अपनों से बढ़ कर गैर है – रेखा जैन 

“रश्मि शादी के सारे इंतजाम, सारी तैयारियां तो हो गई है लेखन फिर भी दिल को चिंता लगी रहती है कि शादी के 4 दिन के कार्यक्रम में तुम और मैं तो बहुत व्यस्त रहेंगे तो इस दौरान सभी मेहमानों का ध्यान रखना और बाकी के सारे ऊपर के काम कौन देखेगा!” सुरेंद्र जी ने सोफे पर बैठते हुए कहा।  उनके चेहरे पर थकान साफ़ साफ प्रतिलक्षित हो रही थी।

दरअसल 1 महीने बाद रश्मि और सुरेन्द्र जी के इकलौते बेटे की शादी थी।

“अजी!! आप बिल्कुल चिंता मत करिए मेरे दोनों भाई सब कुछ संभाल लेंगे। आप तो चिंतामुक्त हो जाइए, मेरे भाइयों के होते हुए आपको काम की चिंता करने की जरूरत नहीं है!” रश्मि ने बड़े फक्र के साथ कहा।

बारात एक छोटे शहर जाने वाली थी। जहां उन्होंने बारात के रुकने का इंतजाम होटल में किया था। 

बारात जाने में 15 दिन बचे थे। एक शाम को रश्मि के बड़े भाई का फोन रश्मि के पास आया।

“रश्मि तुमने मेरा, तुम्हारी भाभी और दोनों बच्चों का एक रूम में ही रुकने का इंतजाम किया है!”

“हां भैया, वहां एक एक्स्ट्रा बेड लगवा देंगे जिससे आप चारों के सोने का इंतजाम हो जाएगा।”

“लेकिन हम चारों एक रूम में नहीं रह सकते। बच्चों का एक रूम अलग होना चाहिए!” रश्मि का भाई आदेशात्मक स्वर में बोला।

“लेकिन भाई वो एक छोटा सा शहर है जहां मुश्किल से 5 होटल है।  बड़ी मुश्किल से 25 कमरे मिले है और बाकी सारे मेहमानों के भी रुकने का इंतजाम करना है।  दो दिन की तो बात है, थोड़ा एडजस्ट कर लो!” रश्मि ने मंद स्वर में जवाब दिया।

“लेकिन आदित्य लंदन से सिर्फ शादी के लिए आ रहा है, वो ऐसे कैसे एक ही कमरे में भीड़भाड़ में रहेगा।  ठीक है मैं आदित्य को शादी में आने से मना कर देता हूं!” आदित्य उसके बड़े भाई का बेटा है जो लंदन रहता है।

“ठीक है भैया मैं इंतजाम करती हूं दो कमरों का।” रश्मि ने थके हुए अंदाज में जवाब दिया और फोन काट दिया।

रश्मि और सुरेन्द्र जी ने बहुत एडजस्ट करके रश्मि के बड़े भाई के परिवार के लिए दो कमरों का इंतजाम किया।

“भैया तो शादी के कामों में क्या मदद करेंगे? जो दो दिन रुकने में एडजस्ट नहीं कर सकते, वो क्या शादी के इंतजाम संभालेंगे? मैंने सुरेन्द्र जी को बड़े विश्वास के साथ कह तो दिया है कि मेरे दोनों भाई संभाल लेंगे लेकिन लगता है मेरी बात झूठी निकलेगी!” सोचते हुए रश्मि ने गहरी सांस ली।

उसी शाम को सुरेन्द्र जी का एक मित्र योगेश, जो उनके ही ऑफिस में उनका जूनियर है अपनी बीवी के साथ आया।

“सर, शादी ने कुछ भी काम हो तो आप बेझिझक हमें बता दीजियेगा।  आप शादी के इंतजाम की बिल्कुल चिंता मत करिए, हम दोनों सब कुछ संभाल लेंगे।” योगेश ने आते ही कहा। उसकी पत्नी बिना ने भी अपने पति की हां में हां मिलाई और रश्मि को बेफिक्र रहने को कह दिया।

रश्मि का एक छोटा भाई भी है जो पूरी शादी में मेहमानों की तरह ही रहा।  जिसे बहन के बेटे की शादी के कामों से कोई मतलब नहीं था। वो अपने बीवी बच्चों के साथ सारे कार्यक्रमों में खाने पीने और मजे करने में व्यस्त रहा।

रश्मि की दोनों ननद और उनके बच्चे तो स्पेशल मेहमान थे जो एक ग्लास पानी भी खुद ले कर नहीं पी सकते थे।

शादी के व्यस्त समारोह में योगेश और उनकी पत्नी ने बाहर से आए सभी मेहमानों को संभाला।  शादी के रस्मों में जब जब जिस वस्तु की जरूरत पड़ी थी

उसे बेग में से निकाल कर रश्मि और सुरेन्द्र जी को देना, हर मेहमान को पर्सनली जा कर पूछना की किसी चीज की जरूरत तो नहीं है, सब तरह से योगेश और उनकी पत्नी ने  पूरा कार्यभाल संभाल लिया।  सारे मेहमानों के मुंह पर योगेश और उसकी बीवी बीना की ही प्रशंसा थी। वो दोनों रश्मि और सुरेन्द्र जी के साथ साए की तरह लगे रहे थे।

शादी बहुत अच्छे से निपट गई थी। सब मेहमान खुश हो कर अपने घर चले गए थे।

रश्मि और सुरेन्द्र जी दोनों योगेश और बीना को बहुत बहुत धन्यवाद कहते रहे। 

कुछ दिन बाद रश्मि के बड़े भाई का फोन रश्मि के पास आया और बोला,

“रश्मि शादी बहुत अच्छे से हो गई। तुम लोगों ने सारे इंतजाम बहुत अच्छे किए थे, किसी को कोई तकलीफ नहीं हुई।”

इस बार रश्मि ने तंज कसते हुए कहा,

“हां लेकिन इस अवसर पर मुझे भी अपने और गैरों की परख हो गई।”

“क्या मतलब?”

“मतलब कि तुम तो मेरे भाई यानि घर के लोग हो तो तुमको तो मुझे ये कहना चाहिए था कि रश्मि हम घर वाले तो कैसे भी एडजस्ट कर लेंगे और तुम लोग बाहर के मेहमानों की व्यवस्था कर लो लेकिन तुम घर वाले ही मेरे यहां पहले बाहर वाले बन गए और अपने रुकने की अच्छी व्यवस्था करवा ली। 

मेरा बेटा तुम्हारा भी तो बेटे जैसा है लेकिन तुम लोगों ने उसकी शादी में मेरी कोई मदद नहीं की बल्कि सिर्फ अपना ही आराम देखा और योगेश,,उससे तो हमारी कोई रिश्तेदारी नहीं है,

वो तो हमारे लिए गैर है लेकिन पूरी शादी में उसने इस तरह से काम किया जैसे उसके घर की शादी हो। मैने बड़े विश्वास के साथ तुम्हारे जीजाजी को कहा था कि मेरे दोनों भाई सब काम संभाल लेंगे लेकिन तुमने मेरा विश्वास ही तोड़ दिया। अगर योगेश और उसकी पत्नी नहीं होते तो पता नहीं कैसे शादी निपटती?? 

घर वाले तो गैर हो गए और गैर अपनों से बढ़ कर हो गए।” कह कर रश्मि ने फोन रख दिया।

वो जानती थी कि इस तरह के जवाब के बाद उसके भाई के साथ रिश्ते में खटास आ जाएगी लेकिन वो ये सब कह कर खुद को बहुत हल्का महसूस कर रही थी क्योंकि वो ये भी जानती थी कि उसके भाई ने भी तो उसे अपना नहीं माना था इसीलिए तो गैरों जैसा व्यवहार किया था।

रेखा जैन 

#अपनों से गैर भले

error: Content is protected !!