नेहा अपनी गृहस्थी मैं बहुत खुश थी ससुराल मै सब उसका बहुत ध्यान रखते और किसी चीज की कोई कमी नहीं थी नेहा का पति राकेश एक बड़ी कंपनी मैं मैनेजर था नेहा भी शादी के पहले नौकरी करती थी पर शादी के बाद उसका खुद का मन नहीं हुआ वो अपनी जिंदगी सुकून से जीना चाहती थी और राकेश की भी यही इच्छा थी
शादी के दो साल बाद एक बेटी हो गई सब कुछ अच्छे से चल रहा था राकेश अपनी कमाई मां के हाथ में ही देता नेहा को भी कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि उसे कभी कुछ कमी महसूस नहीं हुई हां थोड़ी बहुत सेविंग बेटी के नाम से नेहा करवाती रहती थी पर जिंदगी कब क्या दिखाए कोई नहीं जानता एक दिन कार एक्सीडेंट में
राकेश के साथ हुई दुर्घटना मैं राकेश की मृत्यु हो गई ।नेहा के साथ अचानक हुए हादसे ने उसे तोड़ कर रख दिया कुछ दिन तो उसे समझ नहीं आया क्या हुआ है ।लेकिन सास का व्यवहार उसे बदला बदला सा लगा और सवा महीने बाद उन्होंने नेहा से कहा कि वो उसे नहीं रख सकती अपना इंतजाम कर ले ।
नेहा के पांव तले जमीन निकल गई बच्ची को ले कर कहां जाए राकेश की ज्यादा बचत भी नहीं थी ।उसे दुख हुआ कि उसने सास को हमेशा मां समझा था और आज वो ऐसा कर रही है उन्हें पोती पर भी तरस नहीं आया ।
नेहा खुद को असहाय महसूस कर रही थी तभी मायके का ख्याल आया वहां तो सब है वो तो अपनी बेटी को रख लेंगे नेहा बड़ी उम्मीद से मायके आ गई उसे देखते ही उसकी भाभी का मुंह चढ़ गया। उस समय तो कुछ नहीं बोली मां ने उसे गले लगा कर हिम्मत दी लेकिन जब नेहा की भाभी को पता चला कि वो हमेशा के लिए आई है तो उसने कह दिया वो उसका खर्चा नहीं उठा पाएंगे भाई ने भी हां मै हां मिलाई अब नेहा बिल्कुल टूट गई मां भी क्या बोलती वो खुद भाई के सहारे थी । जिंदगी कैसी कैसी परीक्षा लेती है नेहा रोए जा रही थी तभी उसे सुनाई दिया उसकी भाभी बेटी से बोल रही थी जो (दूध मांग रही रही थी )दूध मुफ्त का नहीं आता रोटी खा ले
ये सुनते ही नेहा का आत्म सम्मान जाग उठा वो बोली भाभी में असहाय नहीं हूं मुझे तो अपनों का सहारा चाहिए था पर कुछ दिन भी आप लोग साथ नहीं दे पाए
में आज ही यहां से चली जाऊंगी और नेहा घर से निकल गई थोड़ी बहुत बचत थी उस से एक कमरा किराए पर और जरूरत का सामान लिया और नौकरी ढूंढने लगी पर नौकरी मिलना आसान नहीं था जब तक बच्चों को घर घर जा कर ट्यूशन पढ़ाने लगी ।जल्दी ही नेहा को नौकरी मिल गई और उसकी जिंदगी पटरी पर आ गई ।
दोस्तों ,असहाय कोई नहीं होता कई बार परिस्थिति ऐसी होती है कि हम खुद को असहाय समझ लेते है। लेकिन जब जिंदगी परीक्षा लेती है तब हमसे हर तरह के परिश्रम करा लेती है ।और होना भी चाहिए क्योंकि आत्मसम्मान से बढ़ कर कुछ नहीं होता।
स्वरचित
अंजना ठाकुर।
असहाय नहीं हूं में ।।