निर्लज्ज – खुशी

सुहासिनी की शादी एक ऐसे परिवार में हुई जिसमें ससुर जी की बड़ी चलती थी और उसका पति भी अपने बाप से डरता था ।घर में किसी की हिम्मत नहीं थी कि वो ससुर रामबाबू के आगे बोल सके सास राधा भी डरी सहमी रहतीं।बेटी लक्ष्मी तो कुछ बोलती ही नहीं थी।

उसकी शादी भी बड़े उमर के लड़के से करवा दी।सुहासिनी बचपन से ही ये देखती आई थी घर में बाप की चलती मां और वह बाप से दबकर रहें और ससुराल में ससुर की हुकूमत।सुहासिनी जीना चाहतीं थी बंधन तोड़ कर उड़ना चाहती थी पर उसके हाथ में कुछ नहीं था वो फड़फड़ा रही थी।पति दब्बू होने के साथ साथ कमजोर भी था जो किसी भी बात के लिए स्टैंड नहीं ले सकता था।

सुहासिनी ने बहुत सहा दो साल फिर एक दिन उसका ससुर रात को लेटा तो सुबह उसे फालिज का अटैक आया और वो बिस्तर पर लेट गया लाश  था।जो सब देख सकता था पर कुछ कह और कर नहीं सकता था।सुहासिनी ने अपने पति से कहा कि मैं भी घर के पास जो फैक्ट्री है उसमें काम करती है मै भी करूंगीं।सास तो क्या बोलती पति बोला बाबू जी से पूछता हूं।सुहासिनी बोली मैने बा सा से पूछ लिया है मै कल से जा रही हूं।

सुहासिनी सुबह बन संवार कर निकल गई आज उसे बड़ा अच्छा लग रहा था उसकी खूबसूरती देख फैक्ट्री का मैनेजर उस पर लट्टू हो गया।अब वो उसे खुश करती पैसा भी कमाती अपनी पसंद का पहनती ओढ़ती सब लोग कहते इसकी आंखों की शर्म मर गई है।ससुर क्या बिस्तर से जा लगा ये तो पूरी निर्लज्ज हो गई है।सुहासिनी अपनी जिंदगी जी रही थी उसकी सास को भी दिख रहा था

उसने उसे बुलाया तू क्या कर रही है।कुछ नहीं मा जी रहीं हूँ।पहले बाप की गुलामी फिर ससुर की पति ऐसा कमजोर जो रोज रात मर्द बनता है पर मेरे लिए कुछ नहीं करता। छी मां ये भी कोई जिंदगी है मैने अपने आपको दो साल बचाया है आपके पति से भी नहीं तो वो मेरा भी खसम बन बैठता अब बताइए मै क्या गलत कर रही हूं हा मै हु निर्लज्ज मुझे कोई शर्म नहीं और आप सुनिए मेरी उस मैनेजर से बात हो गई है

वो मुझसे शादी करेगा हम दूसरे शहर जाएंगे मैं आपको भी ले जाऊंगी ना बेटी इस बूढ़े को कौन देखेगा तू जा पर संभल कर।सुहासिनी ने अपने ससुर को धीरे धीरे जहर देना शुरू कर दिया एक महीने में उसका ससुर चल बसा जल्दी जल्दी में उसका दाह संस्कार किया गया और एक रात सास बहु वहां से सारा पैसा गहना ले भाग गई।सुहासिनी का पति और आशिक दोनो हाथ मलते रह गए क्योंकि सुहासिनी अपना दिल भर चुकी थी

और अब उसे किसी आदमी की गुलामी नहीं करनी थी वो आजादी चाहती थी बंधन नहीं ।मैनेजर का और ससुर का पैसा ले वो शहर आ गई एक मोहल्ले में घर ले कर दोनों रहती ऐश करती कुछ दिन सुहासिनी कही काम करती अपना मतलब पूरा करती और फिर ठिकाना बदल लेती।वो ऐश कर रही हो बस ऐश जो वो चाहती थी वो उसने पा लिया चाहे सही तरीके से या गलत तरीके से।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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