कमरे में रहता था।कृष्णा जी समझ सकतीं थीं,वजह।इतवार की छुट्टी के दिन राहुल से बात करने की कोशिश की कृष्णा जी ने” राहुल,बड़े भैया से पूछ लेगा क्या?कुछ दिनों के लिए हो आती उसके घर।तुम लोग तो अभी जा नहीं पाओगे,आदि की बारहवीं है।मैं अकेले ही चली जाऊंगी,तू बस ट्रेन में बिठा देना।”
राहुल ने आश्चर्य से मां की ओर देखकर कहा”अरे,अभी दादा के यहां जाने की क्यों सोची मां आपने?आदि की परीक्षा के बाद तो चलेंगे हम सब साथ।इतनी ठंड में कहीं नहीं जाना।यहां रहिए आराम से।आपको कोई तकलीफ है क्या?”
“अरे नहीं-नहीं रे, तकलीफ कैसी?मैं सोच रही थी कि आदि को डिस्टर्ब होता है पढ़ने में।मेरे कारण तुम लोग परेशान रहो,यह भी तो ठीक नहीं।तेरे दादा के पास जाकर डॉक्टर से भी मिल लूंगी।” कृष्णा जी ज्योति के तानों को हजम करने की कोशिश करते हुए बोलीं।ज्योति ने तभी अपना पैंतरा बदलते हुए कहा”अब देखिए मां,ऐसा कहकर तो आप हमारे मुंह पर तमाचा मार रहीं हैं।यहां आपकी हर सुविधा का ध्यान रखते हैं हम।हां,टी वी देखने से मना करतें हैं,पर वो आदि की पढ़ाई के लिए।यदि आप अभी दाऊ सा के यहां जाने की बात करेंगीं,तो क्या सोचेंगें वे हमारे बारे में?आपके ऊपर कोई पाबंदी तो है नहीं।जो मन आया खातीं हैं,जहां मन चाहे घूमने चली जातीं हैं।कभी रोक-टोक की क्या मैंने?मतलब हमने?”
कृष्णा जी ने बात वहीं खत्म कर दी।सोचा बेकार में बेटा परेशान हो जाएगा।अरे, बहू ने बिना सोचे-समझे कह दिया होगा,अपनी सहेलियों से।राहुल तो उनका बहुत ख्याल रखता है।इस उम्र में इतना अभिमान भी सही नहीं।रहना तो दोनों बेटों के पास ही है।क्लेष करने से अच्छा है,थोड़ा सा बर्दाश्त कर लें।
आदि के कमरे से खांसी की आवाज आ रही थी,रात को।ठंड में ट्यूशन जाता है बिचारा।पैरों में थोड़ा राई का तेल मल दूं, सोचकर कृष्णा जी रसोई में तेल लेने गईं।तभी राहुल के कमरे से ज्योति की आवाज सुनाई दी” अरे!कभी अपनी मां से भी कह दिया करो,जबान पर लगाम रखें।इस उम्र में इतना चटखारे लेकर खाएंगी,तो किराना का वजन तो बढ़ेगा।ठंड आई नहीं कि कचौरी,पूरी की तलब लगने लगती है।मैं तो दाल सब्जी बना कर स्कूल चली जातीं हूं।पीछे से सारा दिन छप्पन भोग बनाती रहतीं हैं।मेरे राहुल को ये पसंद है।मेरे आदि को वो पसंद है बोल-बोल कर।असल में खुद की जीभ में ही नियंत्रण नहीं।हमारे भी मां-पापा हैं।अकेले रहतें हैं,आराम से अपने घर।कभी बेटे -बहू को परेशान नहीं करते।ऊपर से हमारे लिए सस्ते में जमीन भी खरीदना दिया उन्होंने।मैं कुछ नहीं जानती।आदि के एडमिशन के समय पैसों का रोना मत रोना आप।”
राहुल ने धीमी आवाज में कहा”हां-हां,मैं भी जानता हूं।तभी तो तुमसे कहता हूं,मां को खुश रखा करो।वो अगर हमारे साथ हैं,तो पैसों की कोई परेशानी नहीं होगी।अभी अगर दाऊ सा के पास चली गईं,तो वहां उनकी बेटी की शादी में अपनी सारी जमा-पूंजी लगा दे़गीं।भाभी सा रोएंगी,मां के पास और मां तुरंत पिघल जाएंगी।उनके रहने से बहुत फायदा है हमें।खाने की बस शौकीन हैं,तो क्या हुआ?ख़ुद ही बना लेतीं हैं। तुम्हें भी तो आराम है उनके रहने से।उनके कारण ही तुम आदि को छोड़कर नौकरी कर पाईं।साल के ग्यारह महीने तो उनका पैसा हम खातें हैं।साल में एक बार दीदी और दाऊ सा के घर जातीं हैं।बाजार भी खुद जाकर सब्जी ले आतीं हैं।अपनी दवाईयां खुद ले आतीं हैं।वो हमारे ऊपर निर्भर नहीं हैं।तुम उन्हें खुश रखा करो।एक बार वो बिगड़ गईं ,फिर रोके से भी ना रुकेंगीं।”
कृष्णा जी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनका खून है यह राहुल।तभी ज्योति ने कहा” हां-हां ठीक है।पर आदित्य के एडमिशन की बात पहले से कर लेना। अपने घर का उद्घाटन भी है अभी।मेरे मां-पापा ने इतना अच्छा घर बनवा दिया अपनी निगरानी में।”
कृष्णा जी के पैरों तले से जमीन खिसकने लगी अब।बहू ने अपनी कमाई जमा कर-कर घर बनवा लिया।एफ डी के सारे पैसे उन्होंने ही जमा करवाए थे।घर का खर्च उन्हीं के पैसों से चलता रहा है अब तक।राहुल की कार का अधिकांश भाग उन्होंने ही दिया।उस पर ज्योति और राहुल का यह दिखावा कि वे उनपर आश्रित हैं!जब सब कुछ उन्हीं की कमाई से हो रहा है,तो वे आश्रिता बन कर क्यों रहें?बड़े बेटे के पास ही चली जाएं।हां, आदित्य की परीक्षा तक रुकेंगीं यहीं।
देखते-देखते आदित्य की बोर्ड परीक्षा भी हो गई ,और फिर परिणाम भी आ गया।बी बी ए में एडमिशन लेना चाह रहा था वह। प्राइवेट कॉलेज में।बेटे-बहू और आदित्य के साथ बड़े बेटे रोहित के पास दिल्ली पहुंच कर राहत की सांस लीं,कृष्णा जी ने।राहुल और ज्योति को दो लाख भी दे दिए आदि के एडमिशन के लिए। राहुल और ज्योति की अनुपस्थिति में बड़ी बहू से बोलीं कृष्णा जी”रिया(पोती) की शादी में जो भी मदद की जरूरत हो ,बताना मुझे।उसके लिए बनवाए गहने भी तुम संभाल कर रख लो अपने पास।मैं रिया की शादी तक यहीं रुकूंगी।तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं है ना बड़ी बहू?” बड़ी बहू ने हंसकर कहा”नहीं मां।मैं तो घर में ही रहतीं हूं।नौकरी करती नहीं।आपके बेटे की कमाई से घर चल ही जाता है।आप को परेशान होने की जरूरत नहीं।जब जरूरत होगी,हम आपसे ले लेंगें।आप आराम से रहिए यहां।”
बड़ी बहू अदिति की बातों ने कृष्णा जी के कलेजे को ठंडक पहुंचाई।राहुल और ज्योति दो दिन बाद ही आ गये,बेटे का एडमिशन करवाकर।दोपहर में दोनों देवरानी और जिठानी के बीच शादी को लेकर चर्चा चल रही थी।कृष्णा जी अपने कमरे में आराम कर रहीं थीं(लगा , सो रहीं थीं।)
अदिति ने ज्योति से पूछा” तो क्या करना है इनका?साथ में ले जाओगी,या यहीं पर रहेंगीं।देखो भी,मेरे घर पर आने-जाने वाले लोगों की भीड़ लगने लगेगी कुछ दिनों में।मां के कमरे में भी हो सकता है किसी को ठहराना पड़े।उन्हें बुरा तो नहीं लगेगा ना?अधिकतर समय तो उन्होंने तुम्हारे साथ बिताया है, तुम्हें पता होगा।”
ज्योति ने तुरंत कहा” देखिये भाभी सा, आदित्य के एडमिशन में अभी तीन लाख लग गया।हर बार फीस बढ़ेगी।मां जी का खर्च अब हम नहीं उठा पाएंगे।दाऊ सा के सामने और इनके सामने तो नहीं बात कर पाएंगे हम।मैं अभी से बता देतीं हूं आपको।ये पापा जी के पैसे और अपने पैसों का क्या करती हैं, कुछ पता नहीं।हां बेटे -पोते के जन्मदिन पर केक मंगवा लिया करती हैं हर साल।फिर भी इनके पास पैसों का रोना होता है।अब हमें अपने खर्च में कटौती करके आदि की फीस भरनी पड़ेगी, तो कहां से साथ ले जाएंगें? “
अदिति भी होशियार थी,पूछ ही लिया” इनके एटीएम तो इन्हीं के पास हैं ना।गांव में भी तो कितने रिश्तेदार बनाकर रखें हैं इन्होंने।जाने किस-किस को पैसे बांटती फिरतीं होंगीं। रहने दीजिए ना मेरे पास।महीनों घर से निकलने नहीं दूंगीं।ना ही बैंक जाने दूंगीं।दीदी के पास या गांव में किसी रिश्तेदार के पास बिना हमें संग लिए तो जा नहीं पाएंगी।तब देखते हैं इनके पास कैसे नहीं जमा होते पैसे।दो-दो पैंशन मिलता है,तो कहां जाता है।तुम्हारे भैया (दाऊ सा)बाहर ले जाने की बात करेंगे तो,मना कर दूंगी।ये कोई उम्र है घूमने -बागने की।”
दोनों के खिलखिलाने की आवाज कृष्णा जी के मुंह पर थप्पड़ की तरह पड़ रही थी।शाम को उठकर सबसे पहले राहुल से कहा अपना एटिएम देने के लिए।राहुल कुछ समझ पाता ,इससे पहले ही कृष्णा जी ने कहना शुरू किया” अरे,गांव में जो हमारे जमीनों की देखभाल करतीं हैं ना विमला चाची।उनको देखने गांव जाऊंगी ,सोच रही थी।अपना पुराना मकान भी खंडहर होता जा रहा है।सोच रहीं हूं थोड़ा मरम्मत करवा लूं।इतना बड़ा घर है वहां हमारा।तेरे दादाजी ने बड़े चाव से मुझसे कहा था,देखभाल करने को।अपनी नौकरी,तुम लोगों की पढ़ाई,शादी,बच्चों के चलते कभी ध्यान ही नहीं दिया गांव में।अब इस बार जाना पड़ेगा।खेत -खलिहान का हिसाब रखना होगा मुझे।पैसों की जरूरत आ सकती है किसी भी समय। अपने हांथ में होना चाहिए।”
राहुल ने तुरंत कहा”वो गांव वाली विमला चाची का फोन आया था क्या आपके पास?उसी ने बरगलाया है आपको।इतनी दूर अकेली कैसे जाएंगी आप? घर से बाहर छोटे-छोटे दुकानों से सामान लाना और घर बनवाने में बड़ा अंतर है।हम लोगों का घर भी एक तरह से बन गया है। तुम्हें उद्घाटन भी तो करना है, मेरे घर का।वो घर तुम्हारा ही तो रहेगा ना। हां घर के पेपर ज्योति के नाम पर है, पर तुम्हारा ही घर है वो।हम सब साथ रहेंगे ना मां। विमला चाची को तुमसे पैसे ऐंठने होंगें,तभी तुम्हें बुला रही हैं।एक नंबर की मतलबी हैं वो।आप लोग बस उपर -ऊपर से देखकर इंसान को परखते हैं।हकीकत कुछ और ही होती है।”
कृष्णा जी के सब्र का बांध अब टूट चुका था।गंभीर होकर बोलीं” राहुल ,ये तूने सही कहा,विमला मुझे पैसों के लालच में बुला रही होगी।पर मैं एक बार जाकर मिलना चाहती हूं।काफी समय से संभाल रहीं हैं वहां पर।रही बात परखने की,तो उम्र ने ये तजुर्बा भी सिखा दिया।बिना मतलब के कोई किसी को नहीं पूछता रे।अब सारे रिश्ते पैसों से ही बनते और बिगड़ते हैं।तुमने मेरी बहुत देखभाल कर ली।अब अपनी पत्नी और बेटे में मन लगा।मैं किसी के पास नहीं रहूंगी।मुझे तुम दोनों से कोई शिकायत भी नहीं।एक औरत का जीवनसाथी जब चला जाता है ना,उसकी ताकत कम हो जाती है।तुम्हारे पापा के रहते कभी बाहर नहीं निकली हूं । परिस्थितियां ऐसी थीं ही नहीं उस समय कि औरतें घर से बाहर बाजार,दुकान जाए।पर मैंने अपने आप को बदलना शुरू कर दिया।अब मैं सब करती हूं, वो जो कभी नहीं किया।इतने सालों से अपने अभिमान को समझाती रही, पर मेरा स्वाभिमान तो मृतप्राय हो चुका था।मैं कल ही जाऊंगी गांव, वो भी अकेले।बेटा मैं असहाय नहीं , विधवा हूं।मैं अपने जीवन को एक दिशा देना चाहती हूं।तुम्हारे पापा का गा़व है, जहां उन्होंने सबसे मित्रता बनाई थी।सभी मेरा भी सभी सम्मान करतें हैं।मैंने पक्की बात भी कर ली है विमला से। उसे महीने का किराना,गैस सिलेंडर,दूध सब मैं ही खरिदकर दू़गीं।पापा के ,स्कूल की भी देखभाल कर लूंगी़।बच्चों ,तुम्हारे मोह में और अपनी ममता की कमजोरी में,मैं तुम लोगों पर निर्भर हो गई थी।अब मेरा अभिमान मेरे स्वाभिमान को जिंदा कर चुका है।मैं तुम लोगों के सहारे शायद जी नहीं पाऊंगी न।तुमृहारा मोह मुझे असहाय बनाता रहा ।मैं असहाय ना तों कभी थी, और ना रहूंगी।
शुभ्रा बैनर्जी
वाक्य आधारित कहानी-असहाय नहीं हूं मैं