इतना अभिमान सही नहीं। – मधु वशिष्ठ

   माधवी बेहद सुंदर पढ़ी-लिखी और और संपन्न परिवार की लड़की थी। अभी उसने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। आजकल लड़कों के लिए लड़की ढूंढना भी इतना सरल काम नहीं है। अच्छी लड़की और अच्छा परिवार देख कर बहुत से रिश्ते भी स्वत: ही आने लगते हैं। ऐसे ही माधवी के लिए बहुत से रिश्ते आए।

माधवी का बड़ा भाई भी अपने पिता के साथ ही उनकी शहर की सबसे बड़ी फर्नीचर्स एंड इंटीरियर्स की दुकान में ही बैठता था।

अब इसे उम्र की बात कहें या कि उसकी सुंदरता या कुछ भी कहें, माधवी भी बेहद अभिमानी थी। अपने लिए आने वाले प्रत्येक अच्छे रिश्ते में भी वह आराम से कमियां ढूंढ देती थी। एक से एक अच्छे रिश्ते के बारे में माधवी कमियां निकालते हुए अपनी मम्मी के साथ यूं ही हंसती रहती थी। 

      माधवी की बुआ जी ने भी माधवी के लिए अपनी ननद के परिवार के लड़के विशाल से माधवी की विवाह की बात करी। माधवी की बुआ जी ने उसे लड़के को बचपन से ही देखा था

वह बेहद संस्कारी एवं होशियार लड़का था हां उसके भाई के समान उनके पास पैसे भले ही नहीं थे परंतु विशाल जैसे लड़के के साथ किसी का भी विवाह होना बहुत अच्छा ही था क्योंकि विशाल का परिवार भी बुआ जी का देखा भाला था उनके माता-पिता भी बेहद मेहनती और बहुत अच्छे थे।

        विशाल ने आईआईटी से इंजीनियरिंग करी थी और उसका पहले पैकेज ही बहुत अच्छा था माधवी की बुआ जी ने उनके माता-पिता को माधवी का विवाह विशाल से करने की पेशकश करी परंतु आदतन माधवी और उसकी माता जी ने यह कहकर रिश्ता ठुकरा दिया कि जिस लड़के का अपना घर ही नहीं है

उससे क्या शादी करना? माधवी के लिए तो बड़ी-बड़ी कोठियों वालों के रिश्ते आ रहे हैं। हालांकि  विशाल के घर वालों के पास गांव में बेहद जमीन थी वह तो उनके दादा और दादी की मृत्यु के बाद ही दिल्ली में रहने के लिए आए थे। बूआ जी  ने माता जी को बहुत समझाया कि इतना अभिमान सही नहीं, विशाल अच्छा लड़का है, परंतु वे नहीं माने।

उन लोगों ने उस वक्त एक भौतिकता का चश्मा पहना हुआ था जिसमें कि सिर्फ बड़े घर और सुंदरता का उनका अपना पैमाना था। इसी पैमाने पर रणधीर खरा उतरा । रणधीर के पिता का इंपोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनेस था और रणधीर ने भी इंजीनियरिंग की हुई थी। अमीरी के सारे गुण उसमें थे।

बुआ जी को जब पता पड़ा तो उन्होंने एक बार फिर माधवी और उसके माता-पिता को समझाया कि रणधीर का परिवार पैसों में भी बहुत ऊंचा है

और उनके पिता का राजनीति में भी बहुत दखल है, इसके अतिरिक्त राजनीति में खबरों में उनके बारे में कई आपत्तिजनक खबरें भी आती रही है परंतु माधवी और उसकी माता जी को तो यूं लगा कि बुआ जी उनसे ईर्ष्या के कारण ऐसा कह रही है और कुछ समय बाद माधवी का रणधीर से विवाह हो गया। 

        हालांकि विवाह में माधवी के घर वालों ने बहुत अच्छा विवाह किया और पैसे पानी की तरह बहाए परंतु रणधीर के परिवार में माधवी का सम्मान केवल इतना ही था कि सुंदरता के कारण एक साधारण परिवार से रणधीर के विवाह के लिए लड़की पसंद की गई।

विवाह के बाद से ही उसकी हर चीज को कमतर साबित करके माधवी के आत्म सम्मान पर हमेशा चोट लगाई जाती थी। खाने-पीने पार्टियों का शौकीन रणधीर माधवी को एक शो पीस के जैसे अपनी पत्नी मानकर स्वीकार करता था अन्यथा उसके अनैतिक संबंधों की भी कोई कमी नहीं थी। ज्यादा रोक-टोक करने पर रणधीर माधवी पर हाथ भी उठा देता था। 

     बेहद होशियार और सुंदर माधवी अपनी बेटी होने के बाद तनाव ग्रस्त रहती हुई अपनी सुंदरता एवं मानसिक संतुलन दोनों ही खो चुकी थी। बेटी होने के उपरांत जब वह घर आई तो उसे बुआ जी से पता चला कि विशाल ने सरकारी पेपर पास करके आईपीएस की नियुक्ति ले ली है।

अभी तो उसकी पोस्टिंग गांव में है परंतु वह दिल्ली पोस्टिंग के लिए तैयारी कर रहा है। बुआ जी ने ही बताया कि उसका विवाह भी हो चुका और विवाह के बाद कुछ गांव की जमीन बेचकर और  उन्होंने करोल बाग में एक बहुत अच्छी कोठी खरीद ली है, और विवाह के उपरांत उसकी पत्नी भी उपहार स्वरूप बहुत सा सामान लाई है।

विशाल की माता जी तो अपनी बहू को लक्ष्मी के समान मानती है क्योंकि उनका ख्याल है उस बहू के पैर पड़ने के कारण ही विशाल इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचा है।

           माधवी अपने ससुराल और मायके के बीच यूं ही झूले सी घूमती रहती है। तलाक लेना बोलना आसान है, परंतु   लड़की होने के उपरांत तलाक लेने की प्रक्रिया की मानसिक पीड़ा बहुत होती है। बहुत से लोग तो

अभी यही सिखाते हैं कि तलाक के बाद भी जीवन इतना सरल तो नहीं और इतने बड़े और अमीर घर से तलाक लेने का कारण भी लोग नहीं समझ पाते।वह कोई काम करें इतने संपन्न परिवारों में किसी को जरूरत नहीं महसूस हो रही क्योंकि बच्ची का ख्याल भी रखना है। मायके में भाई की भी शादी होगी।

      पाठकगण आजकल पहले सा समय नहीं है। पहले के समय लड़का या लड़की देखते समय उनके चरित्र और संस्कारों को देखा जाता था परंतु आजकल केवल और केवल पैसा और सुंदरता ही केंद्र में रहता है । शायद यही कारण है कि आजकल तलाक भी बढ़ रहे हैं और एक दूसरे के प्रति क्रूरता भी।  आपका इस विषय में क्या कहना है?

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा 

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