आंखों का पानी ढलना – सीमा सिंघी

इन दो सालों में राधे और बंसी दोनों भाइयों के बीच बहुत कुछ बदल चुका था। वजह थी एक जमीन का टुकड़ा। जिसे पिता हरि प्रसाद ने दोनों भाइयों में बराबर बराबर बांट दिया था। छोटे भाई बंसी को इससे कोई परेशानी न थी, परेशानी थी तो बस राधे को, उसे यही लगने लगा की बंसी की तो एक संतान है और मेरी दो संतान है तो मुझे ज्यादा मिलनी थी। 

जबकि पिता की ओर से पंचायत में दोनों को बराबर का हिस्सा  दे दिया गया था। बस इसी बात को लेकर राधे मन ही मन अपने छोटे भाई बंसी से ईर्ष्या करने लगा।

जब इंसान के मन में ईर्ष्या के भाव पनपने लगते हैं तो वह एक न एक दिन जुबान पर आ ही जाते है और आज जब राधे से रहा नहीं गया, तो वह बंसी से गुस्से में बोल ही उठा। 

देख बंसी बाबूजी जमीन के दो हिस्से कर के भी सही तरीके से बंटवारा नहीं कर गए। मैं बड़ा भाई होने के नाते तुमसे कह रहा हूं कि इस जमीन के दो नहीं बल्कि तीन हिस्से होने चाहिए क्योंकि मेरे दो संतान और तेरी एक है। 

अब तु खुद समझ ले किसको ज्यादा की जरूरत है। अगर तूने मेरी यह बात नहीं मानी, तो आज से हम दोनों भाइयों का पूरी तरह बटवारा हो जाएगा।

अपने बड़े भाई राधे के मुंह से ऐसी ओछी बातें सुनकर बंसी का मन द्रवित हो उठा और वह निराश होकर बोल उठा। भैया आज आपके अंदर मां बाबूजी के संस्कार नहीं बल्कि आपका लालच आपका अहंकार बोल रहा है।

 मुझे लगता है अब आपकी आंखों का पानी बिल्कुल ढल चुका है। यह याद रखिए भैया इंसान को लोभ ईर्ष्या अहंकार और स्वार्थीपन कहीं का नहीं छोड़ता और हां इस बात का उस इंसान को तब पता चलता है। जब उसके चारों ओर के दरवाजे बंद हो जाते है।

आज हम दोनों भाइयों के होते हुए हमारे संतानों में जमीन का हिस्सा कैसे हो सकता है। हम दोनों भाई अपनी पत्नियों को अपने बच्चों को क्या संदेश देंगे। यही की देखो एक जमीन के लालच में बड़े भाई ने छोटे भाई का हिस्सा हड़पना चाहा, इसका फायदा उठाना चाहा। 

 आज आप बंटवारे की बात मुझसे कह रहे हैं बल्कि उसकी जगह आप यह कहते की देख बंसी आज पिता नहीं है तो क्या हुआ। मैं तो हूं तुम्हारा बड़ा भाई पिता के समान तो मुझे बहुत खुशी होती। 

बड़ा सिर्फ कहने भर से बड़ा नहीं होता । सच कहूं तो भैया बड़ा बनने के लिए उन्हें कुछ जिम्मेदारियां भी निभानी होती है। जिससे आप चूक गए। आज मुझे बहुत तकलीफ हो रही है भैया। बंसी यही नहीं रुका। वह फिर कहने लगा ।

भैया आप मुझे ये कहते की बंसी अब तीनों बच्चों की जिम्मेदारी हम दोनों भाइयों की है तो मुझे बहुत खुशी होती क्योंकि मैं तो तीनों बच्चों में कोई भेद नहीं करता क्योंकि मुन्नू का मैं पिता हूं तो दोनों बच्चे टिंकू और परी का मैं चाचा हूं मगर है तो हम आखिर एक ही । मैं छोटा होकर इस बात को समझ गया मगर आप बड़े होकर भी समझ नहीं पाए।

अपने छोटे भाई बंसी की बात सुनकर आज राधे की आंखे शर्म से झुक गई। वह फिर शांत मन से बोल उठा। 

मेरे भाई तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। जिस रिश्ते में स्वार्थ ने अपनी जगह बना ली। वो इंसान कैसे सुखी हो सकता हैं।

सच कहूं तो लोभ अहंकार ईर्ष्या के कारण कब मेरी आंखों का पानी ढह गया। कब मैं इतना निर्लज हो गया। मुझे पता भी नहीं चला । तु मुझे क्षमा कर दे मेरे भाई कहते हुए अपने छोटे भाई बंसी को गले लगा लिया। आज छोटे भाई बंसी का मन बहुत खुश था क्योंकि उसकी समझदारी के कारण दोनों भाइयों का परिवार बंटवारे से बच गया।

स्वयंरचित 

सीमा सिंघी

गोलाघाट असम

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