मंशा जी भइया जा मम्मी के लिए पतली पतली सी खिचड़ी बना था , मंशा सुन ही नहीं रही थी वो तो बस फोन में ही लगी थी । मंशा तू सुन रही है कि नहीं भाई निखिल ने जोर से कहा। हां भईया सुन रही हूं । हां मैं इस घर की बेटी हूं और मैं ससुराल से इस लिए घर नहीं आई हूं कि मैं अब मायके में भी काम करूं।
ये काम तो बहू का होता है ,सास ससुर की सेवा करना। भाभी से कहो बनाने के लिए।तो क्या ये तेरी मां नहीं है क्या , यदि मम्मी के लिए थोड़ी सी खिचड़ी बना दोगी तो तुम्हारी बेइज्जती नहीं हो जाएगी । वैसे तुम्हें बता दूं कि मै और नैना मम्मी की अच्छे से देखभाल करते हैं ।
आज नैना की थोड़ी सी तबियत ठीक नहीं है हाथ पैर में दर्द हो रहा है तो मैंने ही उसको दवा देकर आराम करने को कहा है। तभी मैंने तुझसे कह दिया खिचड़ी बनाने को। लेकिन तूझे तो जरा अहसास नही है मम्मी का , मायके में बस ऐश करने को आती हो।बस महारानी की तरह बैठी रहो
बस इस घर में जितनी जिम्मेदारी एक बहू की होती है उतनी ही बेटी की भी बनती है समझीं। दोनों भाई बहनों की नोक झोंक सुनकर मालती जी
इशारे से दोनों को चुप कराने लगी। क्योंकि वो बोल नहीं पा रही थी ।15 दिन पहले उनको लकवा का अटैक आ गया था ।और वो न बोलने और न चलने फिरने की स्थिति से लाचार पड़ी हुई थी। मोहताज हो गई थी अपने दैनिक कार्यों के लिए भी।
मालती और अखिलेश जी के परिवार में एक बेटा निखिल और बेटी मंशा थी। अखिलेश जी बैंक मैनेजर के पद से रिटायर हुए थे।
मालती जी एक गृहिणी थी। निखिल साफ्टवेयर इंजीनियर था। निखिल की शादी एक साल पहले नैना से हुई थी । नैना बहुत ही सुशील और समझदार बहू थी । मंशा की भी शादी अभी कुछ दिन पहले हुई है। बेटी मंशा मम्मी पापा और भाई की लाडली थी
जिससे वे थोड़ी जिद्दी हो गई थी। किसी की बात नहीं सुनती थी सब अपने मन का करतीं थीं। मंशा जबतक छोटी थी तब तक तो सब ठीक था ,
लेकिन जब वो बड़ी होने लगी तो उसकी इन आदतों से मालती जी परेशान होने लगी कि यदि मंशा का व्यवहार ऐसा ही रहा तो शादी के बाद वो ससुराल में कैसे ताल मेल बिठा पाएगी । मालती जी अब उसको हर समय समझाने की कोशिश करती।
अब वो समय आ चुका था जब मंशा की भी शादी हो गई । लेकिन मंशा ससुराल में कुछ दिनों तक तो ठीक रही लेकिन अब सास या ननद संध्या कुछ कह देती तो मुंह फुलाकर बैठ जाती ।
पहले तो सास ने मंशा की हरकतों को नजरंदाज किया लेकिन देखा कि वो हर बात में तुनक जाती चाहे वो बात उसके अच्छे के लिए ही क्यों न कहीं गई हो तो वो परेशान हो गई कि ऐसे कैसे चलेगा । मंशा को तो कुछ भी कहो वो बुरा मान जाती है। मंशा अपनी मां मालती जी को फोन करके ससुराल की शिकायत करती तो मालती जी समझा बुझाकर मंशा को शांत करती ।
ऐसे ही एक दिन मंशा छोटी सी टी-शर्ट और पायजामा पहनकर कमरे से बाहर आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ कर चाय पीने लगी , वहीं पर उसके ससुर जी भी बैठे थे। मंशा के इस पहनावे को देखकर सासू मां को अच्छा नहीं लगा। ससुर जी भी उठकर वहां से चले गए
और पत्नी से बोले कि बहू से कहों ढंग से कपड़े पहने घर में अचानक से कोई आ जाए तो वो क्या सोचेगा कि कैसे रहती है बहू। मंशा की सासू मां किरण जी ने मंशा को टोका।बहू कमरे से बाहर जरा ढंग के कपड़े पहन कर आया करो। हमारे यहां ऐसे कपड़े नहीं पहने जाते ।
तुमने ननद संध्या को भी देखा होगा ऐसे कपड़े नहीं पहनती। फिर क्या था मंशा भड़क गई, क्या अब मैं यहां अपनी मर्जी से कपड़े भी नहीं पहन सकती क्या। यहां तो हर चीज पर पाबंदी है तो मैं यहां रह ही क्यों रही हूं।और मंशा ने कुछ कपड़े बैग में डाले और मायके आ गई।
जब मालती जी ने अचानक से मंशा को देखा तो परेशान हो गई, हैरान नहीं हुई क्योंकि मालती जी मंशा की आदतों से वाकिफ थी । क्यों आ गई इस तरह से ससुराल से तुम मंशा, मम्मी वहां हर बात की रोक टोक होती है ।अब क्या मैं अपनी मर्जी से कपड़े भी नहीं पहन सकती क्या। मालती जी ने समझाया देखो बेटा सबके घर के अपने अपने तौर तरीके होते हैं । पहले तुम एक बेटी थी लेकिन अब बहू बन गई हो ,
अब तुम्हें ससुराल के ही तौर तरीके अपनाने पड़ेंगे।पर मम्मी ,पर वर कुछ नहीं तुम्हारा इस तरह से घर छोड़कर आना गलत है।चलो थोड़ी देर में मैं और तुम्हारे पापा तुम्हारे घर छोड़कर आते हैं। लेकिन मम्मी , लेकिन क्या। बेटा मैं तुमको पहले ही समझाती थी
कि देख मायके और ससुराल में फर्क होता है । मायके में आप चाहें जैसे रहो लेकिन ससुराल में हर वक्त अपनी मर्जी नहीं चलती समझीं। बेटा अपनी आदतें बदलों, थोड़ा अरजेसट करना सीखो नहीं तो ऐसे ही परेशान होती रहोगी और अपना घर बर्बाद करोगी।और तुम्हारा इस तरह से ससुराल छोड़कर आना ठीक नहीं है।कब तक तुम्हारे सास ससुर बर्दाश्त करेंगे तुम्हारी नादानियां।
मालती और अखिलेश जी मंशा को लेकर उसके ससुराल छोड़ने गए और मंशा की सास किरण जी से मंशा की गलतियों की माफी मांगी।और आगे ऐसा कुछ न करने को समझाया मंशा को । मंशा को ससुराल छोड़कर दोनों पति-पत्नी वापस आ गए।
मंशा की नन्द संध्या की शादी थी । संध्या बहुत ही समझदार और सहयोग करने वाली सुसंस्कारी बच्ची थी ।घर के कामों में सहयोग करना और मम्मी पापा का अच्छे से ख्याल भी रखती थी ।घर में खूब चहल-पहल थी । शादी सम्पन्न हुई और संध्या अपने ससुराल चली गई। संध्या अपने मम्मी पापा के नाश्ता , खाना दवाएं सबका खूब ख्याल रखती थी। संध्या के जाने के बाद किरण जी किसी से फोन पर कहा रही थी , संध्या थी तो मुझे कोई चिंता नहीं थी हम दोनों का खूब ख्याल रखती थी।अब तो कोई ध्यान रखने वाला नहीं है ।फोन पर दूसरी तरफ से आवाज आई अरे बहू तो है ,बहू अरे बहू क्या ध्यान रखेगी जो एक बेटी रखती है ।बहू तो ऐसी नकचढ़ी है कि बात बात में मुंह फुलाकर बैठ जाती है। कुछ कहना ही मुश्किल है इससे तो उससे कुछ कहो नहीं अपने आप कर लो तो ही अच्छा है।
संध्या अपने ससुराल में बहुत खुश थी उसने अपने व्यवहारसे ससुराल मैं सबका दिल जीत लिया था। उसकी सास बहुत तारीफ करती थी ।ससुराल से आती तो मायके में भी पहले जैसा काम में हाथ बंटाती थी। और मनसा अब तक भी ससुराल में गैरजम्मेदारी से काम करती थी। बात-बात में तुनक कर मायके आकर बैठ जाती थी और वहां भी कोई काम में हाथ नहीं लगती थी, बोलती थी कि मैं क्यों करूं मैं ससुराल में भी करूं और मायके में भी बस महारानी की तरह बैठी रहती थी।समय बीतता रहा और मनसा के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया।एक दिन मंशा की सास सिढियो से फिसल गई और घुटने की हड्डी टूट गई अब तो मंशा को और भी परेशानी हो गई । अभी तक तो वो घर की ही जिम्मेदारी ढंग से नहीं उठा पा रही थी अब ये क्या मुसीबत आ गई।वो झुंझला गई और अपनी मां मालती जी से शिकायत करने लगी फोन पर मालती जी ने समझाया कि देखो बेटा तुम उस घर की बहू हो करना तो तुम्हें ही पड़ेगा । लेकिन मंशा इस परिस्थिति में अपने को ढाल नहीं पा रही थी।और वो बात बात में झुंझला जाती।और अपने पति अरूण से दिन भर शिकायत करती कि मुझसे नहीं होगा ।आप एक देखभाल करने के लिए मांजी के पास नौकर रख दें या अपनी बहन को बुला ले ।अरूण बोला कैसी बात करती हो मंशा संध्या की अब शादी हो चुकी है ससुराल में उसकी जिम्मेदारी है न कि मायके की यहां की जिम्मेदारी उठाना तुम्हारा काम है । मुझसे नहीं होगा ये सब लेकिन करना तो तुम्हें ही पड़ेगा चाहे जैसे करो। हंस कर या रोकर।
उधर संध्या की सास को जब पता लगा कि संध्या की मम्मी का एक्सीडेंट हो गया है तो संध्या से कहा जाओ संध्या कुछ दिन वहां रहकर मां की देखभाल कर लो । क्यों कि मुझे मालूम है मां के एक्सीडेंट का सुनकर तुम्हारा यहां मन नहीं लग रहा होगा। यहां बहू मैं संभाल लूंगी तुम मां के पास चली जाओ। संध्या आ गई और मां का सारा काम संध्या ने संभाल लिया और जब समय मिलता घर के कामों में भी हित बंटा देती। मंशा संध्या के इस तरह से मां की देखभाल करने से मन ही मन अपने में बहुत छोटा पन महसूस करने लगी कि एक बेटी मायके आकर मां कितनी सेवा कर रही है ।ये काम तो मेरा है लेकिन मैं अपनी जिम्मेदारी से भाग रही हूं ।मन ही मन मंशा बहुत ग्लानि महसूस करने लगी ।और अपने को बदलने की कोशिश करूंगी ऐसा सोचने लगी।मैं तो मायके में भी महारानी की तरह बैठी रहती हूं एक काम नहीं करती । अभी कुछ दिन पहले ही मां को ब्रेन हेमरेज हुआ था तो भाई के खिचड़ी बनाने के नाम पर मैंने कितनी बदतमीजी की थी ।मां के लिए थोड़ी सी खिचड़ी भी नहीं बना पा रही थी मैं। बहुत ग्लानि महसूस कर रही थी मंशा।
सास के कुछ ठीक होने पर मंशा मायके आई थी तो उठकर गई और सबके लिए चाय बना लाई ये सब देखकर मालती और नैना हैरान थे कि आज ये क्या हो गया है मंशा ने चाय बना ली। मालती जी बोल पड़ी आज तुम्हें क्या हो गया चाय बना लाई नहीं तो तू तो यहां आकर हिलती नहीं।तू तो मेरे लिए उस दिन निखिल के कहने पर भी थोड़ी सी खिचड़ी भी नही बना पा रही थी।
अब मम्मी , भाभी मुझे माफ कर दो । मेरी ननद संध्या ने मेरी आंखें खोल दी वो भी तो ससुराल से आकर मायके में कितना करती है । मम्मी जी के एक्सीडेंट के बाद मम्मी की कितनी देखभाल की मुझसे तो कुछ हो ही नहीं रहा था बहुत गुस्सा आ रहा था।तो मैंने सोचा मैं क्यों नहीं कर सकती आखिर संध्या की तरह मैं भी तो इस घर की बेटी हूं। मुझे भी तो अपना फर्ज निभाना आना चाहिए। आखिर ये मेरा भी तो घर था और है ।घर में मान सम्मान तो तभी मिलता है न जब हम भी दूसरों को मान सम्मान दे। उसके लिए मुझे अपने आपको बदलना पड़ेगा मम्मी।और अपने बेटी होने का और बहू होने का फर्ज भी अच्छे से निभाना पड़ेगा ।
मम्मी आप कितनी बार मुझे समझाया पर मैं न बदली , लेकिन आज मेरी ननद संध्या के व्यवहार ने मेरे अंदर बदलाव लाने में मेरी मदद की है ।अब मम्मी आपको कोई शिकायत नहीं होने दूंगी ।मैं भी तो बेटी हूं न ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
20 दिसंबर