संजय और सुधा दिल्ली मै रहते थे. दोनों पढे लिखे थे और नौकरी करते थे, संजय सी.ए. था और सुधा टीचर. बेटा होने के बाद सुधा ने नौकरी छोड़ दी. सुधा बेटी चाहती थी, पर संतोष कर लिया की दूसरी संतान बेटी होंगी. पर संजय दूसरा बच्चा नहीं चाहता था. दो दो बच्चों से जिम्मेदारी और खर्चे दोनों बढ़ जायेगे.
संजय बोला, मन की शांति के लिए किसी गरीब की लड़की को पढ़ा देना. सुधा ने शाम को घर मैं बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया, लड़को से पैसे लेती और लड़कियो को फ्री मे पढ़ाती. इससे कुछ पैसे भी मिल जाते और मन को तसल्ली.
एक दिन सुधा की कामवाली बाई अपनी बेटी कान्ता को भी साथ लाई और बोली, मैडम जी, स्कुल की छुट्टीयाँ है, ये मेरा हाथ बटाएगी. दो तीन दिन तक दोनों साथ मे आये फिर एक दिन कान्ता अकेले आई. सुधा ने पूछा तो कान्ता बोली, माँ की तबीयत ठीक नहीं है. जब पूरा हफ्ता बीत गया और कान्ता अकेले आती रही तो सुधा को कुछ शक हुआ,
उसने कहा, कान्ता कल अपनी माँ को साथ लेकर आना, अगर वो नहीं आ सकती तो तुम भी मत आना. कान्ता घबरा कर बोली, क्या गलती हो गईं मैडम जी? जितना कहा, उतना करो, बोलकर सुधा अपना काम करने लगी. अगले दिन कान्ता अपनी माँ के साथ आई और आते ही पूछा,
मैडम जी, कान्ता से कोई गलती हो गईं क्या ? सुधा ने पूछा, तुम तो अच्छी भली लग रही हो, फिर काम पर कान्ता को क्यों भेजा? बाई बोली, मैडम जी, ये भी थोड़ा काम सीख लेगी तो अच्छा रहेगा. सुधा ने पूछा , स्कूल की छुट्टियां तो खत्म हो गईं है, इसे तो स्कूल जाना चाहिए.
सच बोलो, क्या बात है. बाई भावुक होकर बोली, मैडम जी , स्कूल की फीस जमा नहीं कर पाये, रोज स्कूल वाले ताना मारते थे, पैसे नहीं है तो स्कूल मत आना, इसलिए पढ़ाई छोड़ दी. सुधा लगभग चिल्लाते हुए बोली, बाई, तू पागल है क्या? एक बार तो मुझे बताया होता,
कान्ता से पूछा की वो क्या चाहती है? बोल कान्ता, तुझे क्या पसंद है, पढ़ाई या काम ? कान्ता बोली, मैडम जी, मुझे पढ़ना है. बाई सुना तुमने, कल से कान्ता स्कूल जाएगी, उसकी जो भी फीस है, मुझसे लेलेना. कान्ता जहाँ तक पढ़ना चाहेगी, मैं उसे पढ़ाउंगी, बस एक शर्त है
की ये किसी के घर में काम नहीं करेगी, सुना तुमने? बाई कुछ बोलना चाहती थी, पर सुधा ने चुप करा दिया. अगले दिन कान्ता स्कूल गई और प्रिंसिपल की सुधा मैडम से फोन पर बात कराई और सुधा ने पूरे साल की फीस ऑनलाइन जमा करवा दी.
कान्ता अब रोज स्कूल जाती और शाम को सुधा मैडम से पढ़ने आती. कान्ता पड़ने में तेज थी, समय बीतता गया और देखते ही देखते दसवीं बोर्ड में फर्स्ट डिवीज़न से पास हुई. रिजल्ट वाले दिन कान्ता अपने माँ पिताजी के साथ मिठाई लेकर सुधा मैडम के घर आई. कान्ता के पिताजी ने बताया,
की हमारे पूरे खानदान की पहली संतान है जिसने दसवीं पास की है, और ये सब आपकी मेहरबानी से हुआ. सुधा बोली, ये सब कान्ता की मेहनत का नतीजा है. कान्ता ज़ब इंटर मीडिएट में थी तो संजय का मुंबई ट्रांसफर हो गया. ट्रांसफर जाने से पहले संजय और सुधा ने कान्ता से वादा लिया
की वो हर हाल में अपनी पढ़ाई जारी रखेगी, पेसो के आभाव में पढ़ाई रुकनी नहीं चाहिए, उसके लिए हम है, किसी भी प्रकार की कोई समस्या हो, हमें फोन कर देना. कुछ दिनों बाद कान्ता ने सुधा को फोन किया और बताया कि वो इंटर मीडिएट में फर्स्ट क्लास से पास हो गई और इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया.
संजय ने कान्ता का कॉलेज मै एडमिशन करवा दिया. कान्ता कि मेहनत और संजय- सुधा की आर्थिक मदद ने कान्ता को इंजीनियर बनने में देर नहीं लगी. कॉलेज से ही पुणे मे नौकरी मिल गई. कान्ता ने अपने माता पिता को भी पुणे अपने पास बुला लिया. एक दिन माँ पिता जी को लेकर कान्ता मुंबई आ गई और संजय सुधा से मिलवा दिया.
सभी एकदूसरे से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए. संजय का बेटा सुरेश पड़ने मे बहुत तेज था और काफ़ी बड़ा हो गया था. कुछ समय बाद उसका एड्मिशन पुणे के जाने माने कॉलेज में हो गया.
पुणे में एडमिशन करवाने के लिए संजय और सुधा भी साथ में गए, कान्ता और उसके माँ पिता जी की ज़िद के चलते उनके घर पर ही रुके. 2 कमरों का छोटा सा घर मगर तरीके से सजाया हुआ, देखकर दोनों बहुत ख़ुश हुए. कान्ता ने सुधा जी कि खूब आवभगत की, और संजय जी को रिक्वेस्ट की,
कि सुरेश उनके घर पर रहकर ही पढ़ाई करे और उसकी पढ़ाई का खर्चा भी वो वहन करेगी. संजय बोला, कान्ता, अगर तुम मदद करना ही चाहती हो तो किसी मजबूर, लाचार, जरूरत मंद की करना जिससे उसका भविष्य बन जाये. मदद करते हुए ध्यान रखना की कभी किसी को पैसे मत देना,
लोग उसका गलत इस्तेमाल करते है. संजय ने कॉलेज में कान्ता को सुरेश का लोकल गारडियन बनाया और रिश्ता बताया, बहन. कान्ता बचपन से ही संजय -सुधा को दिल से माँ बाप कि तरह मानती थी पर आज खुल के माँ पिता जी पुकार के गले लग कर रोने लगी.
कान्ता को रोता देख सबकी आंखे भर आई. सुधा को देख कर संजय बोला, तुम बेटी चाहती थी न, लो आज तुम्हारी ये इच्छा भी पूरी हो गई. तब कान्ता के पिता जी बोले, कान्ता का कन्यादान भी
आप दोनों को ही करना है, आपने कान्ता को जन्म नहीं दिया तो क्या हुआ, पर बेटी से कम नहीं समझा और उसकी जिंदगी सवार दी और साथ में हमारा बुढ़ापा भी. सुधा ने भी हाँ मैं सिर हिला दिया और कान्ता को गले लगा लिया.
कान्ता का कन्यादान संजय सुधा ने किया और डोली की बिदाई अपने मुंबई वाले घर से की.
साथिओं, जब हम किसी एक लड़की को शिक्षित करते है तो वास्तव मे हम उसके पूरे कुटुंब को शिक्षित करते है, ये तो बस उसकी शुरुवात होती है.
किसी हो शिक्षित करना बहुत ही नेक कार्य है.
लेखक
एम. पी. सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित