शादी का माहौल था चारों तरफ गहमा गहमी थी। एक ओर हलवाई कड़ाही में गर्मा गर्म पूरिया तल रहे थे तो दूसरी ओर टेंट वाला फूलों से सजावट कर रहा था।
सब काम सुचारू रूप से चल ही रहे थे परंतु फिर भी यूं लग रहा था जैसे कुछ काम नहीं हो रहा..! यही तो होता है बेटियों के विवाह में हर समय एक चिंता सी रहती है कि बस सब कुछ सही से हो जाए..!
और यही फिक्र सता रही थी “सुमित्रा देवी” को..
कि कोई यह ना कह दे कि बिन पिता की बेटी के विवाह में कुछ कमी छोड़ दी हो उन्होंने।
“सुनीता बहू..!
अरी ओ… सुनीता बहू..!
कहां चली गई? काम के वक्त सुनती नहीं है कभी भी..
जा जरा देख पूजा की सारी सामग्री आई या नहीं.. जो पंडित जी ने कहा था वह सब इकट्ठा हुआ है या नहीं..!”
गुस्से से सुमित्रा देवी चिल्लाई ।
“अजी जीजी.! सब हो जाएगा आपकी बहू बहुत सयानी है ! सब देख लेगी आप बीपी मत हाई करो नहीं तो बीमार पड़ जाओगी ” शीला मौसी बोली।
“तुम नहीं जानती इसे बहुत लापरवाह है..! सारे घर की जिम्मेदारी तो मैने अपनी कंधों पर उठा रखी है, तभी घर ठीक से चल रहा है..! ना हो तो तू रजत से ही पूछ ले..! “
सुमित्रा देवी की ये आवाज सुनीता के कानों में पड़ गई और मुस्कुराते चेहरे पर मानो दुख की बदली सी छा गई और आंखें भी भीग गई।
कहां तो बेचारी सुध-बुध भुलाए इकलौती नन्द की शादी की सारी जिम्मेदारी उठाए सब काम कर रही थी ऊपर से हमेशा की तरह सासू मां के ताने और वो भी सारे रिश्तेदारों के सामने…!
“मां..! पूजा की सामग्री पूरी है.! दस दिन पहले ही मैंने बाजार से लिस्ट के अनुसार लाकर तैयार करके रख दी थी और आपको भी तो एक बार चेक करवा दी थी ना।” सुनीता ने उत्तर दिया..!
“हां..! हां..! ठीक है ! याद है मुझे पर फिर भी पूछना पड़ता है। यह ना हो कि फेरो के समय किसी चीज की कमी रह जाए ।” सुमित्रा ने कहा।
“अब जाकर देख निशा तैयार है कि नहीं.. उसको बुला ले हल्दी का समय हो रहा है।”
घर में सारे मेहमान थे परंतु सुमित्रा देवी का व्यवहार सुनीता के प्रति जस का तस था। कठोर और रूखा सा परंतु जब वे मेहमानों से बात करती तो बहुत प्रेम से करती है। आज तक सुनीता को समझ नहीं आया था कि आखिर उसकी गलती है क्या जो उससे इस तरीके से बात की जाती है जबकि उसके अनुसार वह तो अपने घर की सारी ही जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाती रही है आज विवाह को तीन वर्ष होने को आए थे।
गोद में एक वर्ष का अंशु भी था परंतु फिर भी न जाने क्यों सासू मां उससे हर समय खफा सी रहती कितनी ही बार कुरेदने की कोशिश की मगर हर बार खाली हाथ लौटी।
और मां जी के ही नक्शे कदम पर चलती थी निशा.. जो आए दिन भाभी का अपनी मां के साथ अपमान करने में जरा भी नहीं चूकती थी और सासू मां कभी भी अपनी बेटी को गलत कहां ठहरती थी उनके हिसाब से तो सारे घर में सिर्फ गलत सुनीता ही थी।
दुख सिर्फ ये था कि रजत की आंखों पर भी सासु मां और निशा का चढ़ाया चश्मा ही था..! वे भी तो कहां समझता था सुनीता को..!
आज भी यही हुआ कितनी देर से कहा था निशा को कि हल्दी के लिए मां बुला रही है परंतु वह तो अपनी सहेलियों के साथ कमरे में गप्पे मारने में मसरूफ थी और उसके देरी से आने का दोष भी सारे रिश्तेदारों के सामने सासू मां ने सुनीता पर ही डाल दिया था..!
“पता नहीं कहां ध्यान रहता है, सुनीता का.. कब से कहा है कि निशा को बुला ला मगर महारानी को अपने साज सिंगार से फुर्सत मिले तब ना ।” सुमित्रा देवी गुस्से से बोली..!
“क्यों री निशा..! तुझे इतनी देर हो गई आने में..! तेरी भाभी ने कब से बुलाया है और तू अब आई है ?” शीला मौसी ने बात संभालते हुए कहा मगर सबके सामने निशा भी बात बदल गई,
” भाभी ने ? अरे भाभी तो मेरे पास आई ही नहीं..! भाभी कब आई?” और उसकी सहेलियों ने भी मुंह नीचे करके निशा की बात में हामी भर दी और एक बार फिर सुनीता सारे रिश्तों के के सामने पानी-पानी हो गई..!
खैर इसी मान अपमान के बीच निशा की विदाई हुई और सुमित्रा देवी का डर बेवजह निकला,
निशा के विवाह में कहीं कोई भी कमी नहीं आई।
धीरे-धीरे सारे रिश्तेदार चले गए..!
“बेटियों के जाने के बाद घर कितना सुनाई हो जाता है..! अब सुनीता को अपनी बेटी बना कर रखना जीजी..!” जाते जाते शीला मौसी बोली..!
“अरे तुम्हे नहीं पता ..! तेरे जीजा जी भी नहीं है तो बहुओं को थोड़ा खींचकर रखना पड़ता है और मेरी तो इकलौती बहू है.. कभी राजन को अपने बस में करके मेरा बुढ़ापा खराब कर दे..! खैर तू नहीं समझेगी जब तेरी बहू आएगी तभी समझ आएगी तुझे..! ” सुमित्रा जी ने ना बात समझनी थी ना समझी..!
जब सुनीता ने निशा के विवाह के बाद अपनी मां को अपनी सासू मां के रवैया बताया तो उन्होंने भी हर बार की तरह उसे समझाते हुए कहा,
” कोई नहीं बेटी वह ठीक हो जाएंगी..! निशा गई है ना अब देखना अब तो तुम और दामाद जी और अंशु ही तो घर में हो.. उनका व्यवहार धीरे-धीरे बदलने लगेगा।”
मगर सुमित्रा जी का व्यवहार तो दिन प्रतिदिन और कड़वा होता गया पहले तो निशा हर पल साथ रहती थी अब तो निशा के ससुराल में भी सुबह शाम फोन होने लगे और
घर में हुई छोटी से छोटी बात निशा को बताई जाती आते-जाते सुनीता के कान में पड़ जाती और वह किलस कर रह जाती पर बोलती कुछ नहीं..
नियति के साथ उसने यह स्वीकार कर लिया था। रजत को कितना ही कहो तो वह हर बार एक ही बात कहता कि
” मेरी मां ने मुझे बहुत यत्न से अकेले पाला है और मैं मां के खिलाफ नहीं बोल सकता । तुमसे ही कोई ना कोई गलती हो जाती होगी।”
पहली बार निशा ससुराल से मायके रहने आई थी, कितनी खुश थी सुनीता कोशिश यही कर रही थी कि सब कुछ उसकी पसंद का बने अंशु भी आगे पीछे बुआ के घूम रहा था। बोलना तो नहीं जानता था परंतु पहचानता तो खूब था।
परंतु फिर वही बात सुमित्रा जी और निशा जी ना जाने गुपचुप क्या-क्या बातें करती रहती है और सुनीता को देखते ही ऐसे चुप हो जाती है मानो वह घर का सदस्य ना हो और हद तो उसे दिन हो गई जब सासू मां ने एक बार भी सुनीता को निशा को ससुराल वालों को देने के तोहफे नहीं दिखाएं मानो उसे छुपा कर कुछ देना चाह रही थी।
दिन यूं ही तो बीतते जा रहे थे और
देखते ही देखते निशा के विवाह को तीन बरस बीत गए..!
और इस एक दिन अचानक दिल के दौरे से सुमित्रा जी चल बसी..! निशा तेरहवीं के बाद चली गई..!
कहते है जब घर के बड़े ही रिश्तों में कांटे बो जाए तो पीछे छूटे रिश्तों में पड़ी दरार कहां भरती है..!
निशा भी कहां आती थी अब मायके बस राखी या भाई दूज पर कभी राखी भेज देती या कुछ घंटे के लिए आ जाती..!
“निशा ..! देख तो कौन आया है..?” अचानक राजन और सुनीता को अपने ससुराल आया देख निशा हैरान थी..!
“आंटी जी..! हम चाहते है कि निशा की प्रसूति उसके मायके में हो और आपके यहां भी तो यही रिवाज है न..!” सुनीता की बात सुनकर हैरान थी निशा.. कहां तो वो अपनी मां को याद करके रोज आंसू बहाती थी कि ऐसे वक्त में उसकी मां उसको पलकों पर बिठा कर रखती और अचानक सुनीता भाभी का यूं आना..!
आज मां के जाने के बाद पहली बार निशा ने अपने मायके कदम रखा..! दिल में दर्द था मां नहीं दिखाई दे रही थी और एक अदृश्य डर भी..! कही भाभी की कोई चाल तो नहीं..!
“चलो निशा तुम आराम करो मैं तुम्हारे लिए चाय लाती हूं..!” सुनीता ने सहजता से कहा..!
“अंशु बुआ को तंग मत करना।”
निशा ने अपने कमरे में चारों ओर नजर घुमाई बिल्कुल वैसा ही रखा था भाभी ने जैसा निशा को पसंद था..! कही कोई भी बदलाव नहीं..!
सुनीता भाभी ने तो जाने आने वाले मेहमान के लिए कितनी तैयारी कर रखी थी। पास के नर्सिंग होम में एक बार निशा को ले जाकर डॉक्टर साहिबा से मिल भी आई थी और अब तो बस कुछ दिनों में नन्हे मेहमान के आने का इंतजार था..!
इतना सब कुछ होने पर भी निशा उदास थी।
भैया और भाभी कितना ख्याल रख रहे थे..!
दो ही दिन में निशा आत्मग्लानि से मरी जा रही थी।
“निशा..! तेरी तबियत तो ठीक है ना? तू इतनी चुप क्यों रहनी लगी ? किसी सहेली को फोन करके बुला लो तुम्हे अच्छा लगेगा..!” सुनीता के कहते ही मानो सब्र का बांध टूट गया..!
फफक कर रो पड़ी..!
“भाभी..! मुझे माफ कर दो। मैने और मां ने तुम्हारे साथ कितना बुरा किया और आप आज मां के जाने के बाद मेरे साथ कितना अच्छा व्यवहार कर रही है..! काश मां आज होती तो मैं उनकी आंखे खोल पाती।”
“अरे चुप कर..! बीती बातों को भूल जा..! और इस हालात में खुश रहते है रोते नहीं..!
“मैं भी तो एक बेटी हूं..”
और मैं जानती हूं ऐसे मौके पर मायके की कितनी जरूरत होती है..! मां जरूर हमें छोड़कर चली गई परंतु तेरा मायका हमेशा रहेगा.. अपने भाई भाभी के साथ..!” सुनीता ने भीगी आंखों से निशा को गले लगाते हुए कहा।
निशा की आंखों से अविरल आसूं बह रहे थे..! और बस मन में एक टीस थी कि काश मां ने भाभी को पहले दिन से ही बेटी बनाकर रखा होता और निशा की गलतियों को भी बढ़ावा ना दिया होता तो रिश्तों में कटुता नहीं आती..! निशा के बहते पश्चाताप के आंसुओं से रिश्तों में आई वो अदृश्य दरार भर गई थी।
————————–
दोस्तों..! जरूरी नहीं किसी से सम्मान पाने के लिए या अपने वश में रखने के लिए उस पर अपने बड़े होने का रुआब डालना जरूरी है हम दूसरों को स्नेह से भी अपना बना सकते है..! क्योंकि सभी लोग सुनीता जैसे समझदार नहीं होते।
(स्वरचित अप्रकाशित मौलिक)
सर्वाधिकार सुरक्षित
पूजा अरोड़ा दिल से दिल तक
साप्ताहिक विषय “मैं भी तो एक बेटी हूं..!”