मेरी नानी अक्सर कहां करती थी – अपनों से गैर भले मैं सुनती तो सोचती ऐसा कैसे हो सकता है भला गैर अपनों से अच्छे कैसे हो सकते हैं अपनों के साथ हम अपना सुख दुख साझा करते हैं खुशी हो या गम अपने ही घर परिवार के लोगों को बुलाया जाता है वही हमारा साथ देते हैं तो फिर अपनों से गैर भले का क्या मतलब।
बचपन में जब भी मुझे बुखार आता था तो मैं कहती मेरी बुआ को बुला दो मां बुआ को फोन करती और हुआ तुरंत ऑटो में बैठकर आ जाती बुआ के आते ही मेरा बुखार ठीक होने लगता । बुआ दो-चार दिन रहती मां उनका खूब आदर सत्कार करती उनका मनपसंद खाना बनाती उनके पास बैठकर बातें करती
और वापस जाते हुए उन्हें फल मिठाई और कुछ पैसे देकर विदा करती । मुझे तो यही लगता था कि जरूरत के समय अपने ही काम आते है। मेरी मौसी व अन्य रिश्तेदार भी हमारे घर आते रहते थे। गांव से कोई आता तो वह भी हमारे घर ही ठहरता ।मां सब की आवभगत करती मेरे पापा भी रिश्तेदारों के आने से बहुत खुश होते और उनकी खूब खातिरदारी करते ।
मैं आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी मेरी छोटी बहन अभी केवल 5 वर्ष की थी एक दिन मां के पेट में तेज दर्द हुआ घरेलू नुस्खे काम नहीं आए तो डॉक्टर को दिखाया गया परीक्षण करने पर पता चला कि उनकी पित्त की थैली में पथरी है पथरी का आकार काफी बड़ा हो गया था अतः तुरंत ऑपरेशन करवाने की आवश्यकता थी
पापा ने एक बड़े अस्पताल में डॉक्टर से मिलकर ऑपरेशन का दिन निश्चित कर लिया मां बहुत तकलीफ में थी जल्दबाजी में किसी रिश्तेदार से बात नहीं कर पाए पर उन्हें सूचना दे दी गई थी। इत्तेफाक से ऑपरेशन के दिन सकट चौथ का व्रत था । मां को एक दिन पहले ही अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया था
क्योंकि उनके कुछ टेस्ट इत्यादि होने थे हम दोनों बहनों को पड़ोस के घर में छोड़ना पड़ा क्यों कि अगले दिन व्रत होने के कारण कोई भी रिश्तेदार आकर रुकने को तैयार नहीं था ऑपरेशन सुबह 10:00 बजे था जिस समय मां को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया जा रहा था
पापा वहां अकेले थे उनके दिल में घबराहट थी और आंखों में आंसू पर उन्हें दिलासा देने वाला अपना वहां कोई नहीं था ।तभी पड़ोस वाले वह अंकल जिनके घर हम बच्चों को छोड़ा गया था दौड़ते हुए पहुंचे – माफ करना गुप्ता जी मैं ट्रैफिक में फंस गया था 8:00 बजे का घर से निकला हूं
फिर भी लेट हो गया। पापा उनके कंधे पर सर रखकर रो पड़े । अंकल ने कहा गुप्ता जी आप बिल्कुल चिंता ना करें भाभी जी बिल्कुल ठीक हो जाएंगी मैंने अपने एक डॉक्टर मित्र से बात की थी उसने बताया कि इस ऑपरेशन में कोई रिस्क नहीं है और यह डॉक्टर भी बहुत अनुभवी हैं ।
तभी पापा के एक मित्र अपनी पत्नी सहित आप आ गए उन्होंने भी पापा को बहुत तसल्ली दी । मित्र की पत्नी थरमस में चाय और साथ में सैंडविच बनाकर लाई थी ।आंटी ने पापा को जबरदस्ती चाय पिलाई और सैंडविच खिलाएं क्योंकि पापा ने सुबह से कुछ नहीं खाया था।
वह तीनों तब तक नहीं रहे जब तक मां को सफल ऑपरेशन के बाद आईसीयू में लाया गया। तब शाम के 4 बज चुके थे और रिश्तेदार आने लगे थे । भाई आज सकट चौथ थी ना तो व्रत के चक्कर में सुबह नहीं आ पाई बुआ ने आते ही सफाई दी।
हां भाई साहब व्रत तो करना पड़ता है ना बस अब बरत खोलते ही मैं तो जल्दी से आ गई चाची बोली। मामा जी ने तो फोन पर ही हाल-चाल पूछ कर इति श्री कर ली। मौसी अगले दिन पहुंची लेकिन वह मां के घर लौटने तक दो दिन हमारे पास रुक गई और तीसरे ही दिन मां के घर आते ही बच्चों की परीक्षाएं पास है ऐसा कहकर चली गई।
डॉक्टर ने मां को 15 दिन आराम करने को बोला था। घर में हम दो बच्चे थे और पापा। वह रिश्तेदार जो आकर कई कई दिन रुकते थे मौज मस्ती करते थे मनपसंद खाने बनवा कर खाते थे अब फोन भी नहीं कर रहे थे कि कहीं हम मदद करने को बुला ना ले।
पापा को रसोई का कुछ काम नहीं आता था और हम अभी छोटे थे ऐसे में पड़ोस वाली आंटी और पापा के मित्र और उनकी पत्नी ने हमारा बहुत साथ दिया। सीमा आंटी रोज दोपहर को खाना बना कर लाती मां का हाल-चाल पूछती और उनके पास बैठती। सुबह के समय पापा दूध ब्रेड वगैरा से नाश्ता तैयार कर देते शाम का खाना 15 दिन तक पापा के दोस्त के घर से बनकर आया उन दिनों हर रोज मुझे अपनी नानी की वह बात याद आती रही – यअपनों से गैर भले।
नीलम गुप्ता