कहते है कि जब तक बुलावा नहीं आता, माता के दर्शन नहीं होते. मुझे इस पर पूरा विश्वास नहीं था, ऐसा नहीं कि मैं नास्तिक हूँ, पर भक्त भी नहीं था, बस सब भगवान को मानता हूँ. फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मुझे विश्वास हो गया कि बुलावा आता है. मैं विस्तार से बताना चाहता हूँ….
मेरा जन्म और हाई स्कूल तक पढ़ाई हरिद्वार डिस्टिक मैं हुई. फिर 6 साल तक भोपाल मैं रहकर आगे की पढ़ाई की. फिर लगभग 5 साल तक नौकरी भी एम.पी. में की. फिर तबादला हो गया बिलासपुर डिस्टिक, हिमाचल प्रदेश. एक साल बाद मेरे ही शहर की लड़की से शादी और फिर शादी के बाद लगभग 4 साल तक बिलासपुर रहा. बिलासपुर से कटरा 12 घंटे कि सीधी बस सेवा थी पर मैं नहीं गया. हमारे दोस्त वीक एन्ड पर रात को बस पकड़ कर सवेरे कटरा, शाम तक दर्शन कर वापस कटरा आकर रात की बस से बिलासपुर आ जाते थे.
फिर मेरा तबादला जमशेदपुर झारखण्ड के पास हो गया. यहाँ भी 4 साल बीत गए, तब तक 2 बच्चे भी हो गये. अब घर से काफ़ी दूर हो गए तो आने जाने का ट्रैन भाड़ा, छुट्टी की समस्या, लगभग 36 घंटे का एक तरफ का सफर. इन सब को देखते हुए मैंने नौकरी के लिए एप्लाई करना शुरू कर दिया. इंटरव्यू आता, फर्स्ट क्लास का भाड़ा मिलता और सपरिवार सलीपर क्लास में आना जाना आराम से कर लेते और इंटरव्यू भी अटेंड कर लेते. ये सिलसिला 4-5 साल तक चला, तब तक वैष्णों देवी जाने का विचार कभी नहीं आया, या शायद बुलावा नहीं आया. फिर एक दिन मेरे साले का पत्र आया की 14 अक्टूबर को दोस्त के साथ दोनों सपरिवार वैष्णों देवी दर्शन के लिए जा रहे है.
मैं साले के दोस्त और उसके परिवार से भी परिचित था. पत्र देखकर मेरी पत्नी का मन डोल गया और परिवार के साथ ट्रिप बनाने की इच्छा जताई और बोला बच्चों को भी अच्छा लगेगा. मैंने बस इतना कहा, की माता रानी ने बुलाना होगा, तो दिल्ली का कोई इंटरव्यू लेटर भेज देगी, बाकी का खर्चा मैं संभाल लूँगा. इसके बाद लगभग पूरा हफ्ता इस विषय पर कोई बात नहीं हुई. तभी एक पत्र आया की दिल्ली ऑफिस मैं 17 अक्टूबर को इंटरव्यू है. सारी डेट्स वैष्णों देवी ट्रिप से मैच कर रही थी.
मैंने भी प्रोग्राम बनाया, छुट्टी और ट्रैन टिकट दोनों आराम से मिल गए. 11 अक्टूबर को हम घर पहुंच कर 14 को सबके साथ वैष्णों देवी के लिए निकल पड़े. 15 की शाम को चढ़ाई शुरू की, 16 को सुबह सुबह दर्शन और 10 बजे तक नीचे आकर आराम किया. शाम को जम्मू मैं रघुनाथ जी मंदिर के दर्शन और रात 10 बजे जम्मू स्टेशन. मैंने दिल्ली की ट्रैन पकड़ी और बाकी सब घर के लिए निकल गए. मैं दिल्ली मैं इंटरव्यू देकर शाम को घर वापस आ गया. 2 दिन घर पर रहकर वापिस जमशेदपुर रवाना हो गये. इस सारे ट्रिप मैं कहीं भी कोई अडचन नहीं आई और ऐसा लगा की सब कुछ पहले से प्लान हो रखा है.
उसके बाद मुझे पूर्ण विश्वास हो गया की माता के दर्शन तभी होते है जब बुलावा आता है.
साथिओं आप की राय मैं इंसान माता के दर्शन करने जाता है या माता दर्शन के लिए बुलाती है, कमैंट्स मैं जरूर बताये.
जय माता दी
लेखक
एम. पी. सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित