“गैर ” लेकिन अपना सा – गीता वाधवानी

 श्यामू ने अपनी पत्नी राधा को आवाज लगाते हुए कहा-” राधा, जल्दी से खाना लगा दो मुझे काम से बाहर जाना है। लोग सच ही कहते हैं, गरीब की किस्मत भी गरीब होती है। ” 

 राधा-” ऐसा क्यों कह रहे हो रानी के बापू,? ” 

 श्यामू -” और क्या कहूं राधा, तुम अच्छी तो रही हो, कुछ दिनों बाद रानी का विवाह है और फसल अच्छी नहीं हुई इस बार, सोचा था बढ़िया फसल होगी तो धूमधाम से विवाह करेंगे, अब तो समझ नहीं आ रहा क्या होगा कैसे होगा, अब जाऊंगा साहूकार के पास कुछ पैसे उधार लेने, तुम खाना लगा दो। ” 

 राधा-” तुम उसके पास मत जाओ। उसकी तो आंख है हमारे खेत पर, खेत गिरवी रखोगे तो, छुड़वाना मुश्किल हो जाएगा। ” 

 श्यामू -” तो क्या करूं,तू ही बता, और कोई रास्ता है? ” 

 राधा चुपचाप अंदर चली गई और हाथ में एक लाल रुमाल लेकर आई। रुमाल खोलकर उसने श्यामू के सामने रख दिया। 

 श्यामू -” यह जेवर क्यों निकाल कर लाई है? ” 

 राधा-” खेत तो हमारी मां है, हमारी रोजी-रोटी है, खेत गिरवी रखने से तो अच्छा है जेवर बेच दो। ” 

 श्यामू -” लेकिन शादी में कुछ गहने रानी को देने भी तो पड़ेंगे, सोना इतना महंगा है हम तो खरीद नहीं पाएंगे। ” 

 राधा-” दो चूड़ियां और  दामाद के लिए अंगूठी मैंने अलग निकाल कर रख दी है और खेत अपने पास होगा तो हम बाद में भी गहने बनवा सकते हैं। रानी के विवाह हो जाने के बाद एक सोनू ही तो है हमारा। वह तो अभी बहुत छोटा है। ” 

 श्यामू सोच में पड़ गया और फिर उसे लगा कि राधा ठीक कह रही है। खाना खाने के बाद वह कुछ चांदी के और कुछ सोने के जेवर लेकर बेचने के लिए शहर चला गया। हालांकि जेवर कुछ ज्यादा नहीं थे लेकिन फिर भी सोना महंगा होने के कारण उसे अच्छी खासी रकम मिलने की उम्मीद थी। 

 श्यामू अपनी साइकिल से चल पड़ा। एक थैला सब्जी का बनाकर उसमें ऊपर और नीचे सब्जियां रख दी और बीच में जेवर छुपा कर रख दिए। वह समय पर शहर पहुंच गया था और जेवर बेचने के बाद उसे सही दाम भी मिल गया था। 

 वापसी में उसने अखबार में लपेटे हुए नोटों की गड्डी उसी तरह थैले में रख दी। रास्ते में उसे एक भिखारी मिला और सब्जी से भरा थैला देखकर उससे कहने लगा कि” घर पर बच्चों के खाने के लिए कुछ नहीं है इसमें से कुछ सब्जी दे दो। भगवान आपका भला करेगा।” 

 श्यामू ने सोचा कि सारी सब्जियां इसे ही दे देता हूं। श्यामू ने अखबार निकाल कर जेब में रख ली और पूरा थैला भिखारी को दे दिया। भिखारी खुश होता हुआ दुआएं देने लगा और कुछ दूर पर बनी अपनी झोपड़ी में चला गया। 

 श्यामू घर पहुंच कर, जब में से अखबार निकालता हुआ राधा से बोला,इसमें पैसे हैं बक्से में संभाल कर रख ले। राधा ने देखा कि अखबार में कोई पैसे नहीं थे। उसने पूछा -” कहां है पैसे? ” 

 श्यामू ने उसके हाथ से अखबार लेकर देखा तो वह खाली थी। वह अपनी जेब टटोलने लगा। जेब में भी रुपए नहीं थे। उसका चेहरा पीला पड़ गया और वह अपने सिर पर हाथ मार कर रोने लगा। राधा ने पूछा-” क्या हुआ,रो क्यों रहे हो? रास्ते में कहीं रुके थे क्या, और आपका थैला कहां है? ” 

 तब श्यामू को ध्यान आया कि हां रास्ते में एक भिखारी मिला था। या तो रुपए थैली में ही रह गए या कहीं पर गिर गए हैं। अब तो वह भिखारी वापस देगा भी नहीं। 

 राधा -” चलिए हम दोनों साथ चलते हैं और रास्ते में देखते हुए चलेंगे। क्या पता कहीं गिर गए हो? “

 राधा और श्यामू, रास्ते भर रुपए ढूंढते हुए भिखारी के बैठने के स्थान तक पहुंचे। दोनों बहुत परेशान दिख रहे थे। आंखों में आंसू भरे थे। 

 तभी भिखारी वहां आया और बोला-” अरे बाबूजी आप, क्या हुआ, बहुत परेशान दिख रहे हैं? ” 

 श्यामू -” जब मैं तुम्हें सब्जी का थैला दिया तो मेरा यहां कुछ कीमती सामान गिर गया था। ” 

 भिखारी-” क्या गिरा था बाबूजी? ” 

 राधा-” भैया, बिटिया की शादी के लिए गहने बेचकर कुछ पैसे जोड़े थे, वही सारे गिर गए। अब न जाने शादी कैसे होगी? ” 

 भिखारी अपनी झोपड़ी में चला गया और जब वह बाहर आया तो उसके  हाथ में नोटों की वही गड्डी थी। 

 उसने कहा-” कहीं यह तो नहीं? “

 श्यामू खुश होता हुआ बोल -” हां हां यही तो है, मैंने अखबार में लपेटी थी, अखबार में से निकलकर शायद यही गिर गई और खालीअखबार को मैंने अपनी जेब में रख। ” 

 भिखारी-” बाबूजी, जब अपनी झोपड़ी में मैं बच्चों को सब्जी का थैला देकर बाहर आया, तो यह पैसे यहां गिरे पड़े थे और आप कहीं नजर नहीं आए। मुझे लगा कि शायद कोई ना कोई ढूंढता हुआ आएगा जरूर। ” 

 श्यामू भिखारी को गले लगाता हुआ बोला-” धन्यवाद भाई, तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद, तुमने गैर होते हुए भी, अपनों से बढ़कर काम किया है, बहुत-बहुत धन्यवाद। ” 

 राधा ने भी उसे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। श्यामू भिखारी को कुछ इनाम देने लगा तो उसने लेने से इनकार कर दिया और कहा कि “आप समझ लीजिए मैंने ले लिया है और इसे मेरी तरफ से बिटिया की शादी का शगुन समझ कर रख लीजिए।” 

 श्यामू और राधा उसका शुक्रिया अदा करते हुए चले गए और जब रानी का विवाह हंसी खुशी हो गया, तब वे उसे भिखारी को भी मिठाई खिलाना नहीं भूले। यही एक गैर था जो उन्हें अपना सा लगने लगा था।

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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